भूल बड़ी पुरानी है। ऐसी भूल, जिस पर धूल डालने का शुभ मुहूर्त भी न जाने कब का गुजर चुका है। तो भूल मात्रा की है। जिसके चलते कमलनाथ (Kamalnath) की जगह लिखा गया था कमालनाथ। वो हैं भी कमाल के। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में समय से साढ़े तीन साल पहले हुई कमल की बेमौसम खेती (Off-season farming) भी कमलनाथ की ही देन थी। भविष्य में विश्लेषकों (Analysts) का एक समूह नाथ को इस बात के लिए सराहेगा कि उनकी काहिली के चलते ही राज्य में केवल पंद्रह महीने बाद भाजपा के सत्ता में वापस आने का रास्ता साफ हो गया था।
तो अब कमलनाथ का एक और कमाल। पूर्व मुख्यमंत्री ने गुरूवार को एक धमकीनुमा बयान (Threatening statement) दिया। बोले कि राज्य के हनी ट्रेप काण्ड (Honey trap scandal) के सबूत उनके पास अब भी पैनड्राइव (Pandrive) में मौजूद हैं। और यदि उनकी सरकार में मंत्री रहे उमंग सिंघार (Umang Singar) के साथ कुछ गलत हुआ तो वह सबूत सामने ला देंगे। बाद में नाथ अपने कहे से काफी-कुछ हद तक पलट भी गए। मगर उनके मुंह से निकले शब्द तो अब नि:शब्द की श्रेणी में आ नहीं सकते। तो सवाल उठ रहे हैं। हनी ट्रेप कांड ने नाथ के CM रहते हुए ही तूल पकड़ा। कहते हैं कि रात को जब कमल के फूल की पंखुड़ियां बंद होती हैं, तो उसके भीतर भंवरा आकर विश्राम करता है। हनी ट्रेप में भी कहा जाता है कि ऐसा ही होता था। अनेक दिग्गज और सरकार के प्रभावशाली रात होते ही भंवरे बनकर कहीं कली तो कहीं कच्ची कली पर मंडराने लगते थे। ये सारा क्रियाकर्म कमल की पंखुड़ियों के भीतर ही पूरी सुरक्षा/संरक्षण में होता था।
विषकन्याओं (Visknyaon) के मोहपाश में बड़े-बड़े नाम भी ‘I want to see you naked’ जैसी ‘छोटू छाप’ हरकतें कर गुजरे। तो बतौर CM नाथ ने क्यों नहीं इन सब चेहरों को उजागर कर दिया! क्या वे इन साक्ष्यों को केवल विपक्ष को ब्लैकमेल (Blackmail) कर चुप रखने की कोशिश के लिए इस्तेमाल कर रहे थे? जिस तरह उनकी सरकार गिरी जाहिर है कमलनाथ के पास तत्कालीन विपक्ष को Blackmail करने के लिए कुछ हाथ में नहीं था। नाथ की वो बंद मुट्ठी निश्चित ही तब लाख की थी, लेकिन यदि वो खुलती तो उससे खाक नहीं निकलती। बल्कि वो मुट्ठी खुलती तो कई रसूखदारों के अब तक के किये-कराये पर खाक पड़ जाना तय था। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। नतीजा यह कि प्रदेश के इतिहास का सबसे बड़ा सेक्स स्कैंडल (Sex scandal) केवल मीडिया और सोशल मीडिया (social media) की सुर्खी से लेकर सनसनी तक में सिमट कर रह गया। अपनी देह से रसूखदारों का शिकार कर चुकी महिलाएं अब भी केवल इसलिए ही जेल में हैं ताकि इज्जतदार चेहरों के नंगेपन पर नकाब पड़ी रहे।
नाथ ने यदि ये आपराधिक उदासीनता बरती तो शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) ने भी इस दिशा में केवल कुछ अलग एप्रोच अपनाकर ही काम चला लिया। उन्हें CM बने हुए चौदह महीने होने जा रहे हैं। उनके हनी ट्रेप से जुड़े किसी नाम का खुलासा करने का कोई सवाल ही नहीं हैं। हां, शिवराज ने सावधानी बरतते हुए उस शहद को छककर भोगने वाले अपने तत्कालीन कुछ ‘दाएं-बायों’ को निर्वासित कर दिया। इसमें कोई शक नहीं कि शिवराज नरम दिल हैं। उनके समर्थक कहते हैं कि Honey trap में सरकार अब कानून के फैसले का ही इंतजार करेगी। इससे इतर कदम उठाये गए तो कई परिवार तबाह हो जाएंगे। यह उदारता अच्छी बात है, लेकिन देह के दलदल में फंसे लोगों के लिए भला क्या कोई रहम दिखाया जाना चाहिए? जिन्होंने अपनी रंगीन रातों (Colorful nights) के लिए जनधन में भ्रष्टाचार कर करोड़ों कमाएं और हनीट्रेप में लुटाएं, वह दो नंबर का पैसा था। जिन लोगों ने हसीनाओं की खातिर या उनके दबाव में गलत सरकारी फैसले (Government decisions) करवाए, वे पूरे प्रदेश से धोखा कर रहे थे। ऐसे लोगों की निर्वस्त्र करतूतों को भोगने वाली शैयाओं की सिलवटें भले ही हर सुबह ठीक कर दी गयीं, लेकिन इस सबके चलते देश के हृदय प्रदेश के गौरव पर शर्मिंदगी की जो अमित सलवटें अंकित हो चुकी हैं, उनका इलाज यही है कि गलत को उसके किए की सजा देने में कोई कोताही न बरती जाए।
यह भी पढ़ें: क्या होगा केजरीवाल का अगला टारगेट
इस मामले में कमलनाथ और शिवराज की सोच में जमीन-आसमान का फर्क है। लेकिन इसका असर तो एक ही है। गलत का बच जाना और लोगों का व्यवस्था के प्रति संदेह और गहरा जाना। नाथ के लिए माना जा रहा है कि सत्तर साल से अधिक की उम्र के बाद बतौर मुख्यमंत्री वे अपने जीवन की आखिरी बड़ी राजनीतिक पारी खेल गए। सोचिए कि यदि इस पारी में नाथ ने Honey trap के नाम उजागर करने का साहस दिखा दिया होता तो उनका सियासी वानप्रस्थ कितना गौरवमयी हो सकता था। वे ऐसा करने में जानबूझकर कोताही कर गुजरे और अब सबूत पेश कर देने की धमकी देने में वे वही दिख रहे हैं, जो कभी उनकी ही पार्टी के एक सांसद संदीप दीक्षित (MP Sandeep Dixit) ने देश के तत्कालीन सेना प्रमुख के लिए कहा था’ ‘सड़क छाप गुंडा।’