सलमान खुर्शीद ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी की तुलना भगवान श्रीराम से की है। खुर्शीद बहुत पढ़े-लिखे लोगों में गिने जाते हैं। इसलिए उनके इस कथन को खारिज करने की बजाय उस पर कुछ अन्य तरीके से विचार किया जाना चाहिए। मुख्य रूप से सोचने वाली बात यह कि खुर्शीद ने भगवान राम को किस नजरिये से देखा है कि वे उनमें राहुल का अक्स नहीं, बल्कि पूरा स्वरूप देखने लगे हैं?
वह भी आज की ही तरह कांग्रेस में राहुल की जबरदस्त सक्रियता का दौर था, जब इस दल ने अदालत में शपथ पत्र देकर भगवान राम के अस्तित्व को काल्पनिक बताया था। खुर्शीद की गिनती उस समय भी पार्टी के थिंक टैंक के सदस्यों के रूप में होती थी। इन दो महानुभावों को लेकर ऐसी ही स्थिति तब भी थी, जब गांधी ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि लोग मंदिरों में दर्शन की बजाय लड़कियां छेड़ने के लिए जाते हैं। ऐसे ही वाक्यों की रौ में बहते हुए गांधी यह भी कह चुके हैं कि उन्हें किसी हिंदुत्व में कोई विश्वास नहीं है। यहां तक कि अपनी इस थ्योरी को विस्तार देते हुए गांधी हिंदुत्व को हिंदू से अलग भी बता चुके हैं।
तो सबसे पहले यह देखा जाना चाहिए कि ऊपर गिनाए गए घटनाक्रमों वाले राहुल में खुर्शीद ने किस आधार पर भगवान राम की प्राण-प्रतिष्ठा कर दी है? क्या उन्होंने कोई ऐसा साहित्य खोज निकाला है, जो कहता है कि स्वयं श्रीराम यह कह गए कि उनका मिथ्या कैरेक्टर गढ़ा गया है? इस देश ने तो हिंदुत्व की अवधारणा को श्रीराम से ही जोड़कर उस अनुपात में भाजपा को अपरंपार जनाधार प्रदान किया है। तो फिर क्या यह भी हुआ कि खुर्शीद को किसी आकाशवाणी से प्रभु ने संदेश भेजा कि वह हिंदुत्व वाले हिंदुओं के नहीं हैं। क्योंकि हिंदुत्व वाले तो बकौल राहुल उनके मंदिर में लड़कियां छेड़ने ही आते हैं। मुमकिन है कि खुर्शीद के हाथ कोई वह साहित्य भी लग गया हो, जो कहता हो कि शरीर पर यज्ञोपवीत धारण करना गलत है, कोई केवल तब सच्चा हिंदू कहलाएगा, जब वह इस पवित्र धागे को कोट के ऊपर से पहने।
भगवान राम आजीवन निष्कलंक रहे। राहुल सपरिवार जमानत पर चल रहे हैं। राम ने जो कहा, वो अटल रहकर किया। राहुल ने कभी नरेंद्र मोदी को चोर कहा और कभी इसी कथन के लिए अदालत के सामने लिखित में माफी मांगकर अपनी जान छुड़ाई। राम ने अपने सबसे बड़े विरोधी रावण को उसकी अंतिम सांस तक सम्मान दिया और राहुल सहित उनके पूरे परिवार के इशारे पर पीवी नरसिंह राव के निधन के बाद उनके पार्थिव शरीर का खुलकर अपमान किया गया। राम ने उन्हें वनवास देने वाली कैकयी को भी हृदय से क्षमा किया, मंथरा के लिए कोई दुर्भावना नहीं रखी, लेकिन गांधी उस परिवार से हैं, जिसने अपनी आलोचना करने वाली शीला दीक्षित से लेकर प्रियंका चतुर्वेदी तक को हाशिये पर धकेल दिया। हां, कुछ हद तक एक समानता दिखती है। जहां राम ने रावण के विरुद्ध संघर्ष में वानर जाति का सम्मान के साथ सहयोग लिया, वहीं राहुल अपने राजनीतिक संघर्ष में इस बात से आल्हादित हैं कि उनकी भारत जोड़ो यात्रा में सूअर तक शामिल हुए। यह मैं नहीं कह रहा, खुद राहुल ने ऐसा कहा और इसका वीडियो वायरल भी हो रहा है।
संभव है कि खुर्शीद को कुछ ऐसे ठोस आधार मिल गए हैं, जिनके चलते ऊपर बताई गयी भीषण असमानताओं के बाद भी उन्हें राम और राहुल एक समान लगने लगे हों। लेकिन यदि इतना ही भक्ति-भाव है, तो फिर ऐसा क्या हुआ कि खुर्शीद राहुल से तुलना के लिए अपने धर्म में किसी को न तलाश सके? इस सवाल का जवाब मेरे पास संभावनाओं में भी नहीं है। यदि आप कुछ मदद कर सकें तो बड़ी सहायता हो जाएगी। आखिर ये खुर्शीद को समझने का मामला है। जो बहुत पढ़े-लिखे लोगों में गिने जाते हैं। इतने पढ़े लिखे कि उन्होंने राहुल को राम जैसा नहीं, बल्कि राम को राहुल जैसा बता दिया है। ये तालीम की गलती है या गलत तालीम का असर, खुर्शीद ही बेहतर बता सकते हैं।
वैसे खुर्शीद ने रामकथा और उससे जुड़े प्रसंगों की जिस तरह व्याख्या की है, उससे साफ़ है कि उनका अध्ययन इस दिशा में भी गहरा है। इसलिए यह उम्म्मीद बेमानी नहीं है कि खुर्शीद ने सुंदरकांड की पंक्ति ‘जथा उलूकहि तम पर नेहा’ भी शब्दार्थ और भावार्थ के साथ पढ़ी तथा समझी होगी। कॉलम का उपसंहार इस पंक्ति के साथ क्यों किया जा रहा है, खुर्शीद इसे आसानी से समझ जाएंगे, आखिर वह बेहद पढ़े-लिखे जो ठहरे