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मोदी के लिए अब देश के मन की बात सुनने का समय

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आज की पीढ़ी कई दर्दनाक कौतुहलों से मुक्त हो चुकी है। प्लेग, हैजा और चेचक से हुई अनगिनत मौतें अब अतीत का विषय बन गयी हैं। उनकी भयावहता अब केवल यादों में ही दर्ज है। मगर अब इन सबका मिला-जुला विकृत स्वरूप कोरोना (Corona) के रूप में सामने है। सो देश की मौजूदा पीढ़ी अब गुजरे समय की महामारियों (Pandemic) की भीषणता को व्यावहारिक रूप से समझ सकती है। इसी तरह आज सरकार के स्तर पर जो कुछ घट रहा है तो उसको समझने के लिए काफी-कुछ सहूलियत आपातकाल (Emergency) वाले अत्याचारी दिनों को याद कर के की जा सकती है। इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने प्रधानमंत्री (PM) पद बचाये रखने के लिए सारे देश पर घोषित तानाशाही (Masterful) थोप दी थीं। उन्होंने उस समय हर विरोधी का मुंह बंद कर दिया। और आरोप तो यह तक हैं कि इंदिरा के इशारे पर अनगिनत ऐसे लोगों की आवाज हमेशा के लिए बंद कर दी गयी, जो इंदिरा को पसंद नहीं आते थे। हजारों की आबादी जबरिया नसबंदी (Forced sterilization) की शिकार बना दी गयी।

उस समय इंदिरा शासन के नए तो नए, पुराने आलोचकों तक को ठिकाने लगा देने का दमन चक्र खूब चला। ‘इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा’ (Indira is India and India is Indira) वाली देश-विरोधी और चाटुकारिता में सनी सोच ने पूरे मुल्क की विचार श्रृंखला सहित सांसों पर भी जैसे संगीनों का पहरा लगा दिया था। तो जिन लोगों को आपातकाल के इन काले अध्यायों को महसूस कर सिहरन से भरना हो, उनके लिए ऐसा करना बहुत आसान कर दिया गया है। ऐसा करने के इच्छुक लोगों को चाहिए कि वे कोरोना काल (Corona time) में मौजूदा मोदी सरकार (Modi government) के कुछ क्रिया-कलापों पर एक नजर डाल लें। दिल्ली में अरविन्द गौतम (Arvind Gautam) नामक एक शख्स की तलाश में पुलिस पूरी मुस्तैदी से जुटी हुई है। गौतम सहित उसके करीब 25 समर्थकों के खिलाफ आपराधिक मामले (Criminal cases) दर्ज कर लिए गए हैं। गौतम पर आरोप है कि उसने पोस्टर छपवाकर उन्हें चस्पा करवाया तथा कोरोना काल में केन्द्र सरकार (Central government) की नाकामियों पर उससे कुछ चुभते हुए सवालों के उत्तर मांग लिए। सत्ता को यह नागवार गुजरा। अब गौतम के लिए कहा जा रहा है कि वह गिरफ्तारी से बचने के लिए यहां से वहां छिपता फिर रहा है और उसके साथ वालों को ‘इंडियाजमोस्ट वांटेड’ (India’s Most Wanted) घोषित करना अब महज एक औपचारिकता ही रह गयी है। तो यह सब तो देश ने अब से पहले इमरजेंसी के दौरान ही देखा था।





