भोपाल। विजयपुर विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के विजय मल्होत्रा के हाथों हार झेलने वाले वन मंत्री रामनरेश रावत का इस्तीफा आखिरकार मंजूर हो गया है। बता दें कि उपचुनाव में हार के बाद रावत ने मंत्री से पद इस्तीफा दे दिया था। लेकिन उनका इस्तीफा 12 दिन बाद मंजूर हुआ। खबर के मुताबिक मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने विदेश दौरे से लौटने के बाद 2 दिसंबर को रावत के इस्तीफे को अनुशंसा के लिए राज्यपाल मंगूभाई पटेल के पास भेजा था। सीएम की अनुशंसा के बाद राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने रावत का इस्तीफा बुधवार की शाम स्वीकार कर लिया। रावत कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए और वन मंत्री रहते हुए चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
बता दें कि विजयपुर उपचुनाव का नतीजा आने के बाद ही रामनिवास रावत ने वन मंत्री के पद से रिजाइन कर दिया था, लेकिन उस वक्त मुख्यमंत्री डॉ यादव विदेश दौरे पर थे, जिसके चलते उनका इस्तीफा होल्ड था। ऐसे में लौटने के बाद सीएम ने 2 दिसंबर को रावत का इस्तीफा अनुशंसा के लिए राज्यपाल के पास भेजा था। बुधवार देर शाम राजभवन की ओर से इस्तीफे की मंजूरी की प्रक्रिया पूरी कर ली गई। इधर, रावत के इस्तीफ के बाद सबसे बड़ा सवाल है कि अब नया वन मंत्री कौन होगा? इसको लेकर अटकलों का दौर शुरू हो गया है।
नागर सिंह चौहान भी दबी जुबान में दावेदारी कर चुके हैं पेश
इस पद के लिए पीएचई मंत्री संपतिया उइके और विजय शाह दोनों ही रेस में हैं। पीएचई मंत्री प्रबल दोवदार बताई जा रही हैं। हालांकि बीते दिनों पूर्व वन मंत्री नागर सिंह चौहान ने दबी जुबान में अपनी दावेदारी पेश कर चुके हैं। उन्होंने इच्छा जताते हुए कहा था कि फिर से जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार हूं। सीएम और संगठन जो जिम्मेदारी देगा, उसे निभाऊंगा। वहीं शिवराज सरकार में वन मंत्री रह चुके विजय शाह का दो दिन पहले एक वीडियो भी सामने आया था। इसमें जब शाह से पूछा गया कि रावत के इस्तीफे के बाद वन मंत्री का पद खाली है, क्या वे वन मंत्री बन सकते हैं। इस पर शाह बिना कोई जवाब दिए मुस्कुरा कर चल दिए थे।
मंत्रिमंडल विस्तार सरकार के लिए बनी मजबूरी
मंत्रिमंडल में रावत के इस्तीफे के बाद मोहन कैबिनेट में अब कुल 32 मंत्री हैं। विधानसभा सदस्यों की संख्या के हिसाब से संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक अधिकतम 35 मंत्री (मुख्यमंत्री सहित) रह सकते हैं। इस हिसाब से 3 मंत्रियों की गुंजाइश है, लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार की फिलहाल कोई संभावना नहीं दिख रही है। ऐसी राजनीतिक परिस्थितियां भी नहीं हैं कि संगठन या सरकार के लिए विस्तार मजबूरी हो।