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रेप मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी की सुप्रीम कोर्ट ने की आलोचना

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट की एक और टिप्पणी की आलोचना की है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज ने बलात्कार का आरोप लगाने वाली कॉलेज छात्रा के खिलाफ कहा गया था कि “उसने खुद मुसीबत को आमंत्रित किया और वह इसके लिए जिम्मेदार भी है।”

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि, न्यायाधीशों को ऐसे मामलों से निपटने में “सावधान” रहना चाहिए। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बलात्कार मामले में आरोपी को जमानत देते हुए 11 मार्च को यह टिप्पणी की थी।

मंगलवार को जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ एक अन्य मामले की सुनवाई के लिए एकत्रित हुई थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था। यह वही मामला है जिसमें इलाहबाद हाई कोर्ट के जज ने कहा था कि, लड़की के स्तनों को पकड़ना और उसके पायजामे की डोरी तोड़ना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के आरोप लगाने के लिए “पर्याप्त नहीं” है।जस्टिस गवई ने कहा कि, “अब दूसरे जज का एक और आदेश है। हां, जमानत दी जा सकती है लेकिन यह क्या चर्चा है कि ‘उसने खुद मुसीबत को आमंत्रित किया आदि’। ऐसी बातें कहते समय सावधान रहना चाहिए, खासकर इस तरफ (न्यायालय)।” मामले में अदालत की सहायता कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “पूरा न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि यह भी दिखना चाहिए कि न्याय किया जा रहा है।

एक आम आदमी ऐसे आदेशों को कैसे देखता है, यह भी देखना होगा।”  पीठ ने 17 मार्च के आदेश के खिलाफ स्वत: संज्ञान मामले में सुनवाई चार सप्ताह के लिए टाल दी है। 26 मार्च को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणियों को “असंवेदनशील” और “अमानवीय” करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 17 मार्च के आदेश पर रोक भी लगा दी थी। पीठ ने कहा था कि, “सामान्य परिस्थितियों में, हम इस स्तर पर स्थगन देने में धीमे हैं। लेकिन चूंकि पैराग्राफ 21, 24 और 26 में दिखाई देने वाली टिप्पणियाँ कानून के सिद्धांतों से पूरी तरह अनजान हैं और पूरी तरह से असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती हैं, इसलिए हम उक्त टिप्पणियों पर रोक लगाने के लिए इच्छुक हैं।”

जिस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आपत्ति जताई है वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 11 मार्च को आदेश से संबंधित है।

यह मामला मूल रूप से 21 सितंबर, 2024 का है। पुलिस सूत्रों के अनुसार, नोएडा में स्नातकोत्तर की छात्रा महिला अपने दोस्तों के साथ दक्षिण दिल्ली में एक संगीत कार्यक्रम में भाग लेने गई थी।

वह वहाँ आरोपी से मिली, जो उसके एक दोस्त को जानता था। अपनी शिकायत में, उसने कहा कि आरोपी, जो एक छात्र भी है, ने उससे कहा कि वह उसे नोएडा वापस छोड़ देगा, लेकिन उसे गुड़गांव के एक अपार्टमेंट में ले गया, जहाँ उसने कथित तौर पर उसके साथ बलात्कार किया।

महिला ने अगले दिन पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई। आरोपी को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 64 (बलात्कार के लिए सजा) के तहत गिरफ्तार किया गया था। बलात्कार के आरोपों का विरोध करते हुए, आरोपी के वकील ने दावा किया था कि यह सहमति से हुआ था। आरोपी को जमानत देते हुए, उच्च न्यायालय ने कहा, “पक्षों के विद्वान वकीलों को सुनने और मामले की पूरी तरह से जांच करने के बाद, मुझे लगता है कि यह विवाद का विषय नहीं है कि पीड़िता और आवेदक दोनों ही बालिग हैं।

पीड़िता एमए की छात्रा है, इसलिए, वह एफआईआर में बताए गए अपने कृत्य की नैतिकता और महत्व को समझने में सक्षम थी। इस अदालत का मानना ​​है कि अगर पीड़िता के आरोप को सच मान भी लिया जाए, तो यह भी निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उसने खुद ही मुसीबत को आमंत्रित किया और इसके लिए वह खुद ही जिम्मेदार भी है। पीड़िता ने अपने बयान में भी इसी तरह का रुख अपनाया है।”

 

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