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जादूगर कभी नहीं बताते

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अंग्रेज़ी शब्दकोष के लगातार बढ़ते मोटापे के बीच ‘मिडास टच’ ((Midas Touch) का अर्थ तलाश कर बातचीत में इसका इस्तेमाल करने वाला दौर पीछे छूट गया है। फिर भी आज इसकी याद पुनः हो आयी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ((Shivraj Singh Chauhan)) ने एक बार फिर दिखा दिया कि मिडास टच यानी जादुई शक्ति जैसा कोई तत्व तो वाकई उनके पास है। ‘बचपन’ ((Bachpan- bollywood movie)) फिल्म में अपने आसपास खिलखिलाते नौनिहालों के खुशी के लिए संजीव कुमार (Sanjiv Kumar) ने गाया था, ‘आया रे खिलौने वाला, खेल, खिलौने लेकर आया रे’

आज भोपाल की सड़कों पर इन्हीं मासूमों की खुशी के लिए ठेला लेकर खिलौने एकत्र करने उतरे शिवराज के चेहरे पर अपने जैसे कुशल नेता तथा संजीव कुमार की ही तरह से निपुण अभिनेता के जो मिले-जुले भाव दिखे, वह शिवराज को अपने पूर्ववर्ती तथा समवर्ती अनेक चेहरों से अलग स्थान प्रदान करते हैं।

यहां ध्यान रखना होगा कि यह अभिनय कोई स्वांग रचने जैसी प्रक्रिया नहीं है। आंगनबाड़ी के बच्चों की मदद के लिए चौहान ने इससे पहले किसानों से अनाज देने की अपील की थी। इसे अच्छा रिस्पॉन्स मिला। मुख्यमंत्री ने आज इन्हीं बच्चों के लिए ठेला चलाकर आम लोगों से खिलौनों सहित किताबें तथा खेल सामग्री एकत्र की। ये काम तो वल्लभ भवन या श्यामला हिल्स पर बैठे-बैठे भी किये जा सकते थे। सत्ता में इतनी क्षमता होती है कि यदि चौहान चाहते तो प्रदेश-भर में सरकारी नुमाइंदों को तैनात कर इस तरह के दान हेतु शिविर आयोजित कर सकते थे।

फिर कार्यक्रम के बाद उन्हें केवल यह करना था कि एक बयान जारी कर प्रदेश की जनता का आभार प्रकट कर देते। लेकिन जिस तरह खुद मुख्यमंत्री इस काम के लिए ठेला लेकर सड़क पर उतरे, वह बच्चों की खुशी एवं आवश्यकताओं के प्रति मुख्यमंत्री के सजीव सामाजिक सरोकार के प्रति दृढ़ आग्रह को दर्शाता है।

किसी सरकार के मुखिया का ऐसा सरोकार निश्चित ही लोकप्रियता पाने का हथकंडा लगे, लेकिन यह भी सही है कि ऐसे उपाय शासन के प्रति अवाम के विश्वास की मजबूती के नए आयाम स्थापित करते हैं। फिर शिवराज का तो आरंभ से यही तरीका रहा है। मैंने उन्हें भाजयुमो (BJYM) के दौर से लेकर विधायक, सांसद और मुख्यमंत्री के रूप में देखा, और ऐसे हर ओहदे के बीच चौहान का एक फैक्टर उल्लेखनीय रूप से कॉमन तथा कायम रहता आया है। वह पूरी सरलता के साथ उस सहजता को अपना लेते हैं, जो उन्हें ऐसे पलों के लिए किसी पद वाले कद के मायाजाल से अलग बिलकुल आम इंसान में तब्दील कर देती है।

यही वजह है कि ‘पांव-पांव वाले भैया’ से लेकर ‘मामा’ और कभी ‘टाइगर अभी ज़िंदा है’ वाले स्वरूपों में शिवराज कृत्रिम नहीं लगते। शायद यही ठोस कारण है कि शिवराज के लिए आज तक शरद जोशी ((Sharad Joshi)) की शैली में चली कोई कलम ‘पानी की समस्या’ के रूप में किसी राजनीतिक स्वांग की छिलाई करने का काम नहीं कर सकी है।

शिवराज की सहजता ऐसे मामलों में उस सुराख की गुंजाइश ही नहीं रहने देती, जिससे ‘खिलौने की व्यवस्था’ जैसे किसी व्यंग्य लेखन की रचना की जा सके।जिम्मेदार ओहदे वाले कई जनप्रतिनिधियों के इस तरह जनता के बीच जाने के असंख्य कवरेज मैंने भी किये हैं। लेकिन शिवराज के मामले में यहां बहुत बड़ा अंतर है।उनकी ऐसे पलों की प्रोटोकॉल से परे वाली सरलता खुद-ब-खुद किसी पठनीय समाचार का कारण बन जाती है। इसीलिए जनता के बीच से लौटने के बाद चौहान के ऐसे किसी कार्यक्रम के लिए शाम को कोई अफसर फोन करके यह सुनिश्चित नहीं करता कि मामला ‘जोरदार खबर’ बनने वाला ही हो जाए।

आप स्वतंत्र हैं कि ‘मिडास टच’ वाली बात को अतिशयोक्ति मान लें। मैं भी अपने आशय को इस के शब्दशः अर्थ के खूंटे से नहीं बांध रहा हूं। बात केवल प्रतीक रूप में विषय प्रस्तुतिकरण की है। बाकी यह तो पूरी तरह सही है कि ‘आया रे खिलौने वाला’ की तर्ज पर किया गया आज का आयोजन चौहान से जुड़े उस तिलिस्म को और गाढ़ा कर गया है, जिसे देखकर भौंचक्का समूह पूछता है, ‘ये कैसे हुआ?’ और जवाब में स्वर आते हैं, ‘जादूगर कभी नहीं बताते।’

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