अब कोरोना के समय गौतम जैसी घटनाओं के मद्देनजर कह सकते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराने लगा है। ‘इंदिरा इज इंडिया’ की तरह ‘अब मोदी है तो मुमकिन है’ वाले दौर में आपातकाल को लेकर चर्चित एक लतीफा याद किया जा सकता है। एक आदमी सड़क पर बड़बड़ाता हुआ चला जा रहा था। बोल रहा था, ‘सब चोर हैं. अत्याचारी हैं. खून चूसने वाले है इन्हें तो एक लाइन में खड़ा करके गोली मार देना चाहिए।’ पुलिस ने उसे सरकार के खिलाफ बगावत की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। आदमी बोला, ‘मैंने तो अपने कथन में सरकार का नाम तक नहीं लिया।’ पुलिस ने जवाब दिया, ‘नाम लेने की क्या जरूरत थी, बाकी तो जो तुमने कहा, वह केवल सरकार के खिलाफ ही फिट बैठता है।’ यही स्थिति वर्तमान सरकार (Present government) ने बना दी है। लोकतंत्र में सवाल उठाना और जवाब मांगना तो बहुत स्वच्छ तथा पारदर्शी प्रक्रिया का बहुत जरूरी हिस्सा है। हमारी संसद (Our parliament) से लेकर तमाम निर्वाचित संस्थाओं में सत्तारूढ़ पक्ष की जिम्मेदारी तय की गयी है कि वे विपक्ष के प्रश्नों का उत्तर दें। ऐसे अधिकांश सवाल आम जनता से सीधे जुड़े होते हैं, लिहाजा एक तरह से यह मामला आवाम की आवाज को सुनने और उस दिशा में काम करने वाला ही हो जाता है। तो फिर इस देश में सवाल उठाना भला इतना बड़ा गुनाह कैसे करार दे दिया गया है?

 

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गौतम ने बहुत से बहुत यह गुनाह किया होगा कि सवालिया पोस्टर पर प्रकाशक के तौर पर अपना नाम नहीं लिखा हो। मगर यह अपराध तो हर चुनाव के समय ही होता है। तो फिर क्या गौतम का अपराध यह है कि उन्होंने सच की पड़ताल कर ली? झूठ को बेनकाब करने का वो ‘दुस्साहस’ कर गुजरे। अब कांग्रेस सक्रिय हुई है। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और प्रियंका वाड्रा (Priyanka vadra) चुनौती दे रहे हैं कि सरकार उन्हें भी गिरफ्तार कर ले, क्योंकि कोरोना (Corona) को लेकर सवाल तो वे भी उठा रहे हैं। माना कि यह मामला विशुद्ध रूप से ‘चाभी भरने से चलने वाले खिलौने’ जैसा है। क्योंकि सवाल उठाना हो या मुद्दा, राहुल तथा प्रियंका के लिए मामला आयातित या उधार लिए गए विचारों वाला ही हो जाता है। वे हर उस उड़ते तीर को अपना बताने के लायक ही रह गए हैं, जो तीर मोदी को लक्ष्य कर छोड़ा गया हो, किन्तु यह भी सही है कि सही मुद्दे पर उठे सवालों को और सुर तो मिलेंगे ही। ऐसा ही कांग्रेस (congress) भी कर रही है। है भले ही यह आपदाकाल लेकिन विपक्ष को सरकार की नाकामियों पर सवाल तो उठाने ही चाहिए। फिर मोदी (Modi) तो सात साल के अपने शासन को जिद्दी शासक के तौर पर बदलने में माहिर होते जा रहे हैं। उनका एक तरफा संवाद सात साल से देश सुन ही रहा है। कांग्रेस की तो संभावनाएं खत्म हो गर्इं हैं लेकिन मोदी में अभी भी संभावनाएं हैं। अभी उनमें सुधार की गुंजाइश इसलिए है कि देश वैसे ही विकल्प के अभाव में गुजर रहा है जैसा इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) या कांग्रेस के शासनकाल में था। मोदी के पास अभी संभलने का वक्त है। वे दुनिया की नेतागिरी छोड़ कर देश के नेता ही बन जाएं तो उनका, उनके राजनीतिक दल और उनकी राजनीतिक विचारधारा (political ideology) का भला हो जाएगा।

मोदी सरकार चाहे तो जनता के सवालों की प्रतिक्रिया में उत्तरों की बजाय दमनकारी गतिविधियों (Oppressive activities) का ही क्रम बढ़ाती चली जाए। दूसरा रास्ता यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चाहिए कि इन चुभते सवालों का उत्तर देने के लिए मौन तोड़ने का साहस दिखाएं। उनके लिए अब देश के मन की बात सुनना वर्तमान की अनिवार्यता बन चुकी है। बाकी तो फिर जो है, सो है….

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