मामला फिल्मी संवाद जैसा है। लेकिन है एक जैसा, इसलिए बात की शुरूआत इसी तरह से की जा सकती है। 2018 का विधानसभा चुनाव याद कीजिए। राज्य में सरकार बनाने की भाजपा की कोशिशें धुंआ-धुंआ हो गई थीं। धुंआ भी इतना गाढ़ा और तीखा कि कई भाजपा नेताओं की आंख से आंसू निकलने जैसी स्थिति बन गयी और कई की सियासी महत्वकांक्षाएं इसी धुंए में दम घुटने की शिकार हो गईं। लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने बहुत निर्लिप्त अंदाज में इस सबको स्वीकार किया। फिर बाद में एक फिल्मी संवाद दोहराया, ‘टाइगर अभी जिंदा है।’ फिर हुआ ऐसा कि पंद्रह महीने में ही टाइगर एक बार फिर अपनी पूरी ताकत के साथ सत्ता में लौट आया।
चौथी पारी शिवराज के लिए निरापद नहीं रही। पहले तो लोगों ने इस मन्त्र का रट्टा लगाया कि भाजपा अपनी चौथी पारी के लिए शिवराज पर यकीन नहीं करेगी। चौहान के लिए विघ्नसंतोषियों की स्थिति यह रही गोया कि वे अपने इस कथन के सही होने के लिए नियमित रूप से प्रार्थनाएं भी पढ़ने लगे हों। फिर भी जब शिवराज ने चौथी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला तो नाकाम प्रार्थना वाले स्वर जैसे बद्दुआओं में बदल गए। हालत यह रही कि 23 मार्च, 2020 के बाद से शायद ही कोई पखवाड़ा ऐसा बीता हो, जिसमें यह न कहा गया हो कि प्रदेश में मुख्यमंत्री बदल दिया जाएगा। लेकिन ऐसे कयास चीटी की चाल से अधिक तेज नहीं चल सके, दूसरी तरफ शिवराज चीते की गति से आगे बढ़ते चले गए।
अब जब राज्य का विधानसभा चुनाव सिर पर है, तब एक बार फिर शिवराज के भविष्य को लेकर अटकलों का दौर चरम पर है। इस बार मामला सच के काफी नजदीक भी दिखा। एक-दो नहीं, अनेक अवसर पर यह साफ नजर आया कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व चौहान को पहले जैसी तवज्जो देने से बच रहा है। जिस समय मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की अघोषित फेहरिस्त को नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रह्लाद सिंह पटेल जैसे नामों की एंट्री से भारी-भरकम रूप प्रदान कर दिया गया, तब यह साफ दिखने लगा कि चौहान की स्थिति कुछ हल्की हो रही है। फिर यह भी हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह और जेपी नड्डा ने चुनाव अभियान की कमान सीधे अपने हाथ में ले ली और शिवराज के हाथ में स्टार प्रचारक मात्र के रूप में एक माइक ही थमा नजर आने लगा।
तो यहीं से दूसरे फिल्मी संवाद वाली बात का सूत्रपात होता है। अमंगलकामनाओं की धुंध से घिरे शिवराज ने बीते महीने खुद की तुलना उस फीनिक्स पक्षी से की, जिसके लिए कहा जाता है कि वह अपनी ही राख से एक बार फिर जीवन पा लेता है। यानी वह अजर-अमर है। मजे की बात यह कि यदि टाइगर को फिर से सही अर्थ में जीवित होना दिखाने के लिए पंद्रह महीने का समय लग गया था, तो फीनिक्स पक्षी ने एक पखवाड़े से भी कम की अवधि में अपने फिर से जीवित हो उठने वाले पूरे हालात स्थापित कर दिए हैं। रतलाम की अपनी हालिया सभा में सुर बदलते हुए मोदी ने जिस तरह शिवराज की खुलकर तारीफ की और उसके लिए लाड़ली बहना योजना का खास तौर से उल्लेख किया, उससे यह स्पष्ट है कि भाजपा राज्य में इस योजना को ही अपनी सफलता का मुख्य सूत्र मान चुकी है, जो शिवराज की ही देन है।
