उच्च शिक्षा विभाग के ओएसडी संजय कुमार जैन का ऑडियो वायरल होने के बाद से ही इस बात का इंतजार था कि मामले में अब आगे क्या होगा? जैन ने संविदा नियुक्ति के मामले में आवेदक से रिश्वत मांगी थी। यह बात सामने आते ही उन्हें सस्पेंड कर दिया गया था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर सोमवार को जैन को बर्खास्त कर दिया गया है।
अपने चौथे कार्यकाल में शिवराज के ऐसे तेवर बड़े तल्ख़ अंदाज में सामने आए हैं। बीते साल सितंबर में झाबुआ के तत्कालीन एसपी अरविंद तिवारी भी इसी तरह नप गए थे। तिवारी ने एक छात्र से फोन पर पुलिसिया अंदाज में बात की और मुख्यमंत्री ने तत्काल तिवारी को हटाने के निर्देश दे दिए थे। इधर हाल में यह भी हुआ है कि पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन में करोड़ों के भ्रष्टाचार के आरोप से घिरी सब इंजीनियर हेमा मीणा की सेवाएं भी चौहान के आदेश पर ख़त्म कर दी गयी हैं।
इसी सब के बीच यह जानकारी भी आयी है कि शिवराज के निर्देश पर बीती 15 मार्च से अब तक भ्रष्टाचार के 75 मामलों में 119 सरकारी सेवकों के खिलाफ मुक़दमा चलाने की मंजूरी दी जा चुकी है। अनायास ही याद आता है लोकायुक्त संगठन का वह प्रतिवेदन, जो दिग्विजय सिंह के शासनकाल में विधानसभा के पटल पर रखा गया था। उसमें तत्कालीन लोकायुक्त ने साफ़ लिखा था कि भ्रष्टाचार के अधिकतर मामलों में राज्य सरकार आरोपी के खिलाफ मुक़दमा चलाने की उसकी अनुशंसा का पालन नहीं कर रही है, जिसके चलते प्रदेश में लोकायुक्त की स्थिति बगैर नाखून और दांत वाले शेर की तरह होकर रह गयी है। कुछ मामलों में ऐसा अभी भी होता है।
दरअसल हो यह रहा है कि शिवराज ‘उल्टा लटका दूंगा’ वाले कहे पर अमल की दिशा में पूरे गति के साथ आगे चल पड़े हैं। जाहिर बात है कि चुनावी साल होने का फैक्टर इसके पीछे प्रमुख रूप से काम कर रहा है, लेकिन यह कहना पूरी तरह सही नहीं है कि चौहान का ऐसे मामलों में यह रुख चौथे कार्यकाल या चुनावी वर्ष में ही नजर आया है। बीते साल मई में ऑनलाइन बैठक के दौरान शिवराज ने बुरहानपुर के तत्कालीन कलेक्टर प्रवीण सिंह को जिस तरह फटकारा था, उससे साफ़ था कि मुख्यमंत्री गलत के विरुद्ध समयानुकूल सख्ती से पीछे हटने वालों में से नहीं हैं। इसके बाद से ही यह भी हुआ है कि शिवराज ने गत वर्ष से लेकर कई बार गलत काम करने वाले अफसरों को मंच से ही निलंबित करने या उनके खिलाफ कोई अन्य दंडात्मक कार्रवाई करने के निर्देश जारी कर दिए हैं।
यह सब एक आशा के आकार में वृद्धि करता है। वह यह कि शिवराज ने गलत के खिलाफ सही तरीके से आगे बढ़ने की प्रक्रिया को गति प्रदान कर दी है। सरकार को भले ही इसका चुनावी लाभ मिले या न मिले, लेकिन इससे राज्य की जनता को भ्रष्टाचार के विरुद्ध कुछ राहत और साहस का संदेश मिल ही गया है। शिवराज कई संवेदनशील विषयों पर संतुलित तरीके से आगे बढे और फिर उनकी इस रफ़्तार में तेजी आती चली गयी। यही भ्रष्टाचार के मामले में भी दिख रहा है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए।