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बापू के देश में अक्षम्य अपराध नूपुर शर्मा का

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उदयपुर (Udaypur) में कन्हैयालाल साहू (Kanhaiyalal Sahu) के हत्यारों, रियाज अत्तरी (Riyaz Attri) और गौस मोहम्मद (Ghaus Mohammed) का मजा आज कुछ फीका हो गया होगा। कहां तो वे इंटरनेट पर इस हत्याकांड का वीडियो डालते हुए आत्म-गौरव के समंदर में स्नान कर रहे थे और कहां देश की सबसे बड़ी अदालत (court) ने आज इस हत्या का ‘क्रेडिट’ इन दोनों से छीनने के अंदाज में कह दिया कि उदयपुर में जो कुछ हुआ उसके लिए नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) का बयान दोषी है। नूपुर भाजपा (BJP) से निष्कासित पूर्व प्रवक्ता हैं और उनके एक बयान के बाद देश में कई जगह भीड़ ने हिंसा की। नूपुर को जान से मारने और उनके साथ दुराचार करने की धमकियां दी गयीं। नाराज अल्पसंख्यक बच्चों के समूह को शर्मा की तस्वीर पर पेशाब करते हुए भी देखा गया। इस सबके बीच आज नूपुर की एक याचिका सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में पेश हुई। इसकी सुनवाई करने वाली जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला (Justice Surya Kant and Justice JB Pardiwala) की बेंच ने शर्मा को जमकर फटकारा। इसी के बीच जस्टिस पारदीवाला ने यह भी कहा कि देश में जो भी गड़बड़ी हो रही है, उसका कारण शर्मा का बयान ही है। अब गड़बड़ी तो अग्निपथ योजना के खिलाफ भी हुई। लोग मारे गए। अरबों रुपये की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। बेचारी नूपुर शर्मा तो शायद यही सोचकर गनीमत मना रही होंगी कि उन्हें अग्निपथ को लेकर उपजे हिंसक विरोध का भी दोषी नहीं बता दिया गया।

इस बात में कोई विवाद नहीं होना चाहिए कि किसी भी गड़बड़ी की जड़ को चिन्हित कर उस पर सख्ती हो। भगवान राम की मां कौशल्या (Lord Rama’s mother Kaushalya) के लिए ‘कहां-कहां भटककर वह मां बनी’ कहने वाले अकबरुद्दीन ओवैसी (Akbaruddin Owaisi) पर भी अदालत आज ही की तरह बरसे। हिन्दू देवियों का नग्न चित्रण करने वाले मकबूल फिदा हुसैन (Maqbool Fida Hussain) को भी शर्मा की ही तरह फटकार लगाई जाए। कॉमेडी की आड़ में हिन्दू धर्म का मजाक बनाने वाले मुनव्वर फारूकी (Munawwar Farooqui) को भी कोर्ट के आज वाले रौद्र रूप के आगे कांपना पड़े। दिल्ली एम्स में ‘रामायण’ की प्रस्तुति के नाम पर हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने के मामले में शोएब आफताब से भी कोर्ट शर्मा की ही तरह का सलूक करे। इसी तरह के मामले के आरोपी पत्रकार मोहम्मद जुबेर (Journalist Mohammad Jubeir) को भी इन उदाहरणों की ही तरह वाले कृत्य के लिए न्यायालय से ऐसी ही लताड़ लगना चाहिए। ये उम्मीदें गलत नहीं हैं। यदि नूपुर ने मुस्लिमों को नाराज किया है तो ओवैसी से लेकर जुबेर तक ने भी हिन्दुओं को बुरी तरह आहत ही किया। यदि इनमें से एक भी आरोपी का दोष सिद्ध नहीं हुआ है, तो यह भी ख्याल रखना होगा कि नूपुर को भी अब तक किसी भी अदालत ने दोषी नहीं माना है। अदालत का जो गुस्सा उन पर निकाला गया, उससे यही लगा कि कहीं उदयपुर पुलिस को यह निर्देश न दे दिया जाए कि दो ‘गुमराह नौजवानों’ को बिरयानी खिलाकर स-सम्मान विदा कर दिया जाए। क्योंकि वे बेचारे तो बिगाड़े गए माहौल के चलते ऐसा कर गुजरे।

दुर्भाग्य से बाकी सारे मामलों से देश में बिगड़े माहौल के बीच आज कहीं जाकर यह मोहर लगाई गयी कि ‘वातावरण का बिगड़ना इसे कहते हैं और इसे कहते हैं तृतीय श्रेणी के स्तंभ का गुस्सा।’ हो सकता है कि अकबरुद्दीन से लेकर जुबेर तक आहत पक्ष एक बड़ा गुनाह कर बैठा हो। उसने सड़कों पर उतरकर कत्ले-आम मचाने की धमकी नहीं दी। सरकारी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया। आरोपियों की मां-बहनों से पशुवत व्यवहार करने एवं उनका सर कलम कर देने की कामना प्रकट नहीं की। जब ऐसे कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो फिर परम ज्ञानियों के लिए यह ज्ञानोदय भी नहीं हो सका कि माहौल तो काफी पहले से ही खराब किया जा रहा है। जैसे ही नूपुर मामले में प्रतिक्रिया का स्तर शांति और कानून-व्यवस्था के साथ ज्यादती तक पहुंच गया तो यह मान लिया गया कि अब वातावरण बिगड़ने की सही परिभाषा लिखी गयी है और इसके लिए यदि कोई दोषी है तो वह केवल और केवल नूपुर हैं।

वैसे दंगों में धधक रही दिल्ली के लिए ‘आर-पार की लड़ाई के लिए घर से निकलो’ वाला पेट्रोल की फितरत में रचा-बसा आह्वान तो सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने भी खुलकर किया था। लेकिन माननीय चुप रहे। मुमकिन है कि गांधी के बयान में वह शिद्दत नहीं रही कि माहौल उस स्तर तक बिगड़ता, जिसके बाद आदरणीयों को लगता कि अब अपनी चुप्पी तोड़ने का समय आ गया है। तो कुल मिलाकर अब यही तस्वीर दिख रही है कि माननीयों को वातावरण के खराब होने का अहसास दिलाने के लिए धमाका करना पड़ता है। महज सोशल मीडिया (social media) पर अपना क्रोध दिखाने या पुलिस में सीधे-सादे तरीके से एफआईआर दर्ज करवाने का काम कायर करते हैं। बाकी तो असली दमदार वह ही हैं, जो केवल इशारों में कही गयी बात के सिरे जोड़कर कानून-व्यवस्था के ही सिर को धड़ से अलग करने पर आमादा हो जाएं।

न्यायपालिका के लिए मेरे मन में अपार सम्मान है और महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के लिए भी यही भाव हैं। इसलिए मैं साफ मानता हूं कि नूपुर शर्मा राजस्थान पुलिस में आवेदन देकर कहें कि कन्हैयालाल की हत्या का दोष वह अपने सिर पर लेती हैं। यह बापू का देश है। वह देश, जिसमें स्वामी श्रद्धानंद (Swami Shraddhanand) के हत्यारे अब्दुल राशिद (abdul rashid) का स्वयं बापू ने यह कहकर बचाव किया था कि श्रद्धानन्द ने अपने हिन्दू-समर्थक वाले विचार और कामों के चलते रशीद को इस हत्या के लिए उकसावा दिया। लेकिन बापू सुधारवादी भी थे। कालांतर में उन्होंने श्रद्धानन्द मामले में रशीद वाली मानसिकता के लिए अपनी श्रद्धा में परिवर्तन किया।

श्रद्धानंद की हत्या के बीस साल बाद बंगाल में डायरेक्ट एक्शन डे में हजारों हिन्दुओं को मार डाला गया। इस उकसावे की प्रतिक्रिया में ज्यों ही हिन्दुओं ने जवाब देना शुरू किया, त्यों ही बापू हिंसा रोकने के लिए अनशन पर बैठ गए थे। इस तरह गांधी जी ने हिंदुओं को उकसावे वाली हिंसा का पाप करने से रोक लिया था। बापू अब हमारे बीच नहीं हैं तो क्या? ये देश तो उनके बताए रास्ते पर ही चल रहा है। आज उकसावे की फिर नयी थ्योरी गढ़ी गयी है। नूपुर शर्मा को इस थ्योरी के अनुरूप हर गुनाह और गड़बड़ी की गठरी अपने सिर पर रखना ही होगी। शर्मा का अपराध अक्षम्य है, क्योंकि उन्होंने उस उकसावे को जन्म दिया, जिसके शोर से पहले तक ओवैसी ले लेकर सोनिया गांधी वाले मामले में माननीय सुकून की मीठी-मीठी नींद में डूबे हुए थे।

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