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विदिशा का यह विशिष्ट दर्जा…

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मध्यप्रदेश के शहरों में विदिशा की एक अलग एतिहासिक पहचान है। सम्राट अशोक के काल से। बौद्ध धर्म के उदय काल से। ये ईसा पूर्व की बात है। अब 21 वीं सदी में कोरोना की एतिहासिक विपत्ति में भी विदिशा शहर और जिले को एक नई पहचान मिल रही है। लिहाजा, यह बहुत सही मौका है। इससे बेहतर मौका और दस्तूर वाला संयोग हो ही नहीं सकता। वह वक़्त आ चुका है, जब विदिशा को मध्यप्रदेश का अतिविशिष्ट जिला होने का दर्जा दिया जा सकता है। ऐसा करने में भला क्या दिक्कत होना चाहिए? केंद्र में नरेंद्र मोदी हैं। मध्यप्रदेश में मोदी की ही भाजपा के शिवराज सिंह चौहान हैं। कम से कम एक अलग विशिष्ट जिले का खिताब विदिशा को देने जैसा मामूली सुझाव तो ये पूरा कर ही सकते हैं। विदिशा को इस पहचान तक लाकर खड़ा किया है कलेक्टर डॉक्टर पंकज जैन ने। उन्होंने अपने इस जिले को पूरे प्रदेश से अलग खड़ा कर दिया है। शुक्रवार की शाम छह बजे से राज्य-भर में सब्जी से लेकर राशन तक की बिक्री बंद है, मगर विदिशा में दारू की दुकानें ठप्पे से खुली हैं।

राज्य के सभी नगरीय क्षेत्रों में 60 घंटे के लॉकडाउन का इस जिले में सुरा की उपलब्धता वाली व्यवस्था पर कोई असर नहीं हुआ। शुक्रवार रात ग्यारह बजे तक वहां दारू बिकी। शनिवार को जब पूरे दिन का लाकडाउन है, तब भी मेडिकल स्टोर्स के साथ अगर कुछ विदिशा जिले में खुला है तो वो हैं शराब की दुकानें। बेरोकटोक। तो जाहिर है कि कम से कम विदिशा को उसके प्रशासनिक कलाकारों ने शिवराज सिंह चौहान के नियम और निर्देशों की परिधि से दूर कर ही दिया है। तो फिर क्या समस्या होना चाहिए भला विदिशा को एक विशिष्ट जिले का दर्जा देने में।

कोरोना बहुत भीषण रूप के साथ फिर तेजी पकड़ चुका है। पिछली बार से कहीं ज्यादा भयावह। केंद्र और राज्य की सरकारें लोगों से घरों में रहने की अपील कर रही हैं। मगर विदिशा का प्रशासन तो गोया कि ‘मध्यप्रदेश के सच्चे मद्यप्रदेश में कोरोना का कोई खौफ नहीं है’ वाले आचरण पर आमादा है। एक चित्र दिमाग में बन रहा है। पड़ोसी जिलों सहित भोपाल में लोग परेशान हैं। जरूरी सामान की कमी उन्हें सता रही है। घर से बाहर निकलने के लिए किसी ठोस कारण का भी उन्हें सबूत दिखाना होगा। और इधर विदिशा है। आदमी आराम से चहलकदमी के अंदाज में घर से बाहर निकलेगा। पुलिस रोकेगी तो वह ‘दारू लेने जा रहा हूूं।’ कहकर पूरे सुकून के साथ मदिरालय की तरफ चल देगा। यह चित्र भद्दा है, किन्तु बेतुका नहीं है। अब कलेक्टर ने शराब की दुकानों को आम जीवन की बाकी सभी जरूरी वस्तुओं से अधिक अहमियत देकर ऐसे ही हालात के रेखाचित्र के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया है।





यह उस राज्य की बात है, जिसके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शराब को बढ़ावा न देने की बात कहते हैं। और यह उस विदिशा की बात है, जिस संसदीय क्षेत्र की जनता ने एक नहीं, बल्कि पांच-पांच बार चौहान को संसद में भेजकर उनकी नीतियों और विचारों के लिए अपनी सहमति जताई है। इसी विदिशा की इस विचित्र दशा को देखकर प्रशासनिक सोच और तुगलकी रवैये पर दु:ख ही जताया जा सकता है। कलेक्टर डॉक्टर जैन मूलत: एमबीएसएस डॉक्टर हैं। कोरोना के प्रसार के बीच शराब के दुष्परिणामों से वह निश्चित ही वाकिफ होंगे। खुद प्रधानमंत्री मोदी वैक्सीनेशन के बाद लोगों के शराब पीने पर चिंता जता चुके हैं। मगर विदिशा में तो मानों दुकानों से शराब नहीं, बल्कि कोरोना की वैक्सीन बेची जा रही हो। प्रशासन के इस मूर्खतापूर्ण फैसले को राजस्व की प्राप्ति से जोड़कर देखने की महान मूर्खता नहीं की जाना चाहिए। वैसे है तो स्थिति पूरे राज्य की ही विचित्र। लॉकडाउन में लोग जरूरी सामान के लिए तरस कर रह गए हैं। उस पर कई जगह यह व्यवस्था 19 तक लगातार जारी रखने का फैसला लेकर लोगों के और परेशान होने का बंदोबस्त कर दिया गया है।

विदिशा कलेक्टर का यदि शराब ठेकेदार को नुकसान से बचाने का कोई मकसद है तो राज्य सरकार ने वैसे भी यह फैसला किया है कि लॉकडाउन के चलते दूकान बंद होने से शराब बिक्री के लायसेंसधारियों को हुए नुकसान की भरपाई की जाएगी। ऐसे में विदिशा का जिला प्रशासन फिर भी शराब की बोतल को लाकडाउन का ‘पास’ बनाने पर क्यों तुल गया है, यह समझ से परे है।

 

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