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कर्नाटक में कांग्रेस का ‘मैंने ऐसा तो नहीं कहा था’ वाला नाटक

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गुजरे दौर की एक फिल्म याद आ गयी। नायक रूमानियत से भरा गीत गा रहा है, लेकिन हर अंतरे पर नायिका उसके सारे किए-धरे पर यह कह कर पानी फेर दे रही है, ‘मैंने ऐसा तो नहीं कहा था। कर्नाटक में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। यहां करीब तीन महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीती। चुनाव के दरमियान पार्टी ने इस राज्य और उसके मतदाताओं के लिए जो प्रेम दिखाया, वह अब रोमांस की शक्ल में मतदाता के सिर चढ़कर बोल रहा है। क्योंकि कांग्रेस ने राज्य के ऐसे विकास और इस-इस तरह की सुख-सुविधाओं की बात की थी, जो लोगों को मंत्रमुग्ध कर देने वाली थीं। लेकिन अब दृश्य पलट गया है।

इस राज्य के उप मुख्य्मंत्री डीके शिवकुमार ने साफ़ कह दिया है कि प्रदेश में जनता की सुविधा और बड़ी आवश्यकता वाले काम भी नहीं किए जाएंगे। वजह यह कि राज्य की सरकार को अपने पांच सूत्रीय कार्यक्रम लागू करने के लिए 40 हजार करोड़ रुपए की दरकार है और यदि राज्य अन्य कामों पर पैसा खर्च कर देगा तो उन कार्यक्रमों के लिए खर्च का प्रबंध नहीं हो पाएगा। शिवकुमार ने यहां तक कि सिंचाई और पीडब्ल्यूडी जैसे आम जनता से सीधे जुड़े विभागों के काम पर भी रोक लगा दी है। अब मतदाता हतप्रभ है और सरकार का उसके लिए रुख, ‘मैंने ऐसा तो नहीं कहा था’ वाला हो गया है।

यह सब उस समय हो रहा है, जब कर्नाटक की जीत से उत्साहित कांग्रेस मध्यप्रदेश में भी दनादन लोक-लुभावनी घोषणाएं कर रही है। प्रियंका वाड्रा 500 रुपए में घरेलु गैस का सिलेंडर देने की बात कह चुकी हैं। कमलनाथ किसानों को बारह घंटे बिजली और महिलाओं के लिए हर महीने डेढ़ हजार रुपए की राशि देने का ऐलान कर चुके हैं। किसानों को 5 हार्स पावर मुफ्त मोटर कनेक्शन, ब्याज माफी जैसे वादे किए जा रहे हैं। ऐसे में कर्नाटक की स्थिति को देखकर मध्यप्रदेश के मतदाता का यह सोचकर चिंतित होना स्वाभाविक हो जाता है कि कहीं उसे भी कांग्रेस पर विश्वास करने की कीमत इस दक्षिणी राज्य की तरह ही न चुकानी पड़ जाए।

और जब यह तथ्य स्थापित है कि मुख्यमंत्री रहते हुए कमलनाथ दस दिन में राज्य के किसानों का कर्ज माफ़ करने की राहुल गांधी की घोषणा पूरी नहीं कर सके तो इस उदाहरण और कर्नाटक के हालात की परछाई में तो मतदाता के कांग्रेस के प्रति विश्वास की रोशनी में और कमी होने की बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता है। फिर बात केवल कर्नाटक की नहीं है। हिमाचल प्रदेश में भले ही कांग्रेस ने अपने वायदे के मुताबिक़ पुरानी पेंशन लागू कर दी, जिसका पैसा आज खर्च नहीं होना है तो भी बाकी वादों के चलते वहां के वित्तीय हालात ऐसे लड़खड़ाए कि सरकार के खजाने में कर्मचारियों के वेतन का पैसा ही नहीं बचा। इस राज्य में डीजल और पेट्रोल पर इतना भारी टैक्स लगा दिया गया है कि वहां आम जनता की कमर ही टूट गयी है।

फिर बात केवल कांग्रेस की भी नहीं है। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल अपने विज्ञापन पर करोड़ो रुपए खर्च कर रहे हैं, लेकिन कोरोना से तिल-तिल कर मर रही दिल्ली की जनता के लिए अस्पताल तो दूर, ऑक्सीजन तक का प्रबंध करने से वह हाथ खड़े कर देते हैं। इसी रेवड़ी कल्चर के चलते पंजाब में आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत मान की मुफ्त की रेवड़ी बांटने की प्रक्रिया में ऐसी राशि खर्च हुई कि लोग वहां बुनियादी सुविधाओं के लिए भी तरस रहे हैं। ऐसे मे मध्यप्रदेश के मतदाताओं के लिए यह विचार करने वाली स्थिति है कि वह कांग्रेस सहित अन्य दलों की ऐसी लोक-लुभावनी घोषणाओं पर यकीन करे या नहीं।

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