एक स्थिति के बाद किसी की नादानी पर चुप रह जाने में ही भलाई रहती है। इसलिए कई बार मन होता है कि राहुल गांधी की नासमझी के लिए अपने लेखन की बारूद अब और खर्च न की जाए। लेकिन यदि उनका स्थायी भाव बन चुका बचपना दूसरों के लिए घातक रूप लेने लगे तो चुप रहते नहीं बनता।
मध्यप्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा के साथ आये राहुल ने गजब बयान दिया। कहा, ‘चीन के सैनिकों को बीस साल तक ट्रेनिंग दी जाती है।’ इस पर यदि किसी मीम में लिखा जाता है कि राहुल ने उज्जैन आने से पहले ही भांग पी ली है, तो इस पर हंसी आने के साथ ही यकीन कर लेने की भी इच्छा होने लगती है। लेकिन दुःख तब होता है, जब राहुल इस कथन के साथ ही भारतीय सेना में अग्नि वीरों की आने वाली पीढ़ी को चीन के आगे कमजोर दिखाने का प्रयास करते हैं।
वे कहते हैं कि यदि युद्ध हुआ तो एक तरफ लंबी ट्रेनिंग वाले चीन के सैनिक होंगे, तथा दूसरी ओर हमारे केवल छह महीने के प्रशिक्षण प्राप्त अग्नि वीर। इसके आगे गांधी जब कहते हैं, ‘इसका नतीजा अब आप सब समझ जाओ’ तो लगता है कि ये शख्स आज भी वही है, जो गलवान में भारत और चीन के बीच चल रहे भयावह तनाव के बीच गुपचुप जाकर चीन के राजनयिक से भेंट कर आया था। राहुल का मानसिक विकास संतुलित तरीके से न हो पाना खुद उन और उनकी पार्टी की निजी समस्या है, लेकिन बहुत बड़ी समस्या यह है कि असंतुलित विकास भी देश के सम्मान के खिलाफ ही जा रहा है।
मैं इसे टेढ़ी अकल दाढ़ का मामला मानता हूं, जो जिस मुंह के भीतर उगती है, वहीं तालू और जुबान को जख्मी कर देती है। गांधी भी ऐसा ही कर रहे हैं। करते आये हैं और करते जाएंगे भी। क्योंकि वह अंध-विरोध में जकड़े हुए हैं। भाजपा और नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोलने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं। अग्नि वीर वाले मामले में भी ऐसा ही हुआ है। खैर, खानदानी असर है। जवाहरलाल नेहरू ने देश की सेना में कटौती की थी। नाहक ही कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र में ले जाकर देश को स्थायी सिर दर्द दे दिया। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता को चीन के लिए अपने दुलार के चलते ठुकरा दिया। बाद में इसी चीन ने हमारी कम सेना और डर का फायदा उठाकर 1962 में हमारे अनगिनत फौजियों के प्राण लिए और साथ ही ले ली अरुणाचल प्रदेश की बेशकीमती जमीन भी।
काश कि राहुल ने अपनी दादी इंदिरा गांधी जी से कुछ सीख ली होती। वह पाते कि इस देश की सेना वह है, जो पाकिस्तान जैसे दुश्मन देश के दो टुकड़े करने का साहस भी रखती है। फिर भले ही बकौल राहुल इस सेना को बीस साल का प्रशिक्षण न मिल पाया हो। इधर राहुल के साथ यात्रा में चल रहे स्वयंभू जोड़ो यात्री का वीडियो भी वायरल हो रहा है। इसमें वह पार्टी के दो बड़े नेताओं, जयराम रमेश तथा दिग्विजय सिंह की मौजूदगी में हिन्दुओं के लिए वह सब कह रहे हैं, जो कभी कांग्रेस के लोगों द्वारा ही ‘भगवा आतंकवाद’ के द्वारा कहा गया था। इस युवा ने उग्र हिंदुत्व की बात कही। साथ ही राहुल को बंधुत्व का वाहक बताया।
कोई पूछे राहुल के इस परम भक्त से कि हिंदुत्व कब से उग्र होने लगा? वह तो एक जीवन शैली है। दरअसल इस तरह के फैब्रिकेटेड शब्दों के जरिये हिंदुओं को बांटने की कोशिश की जाती है। उन हिंदुओं को कमजोर करने का प्रयास किया जाता है, जो किसी अन्य पंथ या धर्म में दखल दिए बगैर अपने धर्म के प्रति निष्ठावान होने का प्रयास कर रहे हैं। यदि यह युवा इतना ही विद्वान है, तो फिर किसी अन्य धर्म के लिए उग्र शब्द का प्रयोग क्यों नहीं करता? जबकि वहां तो धर्म के नाम पर उग्र होने और इसके लिए उकसाने के अनगिनत पुराने और वर्तमान उदाहरण भी मौजूद हैं। कुल मिलाकर यही दिखता है कि राहुल अपनी सोच और संगत, दोनों से हिन्दुस्तानियत और हिंदुत्व, दोनों की ही दुश्मन बन बैठे हैं। पचास साल से अधिक की जिस उम्र में उन्हें अक्लमंद होने चाहिए था, उस उम्र में वह मंद अक्ल होने का लगातार परिचय दे रहे हैं। कांग्रेस को इस स्थिति के लिए साधुवाद, लेकिन भगवान के लिए देश को तो बख्श दीजिए।