इन दो वस्तुओं का आरोह-अवरोह यूं तो इस तरह होता नहीं है। यानी अकल अपने निर्धारित खांचे से नीचे उतारकर घुटने में नहीं समाएगी। लेकिन यदि ऐसा होगा तो यकीन मानिये कि लोगों को एक और अरविन्द केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के साक्षात्कार के लिए तैयार रहना चाहिए। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAp) के संयोजक ने कोरोना (Corona) के वेरिएंट (Variants) को लेकर सिंगापुर (Singapore) पर तोहमत मढ़ दी। नतीजा यह कि इस देश की हुकूमत ने भारतीय उच्चायुक्त (Indian High Commissioner) को तलब कर नाराजगी प्रकट कर दी। अब भारत सरकार को औपचारिक रूप से सिंगापुर को यह बताना पड़ा है कि केजरीवाल इस तरह के मामलों में बयान देने के लिए सक्षम नहीं हैं।
लोगों की उम्मीदों के विपरीत केजरीवाल भारतीय राजनीति (Indian politics) में इलीट किस्म के मसखरे और सॉफ्ट स्पोकन मक्कार से अधिक और कुछ भी साबित नहीं हो सके हैं। कोरोना काल (Corona times) में उनका आपराधिक निकम्मापन अदालत सहित देश के सामने भी छिप नहीं सका है। मगर इसकी ज्यादा चर्चा नहीं हुई। आरोप हैं कि विज्ञापन की रेवड़ी बांटकर केजरीवाल ने अपनी सरकार की इन विफलताओं और उनसे उपजे दिल्ली की आवाम (Commute of delhi) के रुदन को समाचारों से दूर करवा दिया। शायद यहीं से उनके हौसले इतने बुलंद हुए कि वह अपनी हद से बाहर जाकर खुद के साथ-साथ पूरे देश की फजीहत कराने का बंदोबस्त कर आए।
दरअसल अभिव्यक्ति की आजादी (Freedom of expression) के गलत इस्तेमाल से ही खतरनाक एक तथ्य है। वह है, इस आजादी का घातक इस्तेमाल करने वालों को सूर्खियों में महत्व और स्थान मिल जाना। और फिर जब ये नेगेटिव तत्व ही सूर्खियों सहित समाचार में बने रहने की गारंटी बन जाएं तो फिर केजरीवाल जैसी दुर्घटनाओं के आगे बढ़ने का क्रम चलता चला जाता है। और मजे की बात यह है कि जिस जगह मुंह खोलना केजरीवाल की नैतिक जिम्मेदारी होती है, वहां वह मुंह के भीतर दही जमाकर बैठ जाते हैं। किसान आंदोलन के दौरान पश्चिम बंगाल (West Bengal) की एक महिला के साथ सामूहिक ज्यादती के बाद उसकी मृत्यु हो गयी। मृतका के परिजनों ने जिन दो लोगों को इसका मुख्य आरोपी बताया है, वे दोनों AAP से जुड़े बताये जा रहे हैं। मगर केजरीवाल इस मसले पर बगुला भगत की तरह आंखें बंद किये हुए हैं। अदालत ने दिल्ली में Corona से निपटने के नाम पर बहानेबाजी के लिए केजरीवाल सरकार को जमकर लताड़ा, मगर मुख्यमंत्री के लबों पर खामोशी से जमी पपड़ी टूटना तो दूर, उसमें तो दरार तक नहीं आई।
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केजरीवाल दरअसल उस समूह के प्रतिनिधि हैं, जो अपने ही देश को लज्जित करने का गलत अवसर भी पूरी ताकत से भुनाते हैं। वे निश्चित ही कोई बड़ा और प्रायोजित (संभवत: विदेश से) एजेंडा लेकर चल रहे हैं। तभी तो उनका साइलेंट किलर जैसा व्यवहार उन्हें बहुत अलग बना देता है। अन्ना हजारे से लेकर प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास और योगेंद्र यादव जैसे लोगों को केजरीवाल ने इस्तेमाल के बाद वाले किसी टी बैग की तरह कूड़ेदानों में धकेल दिया। इसके बाद वे उन पार्टीजनों के संरक्षक बन गए, जो घनघोर सांप्रदायिक तथा हिंसक मंसूबों वाली राजनीति के पक्षधर बनकर सामने आये हैं। ये सारे बदलाव किसी सुनियोजित दिशा में जाते दिख रहे हैं, जो फिलहाल सिंगापुर तक चले गये और कल न जाने उनका टारगेट और क्या होगा।