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भाजपा के लिए फिर बनती सियासी उम्मीदें

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तीन कृषि कानूनों (three agricultural laws) के लंबे विरोध (long protest) और उन्हें वापस लेने के ऐलान (declaration of withdrawal) के बाद के हालात से उपजा गुबार अब छंटने लगा है। नीचे बैठती धूल कुछ नये समीकरण (new equations) उभरते हुए दिखा रही है। पंजाब (Punjab) और उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में नए राजनीतिक हालात आकार (New political situation shape) लेने लगे हैं। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh, Former Chief Minister of Punjab) ने सोमवार को देश के प्रमुख अखबारों में प्रकाशित एक आलेख (article) के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की सराहना की है। उन्होंने खासतौर से यह लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों की सुनते हैं।

जाहिर है कि पंजाब के जल्दी ही होने वाले विधानसभा चुनाव (Assembly elections) में भाजपा (BJP) को सिंह का साथ मिल सकता है। अकाली दल (Akali Dal) की भी मजबूरी है कि राजनीतिक रूप से अपनी अकाल मृत्यु (Premature death) को टालने के लिए वह फिर से भाजपा के साथ आ जाए। जिन कृषि कानूनों के विरोध में उसने NDA से नाता तोड़ा था, वह कानून वापस हो रहे हैं। इसलिए बादल परिवार (Badal family) को फिर से निष्ठा बदल लेने का सुनहरा मौका भी मिल गया है। इससे सबसे बड़ा झटका कांग्रेस (Congress) को लगना तय है। अमरिंदर के व्यापक जनाधार से कोई इंकार नहीं कर सकता। कांग्रेस में मिले असह्य अपमान का हिसाब (account of humiliation) चुकता करने का वह कोई मौका हाथ से नहीं जाने देंगे।

कैप्टन के इस्तीफे के साथ ही भाजपा ने उन्हें सच्चा राष्ट्रवादी (true nationalist) प्रचारित किया। अब पाकिस्तान-परस्त नवजोत सिंह सिद्धू (Pro-Pakistan Navjot Singh Sidhu) द्वारा इमरान खान (Imran Khan) को अपना बड़ा भाई (elder brother) बताने से BJP के राष्ट्रवाद (nationalism) को इस राज्य में और ताकत मिल सकती है। पंजाब के ही कई कांग्रेस नेताओं (Congress leaders) की इस पर तीखी प्रतिक्रिया भी सामने आई है। सिद्धू ने अपनी ही पार्टी को निपटाने के लिए और भी अभियान संचालित कर रखे हैं। चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) की सरकार को लगातार निशाने पर लेकर वे कांग्रेस की राह लगातार मुश्किल कर रहे हैं। इस सबका लाभ भाजपा (BJP)-अमरिंदर (amarinder) और अकाली दल (Akali Dal) के संभावित गठजोड़ (potential alliances) को मिल सकता है। जाहिर है कि ‘मुफ्त का चंदन’ वाली लच्छेदार राजनीति के उस्ताद अरविन्द केजरीवाल (Arvind Kejriwal) भी इस सबके चलते अपनी पार्टी के पंजाब में भविष्य को लेकर कुछ चिंतित हो रहे होंगे।

यही सियासी बदलाव अब उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesj) में भी होते दिख रहे हैं। विशेषकर इस राज्य के पश्चिमी हिस्से में BJP के लिए लगातार मुरझाती राजनीतिक तस्वीर में अब आशाओं के रंग फिर से भरने लगे हैं। उत्तरप्रदेश के इस अंचल में राष्ट्रीय लोकदल (RLD) का खासा जनाधार है। वह इस मायने में कि यह पार्टी सशक्त तरीके से यहां वोटकटवा की भूमिका निभाती है। राष्ट्रीय लोकदल कहने को तो अभी समाजवादी पार्टी (SP) के साथ है, लेकिन विधानसभा चुनाव को लेकर इन दलों के बीच तनातनी की स्थिति है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश (Western Uttar Pradesh) में खासकर BJP की संभावनाओं के बनाए रखने के लिए गृहमंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) ने खुद मोर्चा संभाल रखा है। लोकदल का मुख्य आधार जाट वोट पहले ही भाजपा के साथ जुड़ चुका है। अब जबकि कृषि कानून वापस लेने का मार्ग साफ हो गया है, तब RLD के लिए भी भाजपा से जुड़ने की राह खुलती जा रही है।

कोशिश तो कांग्रेस (Congress) की भी रही कि वह इस पार्टी को अपनी तरफ खींच सके। लेकिन डूबते जहाज में सवारी का जोखिम राष्ट्रीय लोकदल शायद ही लेना चाहेगा। यूं भी 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे (muzaffarnagar riots) के बाद से इस हिस्से में भाजपा का असर बढ़ा है और इसका सीधा नुकसान RLD को ही उठाना पड़ा। अजीत सिंह (Ajit Singh) तथा जयंत सिंह (Jayant Singh) की बीते दो आम चुनावों में लगातार हार इसी बात का संकेत है। समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की तूफानी महत्वाकांक्षाओं के चलते जाटों वाली यह पार्टी अपने लिए अधिक शुभ-लाभ यूं भी नहीं देख पा रही होगी। ऐसे में उसे भाजपा के साथ आ जाने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए।

कृषि कानून वापस होने की प्रक्रिया के बाद राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) व्यक्तिगत रूप से मजबूत बने रह सकते हैं, किंतु भारतीय किसान यूनियन (BKU) अब इस प्रदेश में बड़े राजनीतिक उलटफेर की ताकत शायद ही दिखा सके।कुल मिलाकर आज की तारीख में तो यही दिख रहा है कि उलटे पांव लौटते कृषि कानून कई जगहों पर भाजपा की आउट होकर पवेलियन की तरफ लौटती संभावनाओं को फिर सियासी पिच की तरह खींचने लगे हैं। अब अम्पायर (umpire) यानी मतदाता (voter) का रुख क्या होगा, यह उस दिन ही पता चलेगा, जब मतदाता का निर्णय सामने आएगा।

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