डॉ. मोहन यादव मुख्यमंत्री के तौर पर भले ही नए हों लेकिन सार्वजनिक जीवन के अनुभवी नेता तो हैं। और खास बात यह कि इस अनुभव का ककहरा उन्होंने जमीन से जुड़े कार्यकर्ता से लेकर विधायक और मंत्री के रूप में सीखा है।
संगठन के प्रति निष्ठा और जातिगत राजनीति के लाभ शुभ के साथ काम की क्षमता का सर्वाधिक महत्व है, तो फिर उसे मंत्रियों के चयन में भी यही दिखाना होगा कि पार्टी में अब 'तुम मुझे सब-कुछ दो, मैं तुम्हें कुछ भी नहीं दूंगा' वाले लोगों के दिन लद चुके हैं।
नए मुख्यमंत्री के लिए सबसे बड़ी चुनौती खुद शिवराज सिंह चौहान ही साबित होंगे। इस बात को किसी नाराजगी या विद्रोह से जोड़कर न देखा जाए। यह चुनौती इस रूप में होगी कि अपने अब तक के कार्यकाल में शिवराज ने जो लोकप्रियता, सफलता और सक्रियता के कीर्तिमान स्थापित किए, उनसे आगे जाए बगैर यादव यह स्थापित नहीं कर सकेंगे कि पार्टी का उनके प्रति विश्वास एकदम सही था।
मध्यप्रदेश के चुनावी नतीजों में लाड़ली बहना योजना की बड़ी भूमिका रही तो आप यह भी मानेंगे कि इस योजना के पीछे का प्रमुख फैक्टर शिवराज ही थे। यह उनकी वर्ष 2005 से इस चुनाव तक की संचित निधि रही, जिसने राज्य की महिलाओं को भविष्य में तीन हजार रुपए प्रति माह देने की बात पर विश्वास में ले लिया
शिवराज ने बीते महीने खुद की तुलना उस फीनिक्स पक्षी से की, जिसके लिए कहा जाता है कि वह अपनी ही राख से एक बार फिर जीवन पा लेता है। यानी वह अजर-अमर है। मजे की बात यह कि यदि टाइगर को फिर से सही अर्थ में जीवित होना दिखाने के लिए पंद्रह महीने का समय लग गया था, तो फीनिक्स पक्षी ने एक पखवाड़े से भी कम की अवधि में अपने फिर से जीवित हो उठने वाले पूरे हालात स्थापित कर दिए हैं।