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कर्नाटक से मप्र के बीच तक कांग्रेस की ये उलटबासी

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एक लघुकथा याद आ गई। सुबह के समय मुसाफिरों की वह बस एक मंदिर की तरफ जा रही थी। उसमें बुजुर्गों की खासी भीड़ थी। एक बच्चा और उसका पिता भी बस में चढ़े। पिता ने मुसाफिरों को देखकर बच्चे के कान में कुछ कहा। बच्चे ने ‘तूने मुझे बुलाया शेरा वालिए’ सहित अन्य भक्ति गीत गाने शुरू कर दिए। खुश होकर यात्रियों ने इतने पैसे दिए कि बाप-बेटे की झोली काफी भर गयी। मंदिर आया, मुसाफिर उतर गए। यहां से बस का अगला पड़ाव एक कॉलेज था। ज़रा ही देर में मुसाफिरों के नाम पर युवा लड़के-लड़कियां बस में आ गए। बाप ने बेटे के कान में फिर कुछ कहा। अब बेटा, ‘चिकनी-चिकनी अपनी कमर ऐसे ना हिला’ गाने लगा। युवा मस्ती में आ गए और पिता-पुत्र की बची हुई झोली भी लबालब भर गयी।

कुछ यही स्थिति कांग्रेस की दिखती है। हो तो ऐसा बीते लंबे समय से रहा है, लेकिन जबलपुर में सोमवार को एक बार फिर उसकी ताजा मिसाल दिखी। इस पार्टी की जो बस बीते दिनों कर्नाटक में चली, उसमें बजरंग दल की प्रतिबंधित संगठन पीएफआई से तुलना वाले स्वर गूंजे। अब भी वहां के मंत्री के वेंकटेश ने कहा है कि प्रदेश में जब भैंसों को काटा जा सकता है तो फिर गाय के साथ ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता? वेंकटेश पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की गोवंश के वध के विरुद्ध वाली नीति को लेकर यह दलील दे रहे थे। अब इस दल की यही बस जब जबलपुर तक आयी तो वहां सुर ही बदल गए। प्रियंका वाड्रा गाँधी सहित अन्य पार्टीजनों का ऐसा रवैया दिखा, गोया कि इससे बड़ी हिंदू धर्म की अनुयायी पार्टी और कोई हो ही नहीं सकती। कमलनाथ तो खैर पहले ही खुद को हनुमान जी का सबसे बड़ा भक्त कह चुके हैं। अब शायद ‘जैसा देश, वैसा भेष’ वाली बात थी, इसलिए श्रीमती वाड्रा भी हार्डकोर हिंदुत्व वाले रंग में रंगी नजर आईं। न जाने यह सब देख कर उन राहुल गांधी के दिल पर क्या बीती होगी, जिन्होंने कहा था कि लोग मंदिर में लड़कियां छेड़ने के लिए जाते हैं और उन दिग्विजय सिंह की स्थिति भी शायद देखने लायक हो रही होगी, जिन्होंने कम से कम इस शैली के हिंदुत्व पर हमेशा ही प्रहार किए हैं, जो कल श्रीमती वाड्रा के नेतृत्व में जबलपुर में मां नर्मदा के किनारे पर प्रदर्शित किया गया। अब आगे और क्या-क्या दिख सकता है? क्योंकि कांग्रेस भी भाजपा-विरोधी दलों के साथ कदमताल के लिए तैयार है। यह सारी कवायद मूल रूप से आगामी आम चुनाव को लेकर की जा रही है। ऐसे में जब ‘जय-जय श्रीराम’ बोलने वालों पर कानूनी कार्रवाई की धमकी देने वाली ममता बनर्जी के साथ मंच साझा करना होगा तो क्या कांग्रेस मध्यप्रदेश वाले कल के चोले को एक झटके में उतारकर ममता के सुर में सुर मिलाने लग जाएगी?

इसी भावी गठबंधन में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी भी शामिल है। तो क्या कांग्रेस अपने सोमवार वाले स्वरूप को कायम रखते हुए यह भी भूल सकेगी कि अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव ने इस बात पर गर्व जताया था कि मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अयोध्या में कई कार सेवकों की जान लेने का आदेश दिया था? आज की हिंदूवादी दिख रही कांग्रेस उन तेजस्वी यादव के बागल में किस तरह सहज होकर खड़ी हो सकेगी, जिनके पिता लालू प्रसाद यादव ने गोधरा काण्ड के बाद कारसेवकों को जिन्दा जला देने वालों को क्लीन चिट देने की कोशिश की थी। कहा था कि ट्रेन के कोच में आग बाहर से नहीं, बल्कि भीतर से ही लगाई गयी थी। फिर तेजस्वी तो स्वयं वह व्यक्ति हैं, जिन्होंने नए संसद भवन के शिवलिंग के सदृश वाले स्वरूप को ‘मकबरा’ की उपाधि दी थी।

इन और इन जैसे कई अन्य उदाहरणों के सन्दर्भ में यह देखने वाली बात होगी कि कांग्रेस का संस्कारधानी वाला हिंदुत्व का संस्कार किस तरह कायम रह सकेगा? या ऐसा होगा कि जहां जैसी हवा चलेगी, कांग्रेस की पतंग उसी के हिसाब से उड़ती चली जाएगी? दरअसल वर्ष 2014 के बाद से केंद्र सहित अधिकांश राज्यों की सत्ता से कमोबेश नियमित रूप से बेदखल हुई कांग्रेस अपने भविष्य को लेकर छटपटाहट से भरी नजर आ रही है। उसे किसी भी तरह से अपनी खोई जमीन फिर से पानी है। इसके लिए जल्दबाजी में भर कर वह इस तरह के विरोधाभासी व्यवहार को अपनाने पर मजबूर हो गयी है। हड़बड़ाहट ठीक वैसी, जैसे कि श्रीमती वाड्रा ने नर्मदा माँ की आरती पूरी होने से पहले ही आरती ले ली थी। जो हिंदू मान्यताओं के सर्वथा विपरीत आचरण है। खैर, अज्ञान में किया गया पाप ईश्वर भी क्षमा कर देते हैं। इसलिए यह कामना की जानी चाहिए कि कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री की हिंदू मान्यताओं के प्रति इस अज्ञानता के लिए भी परमेश्वर उन्हें क्षमा कर देंगे। फिलहाल तो नीति और नीयत के रूप में कांग्रेस की उलटबासियों का आनंद लीजिए। कर्नाटक से मध्यप्रदेश के बीच चली बस में बदले सुर आगे और क्या-क्या दृश्य दिखाएंगे, यह जानना रोचक हो सकता है ।

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