2006 में लाड़ली लक्ष्मी की शुरूआत के बाद से मौजूदा चुनावी साल में लाड़ली बहना तक का एक्सटेंशन एंटी इंकम्बेंसी जैसे आसन्न संकट के बाद भी भाजपा का टेंशन कम करने का बड़ा जरिया बन गया दिख रहा है। फिर ऐसा होना बहुत स्वाभाविक भी है। और ऐसा होने को यह स्वाभाविकता खुद शिवराज ने ही प्रदान की है। बात सिर्फ यह नहीं कि एक करोड़ 31 लाख महिलाओं (जो कि वोटर भी हैं) के खाते में हर महीने पहले एक-एक हजार और अब 1250 रुपए डाले जा रहे है, बल्कि बात यह भी है कि इन हितग्राहियों को शिवराज पुख्ता तौर पर आश्वस्त भी कर चुके हैं कि भविष्य में यह राशि तीन हजार रुपए तक कर दी जाएगी। अब यदि इन महिलाओं में से साठ फीसदी भी भाजपा के पक्ष में मतदान करती हैं तो लगभग अस्सी लाख मतों के जरिए भाजपा के लिए बहुत सकारात्मक स्थिति बनाना तय दिखता है। फिर एक फैक्टर से कोई भी इंकार नहीं कर सकता। आप राज्य के दस लोगों से इस योजना के बारे में बात कीजिए। औसतन नौ लोग इसके साथ भाजपा की बजाय शिवराज का जिक्र करेंगे। यानी चौहान इस सफल योजना के प्रतीक के रूप में भी स्थापित हैं। तो फिर कोई चाहे या न चाहे, लेकिन उसके लिए प्रदेश में भाजपा की संभावनाओं को मजबूती देने के लिए इस योजना का उल्लेख करना बहुत आवश्यक है और यह काम शिवराज का उल्लेख किए बगैर अधूरा ही रह जाएगा।
साथ ही इस चुनाव के अब तक निर्णायक रूप में आ चुके स्वरूप को भी देखिए। मोदी, शाह और नड्डा की बाद राज्य स्तर पर शिवराज ही वह चेहरा हैं, जो प्रदेश के कोने-कोने तक एक-समान प्रभाव रख रहे हैं। चाहे धनतेरस हो या फिर दीपावली, शिवराज उसी तरह सक्रिय नजर आएंगे, जैसे वे रोज दिख रहे हैं। शेष दिग्गजों की पहुंच और पहचान से कोई इनकार नहीं कर सकता, लेकिन प्रदेश में चौहान जैसा व्यापक असर किसी और के पास नजर नहीं आता है। सच तो यह है कि इस चुनाव में भाजपा ने अपने राज्य स्तरीय तमाम दिग्गजों को उतारकर शिवराज को बिना किसी खास प्रयास के यह साबित करने का अवसर दे दिया है कि भाजपा सहित खुद कांग्रेस के पास भी मध्यप्रदेश के कोने-कोने तक पहुंच रखने वाला कोई चेहरा नहीं है। इस तरह फीनिक्स पक्षी अपनी ही राख से फिर जीवित होने जैसी स्थिति में आ गया है। हां, यह भी सही है कि शिवराज ने राख होने (या किए जाने) की प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही ऐसा कर दिखाया है। आगे का मामला चुनाव के नतीजों पर तय करेगा। सुभद्रा कुमारी चौहान ने लिखा था, ‘बढ़ जाता है मान, वीर का रण में बलि होने से, मूल्यवती होती सोने की भस्म यथा सोने से।’ सियासी रूप से भस्म कर दिए जाने की तमाम कोशिशों के बीच शिवराज का क्या होगा, यह भविष्य बताएगा। लेकिन भविष्य तय करने वालों को सोने और उसकी भस्म के बीच का अंतर अभी से जान लेना चाहिए।