शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर सभी को आश्चर्यचकित कर गए हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर मध्यप्रदेश के इतिहास की सबसे लंबी पारी खेल रहे शिवराज सिंह चौहान की यही खासियत है कि राजपुरूष का अहम उन पर अब तक हावी नहीं हो पाया है। इसलिए अगर किसी को यह लगता हो कि अपनी ही पार्टी की फायरब्रांड नेता पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के शराब विरोधी आंदोलन ने शिवराज सरकार को विचलित किया होगा, तो इसका कोई मतलब नहीं है। शिवराज ने उन विसंगतियों पर जरूर ध्यान दिया, जो वाकई जरूरी थीं। कह सकते हैं कि इसके लिए उमा भारती के दबाव ने शिवराज सरकार को इस रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। शराब के मसले पर शिवराज ने जिस संतुलन के साथ सफलतापूर्वक मध्यम मार्ग निकाला, वह अद्भुत है।
सांप मर गया। लाठी भी सुरक्षित रह गयी। शराब से जुड़ी एक बड़ी विसंगति को शिवराज ने दूर कर दिया। दिग्विजय सिंह की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बार (परमिट रूम) की बजाय आहता संस्कृति को बढ़ावा दिया था। इससे पहले देशी शराब की दुकान यानि कलारी पर शराब पीने की सहुलियत सालों से थी। अब सरकार द्वारा देशी और विदेशी दुकानों को एक साथ करने से पीने वालों के लिए यह सुविधा टोटल बंद हो जाएगी। अहातों पर रोक लगने से निश्चित ही इस बुराई के बड़े असर को नियंत्रित किया जा सकेगा। अब अहाता न होने की सूरत में अधिकांश ‘शौकीनों’ के पास यही विकल्प बचेगा कि वह बाहर शराब पीकर समाज की शुचिता को प्रभावित न कर सकें। शराब पीकर वाहन चलाने वालों के खिलाफ पहले ही पुलिस की सख्ती चल रही है, इसलिए पीने वालों को अब घर पर ही अपना शौक पूरा करना होगा और वहां परिवार के दबाव से निश्चित ही उनके इस शौक में खलल पड़ेगा।
शराब को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की कोशिशों ने शिवराज सरकार के इस निर्णय तक पहुंचने में बड़ी भूमिका निभाई है। उमा भारती को भी अब इस बात से राहत होगी कि शासन ने उनकी बात का पूरी तरह सम्मान रखा है। खुद उमा भारती आठ महीने के मुख्यमंत्रित्व काल में शराब की विरोधी होने के बाद भी अहातों पर रोक नहीं लगा सकी थीं। संभव है कि यह काम उनके एजेंडे में रहा होगा, जिसे करने के लिए उन्हें पर्याप्त समय नहीं मिल पाया। फिर भी अहातों और शॉप बार पर रोक के फैसले की जब भी बात होगी, तब उमा जी का उल्लेख सहज रूप से ही किया जाएगा।
अहाते निश्चित ही बहुत बड़ी संख्या में रोजगार और कमाई की माध्यम हैं, लेकिन उनके चलते जिस तरह के अभद्र आचरण एवं अप्रिय प्रसंग अक्सर देखेने को मिले, वह विचलित कर देते थे। बेशक इस निर्णय में कमी निकालने के लिहाज से कहा जा सकता है कि सरकार को नशाबंदी करना चाहिए, लेकिन क्या यह इस समस्या के विरुध्द एक व्यावहारिक कदम होगा?
कोई भी शासन शराब की बिक्री को रोक सकता है, लेकिन उसके सेवन की आदत को नियंत्रित करना नामुमकिन है। हमने खुद देखा है कि लॉकडाउन के दौरान शराब की बिक्री रुकने के चलते न जाने कितने लोग इसके विकल्प में घातक पदार्थों का सेवन कर अपनी जिंदगी से हाथ धो चुके हैं। महंगी शराब के दौर में मध्यप्रदेश में सस्ती और जहरीली शराब पीने के कई मामले सामने आए थे। नशाबंदी वाले बिहार में हाल ही में जहरीली शराब से कई लोग मारे गए। इसलिए जरूरी हो जाता है कि शराब के विरुद्ध जनमत का निर्माण किया जाए। उसकी बिक्री को बढ़ावा देने के जतन न किए जाएं। ऐसा इंतजाम हो कि शराब पीने वाले हतोत्साहित हों। शिवराज इस दिशा में नियमित रूप से सक्रिय हैं। उन्होंने शराब की दुकानों की संख्या न बढ़ाने का निर्णय कायम रखा है।
नयी आबकारी नीति में यह भी कहा गया है कि जिस जगह लोगों का अधिक विरोध होगा, वहां से दुकानें हटाई जाएंगी। प्रदेश में शराब की दुकानों के साथ संचालित 2580 अहाते और 31 शॉप बार बंद करने सहित धार्मिक स्थानों और स्कूलों से 100 मीटर की दूरी तक शराब की दुकानों की अनुमति न देना भी इस दिशा में प्रभावी निर्णय दिखता है। यह भी ध्यान देना होगा कि शराब ठेकों के नवीनीकरण की फीस में दस प्रतिशत की वृद्धि से शराब के दाम बढ़ेंगे और इनकी कीमते कई तलबगारों को इस आदत से तौबा करने का काम कर सकती हैं। हालांकि ऐसा होता नहीं हैं और नशे के आदी सस्ते नशे की और कदम बढ़ाते हैं। नशे में वाहन चलाने पर और कड़ी सजा का प्रावधान भी इस बुराई पर नियंत्रण का बड़ा जरिया साबित हो सकता है। शिवराज सिर्फ जागरूकता की बात नहीं कर रहे, बल्कि उन्होंने यह भी तय किया है कि नशा मुक्ति अभियान और शराब ना पीने के लिए चलाए जाने वाले जनजागृति अभियान के लिए सरकार पर्याप्त बजट का प्रावधान करेगी। इन सबसे यह आशा बंधती है कि सरकार के ये प्रयास नशे की आदत के विरुद्ध सकारात्मक वातावरण का निर्माण करने में सफल होंगे। इस सबका असर कैसा होगा यह भविष्य की बात है। फिलहाल तो माहौल उम्मीद वाला दिख रहा है और इसके लिए शिवराज सिंह के निर्णय तथा उमा भारती के प्रयासों को साधुवाद।