निहितार्थ: कोढ़ में खाज की बुराई मिलने का काम भी हो गया। राज्य के जूनियर डॉक्टर्स (junior doctors) कोरोना (Corona) के काल में हड़ताल पर हैं। स्थिति पहले ही नाजुक थी। बुरी है। उस पर अब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (Indian Medical Association) भी इन जूनियर डॉक्टरों के समर्थन में उतर आयी है। वही एसोसिएशन, जो अघोषित रूप से खुद को एलोपैथी (allopathy) का पितामह साबित करने पर तुली है। बाबा रामदेव (Baba Ramdev) पर एसोसिएशन के हमले में जूनियर डॉक्टर्स का भी साथ था, इसलिए जूडा की हड़ताल को समर्थन देकर एसोसिएशन ने नमक का कर्ज उतार दिया है।
नमक की फितरत कई किस्म की होती है। नमकीन आहार (salty diet) में इसकी मात्रा जरा भी कम या ज्यादा हो तो जायका खराब हो जाता है। इसे ढ़ेर सारा एक साथ खाने पर किडनी के तुरंत फेल होने और उस व्यक्ति के मर जाने की आशंका रहती है। लेकिन यदि किसी के शरीर में जहर चला जाए तो इसी नमक की पानी के साथ ली गयी अधिक मात्रा उल्टी के जरिये उस जहर को बाहर ले आती है। तो इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के इस नमक की तासीर किस रूप में देखी जाए? कोरोना (Corona) का समय है। पूरे मध्यप्रदेश में इसके मामले कम हुए हैं, खत्म होने का तो सवाल ही नहीं। यानि ये किसी हड़ताल का उचित अवसर नहीं है। आपदा में अवसर की तलाश यहां भी हो रही है। जाहिर है कि junior doctors सहित ज्यादा से ज्यादा मेडिकल स्टाफ (medical staff) की इस समय राज्य को सख्त जरूरत है। और ऐसे समय में हड़ताल पर चले जाना कहीं से भी उचित नहीं Association तो रामदेव पर गरजते समय मरीजों के लिए अपनी सेवाओं की दुहाई दे रही थी। उनकी जान बचाने के दावे कर रही थी। अब वही संगठन एक ऐसे हठ के साथ खड़ा हो गया है, जो असंख्य मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ की भयानक वजह बन सकता है।
यदि आप एलोपैथी के जरिये पीड़ित मानवता (suffering humanity) की सेवा के लिए इतने ही प्रतिबद्ध हैं तो फिर कायदे में आपको चाहिए था कि जूनियर डॉक्टर्स को इस विकट समय में आंदोलन न करने की सलाह देते। लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है। अहसान उतारने के इस क्रम ने इस संगठन की नीयत और नीति दोनों पर गंभीर सवालिया निशान लगा दिए हैं। अब जिस एसोसिएशन के दबाव में देश की सरकार तक झुक गयी हो, जिसके आगे बाबा रामदेव का साम्राज्य भी कमजोर पड़ गया हो, उस एसोसिएशन के समर्थन से जूनियर डॉक्टरों की इस हठधर्मिता को गलत तरीके से बढ़ावा मिलेगा। यह बहुत बुरी स्थिति है।
ये दोहराने का कोई अर्थ नहीं कि जूडा को बीते कई सालों में सरकार (Government) की तरफ से जमकर आर्थिक और अन्य लाभ दिए गए हैं। लेकिन ये तो सेवा का समय है। उस शपथ की लाज रखने का वक्त है, जिसमें किसी भी बीमार की सेवा करने से इंकार न करने की बात कही जाती है। लेकिन शपथ के पथ से इतने गलत तरीके से हटना किसी भी नजरिये से सही नहीं कहा जा सकता है। और दुस्साहस इतना कि माननीय कोर्ट (Honorable Court) के आदेश को भी आंदोलनकारी धता बता रहे हैं। उन्हें अपने निलंबन या बर्खास्तगी की भी चिंता नहीं है, मरीजों की फिक्र तो खैर उनकी नजर में दिख ही नहीं रही है। इस स्थिति का और भी दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह कि कई रेजिडेंट डॉक्टर्स (resident doctors) भी जूनियर डॉक्टर्स के इस गलत कदम के समर्थन में आ गए हैं। ये तो वही बात हो गयी कि कोई अभिभावक (parent) अपने बिगड़ैल बच्चे को सुधारने की बजाय उसकी इस गलत तबीयत को और बढ़ावा दें। आपकी मांग कितनी भी जायज क्यों न हो, वह अपनी जान और सेहत के लिए आप पर आश्रित असंख्य लोगों की पीड़ा से अधिक विस्तार नहीं ले सकती है।
आप सरकार से बेशक नाराज हो सकते हैं मगर इस कोप का भाजन वे लोग क्यों बनें, जिन्हें इस कोरोना काल में सेहत से जुड़ी सेवाओं की निर्बाध आपूर्ति की सख्त जरूरत है। फिलहाल तो इस हड़ताल (strike) को ब्लैकमेलिंग (blackmailing) से अधिक और कुछ कहने में संकोच महसूस हो रहा है। इसलिए हड़तालियों के खिलाफ राज्य सरकार यदि सख्त कदम उठाती है तो फिर इसे किसी भी तरह से अनुचित नहीं कहा जाएगा। क्या आंदोलनकारियों (agitators) को हालात की भयावहता से कोई लेना-देना नहीं रह गया है? हालत यह है कि प्रदेश में मेडिकल स्टाफ की कमी के चलते झोलाछाप डॉक्टरों (quacks doctors) को मान्यता देने की हैरतअंगेज मांग तक उठने लगी है। खुद भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी (BJP MLA Narayan Tripathi) ने इस मांग के संबंध में मुख्यमत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) को खत लिखा है। ये बताता है कि कोरोना के देहाती इलाकों में मचे प्रकोप से निपटने के लिए पहले ही ट्रेंड हाथों की कितनी किल्लत है। किसी भी अस्पताल में चले जाइए। अखबार पढ़िए। न्यूज चैनल पर खबरें देखिये। हर जगह आपको गरीब जनता Corona पर विलाप करती दिख जाएगी। ऐसे दृश्यों से भला कोई कैसे आंखें मूंद सकता है! ये जूनियर डॉक्टर्स की नहीं, एक पेशे के लिए पवित्रता और प्रतिबद्धता की हड़ताल है। मानवता के जज्बे की सदाशयता के खिलाफ हड़ताल है। ये ‘सेवा की शपथ’ के साथ वो अनाचार है, जिसकी जितनी भी निंदा की जाए, वह कम ही है।