22.9 C
Bhopal

हम अभिशप्त हैं ऐसे केक के उदाहरण झेलने को

प्रमुख खबरे

मानव-निर्मित चीजों का कोई निश्चित स्वरूप नहीं होता। समय के हिसाब से खुद इंसान ही उनमें बदलाव करता जाता है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने जब गणेश उत्सव की शुरूआत कराई, तो उसका स्वरूप गणपति जी की प्रतिष्ठा के अनुकूल ही रहा होगा। अब गणेश उत्सव में गणपति जी को फ़ौज की वर्दी में भी दिखा दिया जाता है। दुर्गा उत्सव में पहले खालिस भजन सुनाई देते थे, अब फ़िल्मी गीतों पर आधारित गीतों के बिना जैसे ये आयोजन असंभव मान लिया गया है।

ऐसा ही केक के साथ हुआ। वह कभी गोल था, फिर कई-कई तरीकों का बनने लगा। तो किसी कलाकार दिमाग ने एक केक मंदिर की शक्ल का भी बना दिया। इसी केक को काटकर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ भाजपा के निशाने पर आ गए हैं। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नाथ पर इसके लिए निशाना साधा है। आरोप है कि इस केक पर भगवान हनुमान की तस्वीर लगी थी।

एक केक वह भी था, जो पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने कभी छिंदवाड़ा के प्रसिद्द जामसांवली हनुमान मंदिर में काटा था। तुरंत कांग्रेस ने आरोप जड़ दिया था कि जो केक हनुमान जी को अर्पित किया गया, वह अंडे का बना हुआ था। क्योंकि इस केक कांड के समय ही उमा भारती ने तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के विरुद्ध चुनावी अभियान शुरू किया था, इसलिए कांग्रेस के आरोप ने जमकर तूल भी पकड़ लिया था। आरोप का सच चाहे जो भी रहा हो, लेकिन यह बात चौंकाने वाली थी कि हिंदू परंपराओं की पुरजोर पैरोकार उमा ने हनुमान जी के सम्मान में केक काटकर उसे अर्पित करने वाला अपनी छवि के ठीक विपरीत काम आखिर किया क्यों था?

ऐसा ही सवाल कमलनाथ को लेकर उठ रहा है। यह प्रश्न स्वाभाविक है कि 28 सीटों के विधानसभा उपचुनाव के समय हनुमान-भक्त के रूप में अधिकृत रूप से प्रचारित किए गए कमलनाथ को ऐसा केक काटने की सलाह किसने दी थी? जिज्ञासा यह भी कि मंदिर की शक्ल का केक देखकर भी नाथ का उस पर चला चाकू रुक क्यों नहीं गया?

समय बहुत विचित्र तरीके से बदल रहा है। हाल ही की खबर है कि विदेश में बैठा कोई भारतीय अपने अभिभावक की भारत में अंतिम क्रिया के लिए समय नहीं निकाल पाया। उसने ऑनलाइन ही अपने इस कर्म को पूरा कर दिया। पहले मंदिर का प्रसाद लेने के लिए लोग लंबी और कठिन यात्राएं करते थे, अब कई मंदिरों के ‘मैनेजर्स’ ने यह सुविधा भी दे दी है कि प्रसाद उन्हें घर बैठे मिल जाएगा। इसके लिए बस कुछ ‘सुविधा शुल्क’ का भुगतान करना होता है। जब ऐसे बदलाव कचोटते नहीं हैं तो फिर पवित्र मंदिर की औकात को केक के बराबर तौल देने में भला कैसी आपत्ति होना चाहिए?

गनीमत है कि ऐसा होने पर कुछ आपत्तियां अब भी उठती हैं। आप धर्म को धर्म और केक को केक ही क्यों नहीं रहने देते? धर्म में केक मत मिलाइए और केक को धर्म का हिस्सा मत बनाइए। भला यह कौन सी आधुनिकता है, जो बाकी धर्मों के मूल रूप से करीब से भी नहीं गुजरती और हिंदू धर्म में उसने ऐसे अतिक्रमण कर लिया है, जिसकी काट निकाल पाना असंभव जान पड़ने लगा है?

जब तक ईद की सिवैया का महत्व बरकरार रखते हुए दीपावली पर पारंपरिक मिठाई की जगह चॉकलेट देने की नसीहत दी जाएगी। हलाला पर मुंह बंद रखकर कन्या लक्ष्मी की बजाय पुरुष के घर में प्रवेश की बात की जाएगी। ‘आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता’ के साथ ही ‘भगवा आतंकवाद’ की थ्योरी स्थापित की जाती रहेगी, तब तक ऐसे केक के अनेक उदाहरण झेलने के लिए हम अभिशप्त हैं।

- Advertisement -spot_img

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -spot_img

ताज़ा खबरे