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गजब का संतुलन साधा शिवराज ने

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अपनी राजनीति (Politics) में लचीलापन और संतुलन साधने की शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) की क्षमता ही शायद उनके सफल Success() और लंबे राजनीतिक कैरियर (long political career) का मजबूत आधार है। शुक्रवार को राज्य के निगम मंडलों (nigam mandalon) में सत्ता और संगठन के तालमेल से जो राजनीतिक नियुक्तियां (political appointments) हुईं हैं, उसमें भाजपा (BJP) ने जबरदस्त रणनीतिक कौशल का परिचय दिया है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सरकार बनवाने के लिए जिन सिंधिया समर्थकों (Scindia supporters) ने अपनी विधायकी कुर्बान की, बाद के उपचुनाव (by-election) में हार का सामना किया, उन सबके साथ BJP ने अपना कमिटमेंट (commitment) पूरा किया। भाजपा में शामिल होने और चुनाव में हारने के बाद उन्हें लंबा इंतजार जरूर करना पड़ा, लेकिन उनसे किया गया वादा भाजपा ने बराबर निभाया।

लेकिन इसके साथ अपने संगठन के अपने मूल कार्यकर्ताओं को भी यह अहसास नहीं होने दिया कि बाहर से सत्ता के कारण आए हुए लोगों के सामने उनकी उपेक्षा की जाएगी। पूरी लिस्ट पर गौर से नजर डालेंगे तो इसकी गहराई समझ में आएगी। जो लोग 28 सीटों के उपचुनाव में हार गए थे, उनकी विधानसभा (Assembly) में तो जाहिर है, भाजपा के बाकी दावेदारों के लिए रास्ता खुला है। लेकिन जहां से कांग्रेस से भाजपाई बनकर लोग जीते हैं वहां पार्टी ने अपने मूल कार्यकर्ताओं और दावेदारों को इस बात से बचाने का अहसान कराया है कि भविष्य में भी उनकी कोई उपेक्षा नहीं होगी।

कांग्रेस (Congress) से बगावत करके आए जितने भी लोग भाजपा के टिकट से जीत कर मंत्री बने हैं, उन सभी के क्षेत्रों से वहां के दावेदारों को इन नियुक्तियों में शामिल किया गया है। मसलन सुरेश राठखेड़ा (Suresh Rathkheda) के पौहरी विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधायक प्रहलाद भारती (Former MLA Prahlad Bharti) और नरेन्द्र बिरथरे (Narendra Birthare) दोनों को जगह दी गई है। नेपानगर में संगीता कास्डेकर (Sangita Kasdekar की प्रतिद्वंद्वी रही मंजू दादू (Manju Dadu) को शामिल किया गया है। सांवेर (sanver) में तुलसी सिलावट के सामने दावेदार रहे सावन सोनकर (Sawan Sonkar) को शामिल किया गया है। तो गोविंद राजपूत से सुरखी में चुनाव हारे राजेन्द्र सिंह मोकलपुर (Rajendra Singh Mokalpur) को भी जगह दी गई है। अशोक नगर से मंत्री बने ब्रजेन्द्र यादव के सामने पूर्व विधायक राव देशराज सिंह यादव के सुपुत्र अजय यादव (Ajay Yadav) का भी ध्यान रखा गया है। मांधाता में नारायण पटेल के सामने चुनाव हारे नरेन्द्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) को भी उपाध्यक्ष का पद दिया गया है। करेरा से रमेश खटीक (Ramesh Khatik) को शामिल किया गया है तो बदनावर से राजेश अग्रवाल (Rajesh Agarwal) को शामिल किया गया है। बदनावर में कांग्रेस से आकर राज्यवर्द्वन सिंह (Rajyavardwan Singh) भाजपाई विधायक और अब सरकार में मंत्री हैं। मतलब भाजपा ने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि कांग्रेसी से भाजपाई हुए लोगों के कारण उसके मूल कार्यकर्ता पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़े।

इसी तरह संगठन मंत्री के तौर पर जिन पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं ने पार्टी को लंबे समय तक अपना समय दिया था। उनका कर्जा चुकाने का भी भाजपा ने पूरा ध्यान रखा। शैलेन्द्र बरूआ (Shailendra Barua),जीतेन्द्र लिटौरिया (Jitendra Littoria), आशुतोष तिवारी (Ashutosh Tiwari),जयपाल चावड़ा (Jaipal Chavda) जैसे सभी संगठन मंत्रियों को शिवराज सरकार ने पार्टी की सहमती से निगम मंडलों में अध्यक्ष के महत्वपूर्ण पद से नवाजा है। जाहिर है इन संगठन महामंत्री रहे कार्यकर्ताओं की रूचि भी चुनावी राजनीति में हैं, अब ये उनके कौशल और भाग्य पर निर्भर करेगा कि अपनी राजनीतिक पारी को कितना लंबा और कितना सफल बना पाते हैं। जाहिर है संगठन, वीडी शर्मा (VD Sharma) या सुहास भगत (Suhas Bhagat) पर ये आरोप नहीं लगेगा कि इन पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं का इस्तेमाल करने के बाद इन्हें कचरे में फेंक दिया गया। सिंधिया समर्थकों को छोड़ दें तो शिवराज सरकार (shivraj government) ने ये जितनी भी नियुक्तियां की हैं, उनमें से कोई भी ऐसा नहीं हैं जिसे किसी बड़े राजनीतिक नेता की सरपरस्ती हासिल हों। इनमें से कौशल विकास एवं रोजगार बोर्ड में अध्यक्ष बनाए गए शैलेन्द्र शर्मा (Shailendra Sharma) को उमा भारती (Uma Bharti) का खास माना जाता है। लेकिन शैलेन्द्र शर्मा ने कभी भी पार्टी से बाहर जाकर उमा भारती का समर्थन नहीं किया। भाजपा के कई नेताओं ने उमा भारती के साथ पार्टी छोड़ी और वापस लौटकर उसकी कीमत भी वसूल की। शैलेन्द्र शर्मा इसके अपवाद रहे। उमा भारती के आठ महीने के मुख्यमंत्रीत्व काल में ताकतवर रहे शैलेन्द्र शर्मा की एक तरह से डेढ़ दशक बाद वापसी हुई है। यह भाजपा और कांग्रेस का एक बड़ा फर्क हैं। कांग्रेस (Congress) में बिना किसी बड़े नेता की सरपरस्ती के कुछ नहीं होता और भाजपा में संगठन कार्यकर्ताओं का इकलौता सरपरस्त है।

देखा जाए तो कल की नियुक्तियों से शिवराज सिंह चौहान ने एक बार फिर अपने लचीले स्वभाव का परिचय दिया है। इन 25 नाम की सूची देख लीजिए। इनमें से कई ऐसे हैं, जो शिवराज की गुड बुक (good book) में नहीं थे। किंतु मुख्यमंत्री ने संगठन के साथ मिलकर रणनीतिक फैसला किया। यह सत्ता तथा संगठन के बीच समन्वय का एक अच्छा उदाहरण है। भाजपा की प्रशंसा की जाना चाहिए कि उसने ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के प्रति अपने कमिटमेंट (commitment) को निभाते हुए उनके समर्थकों को निगम-मंडलों में एडजस्ट करने में कोई कंजूसी नहीं की। निश्चित ही भाजपा और सरकार को इसका लाभ आने वाले पंचायत, नगरीय निकाय तथा विधानसभा के चुनाव में मिलेगा।

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