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मनमोहन को सच्ची श्रद्धांजलि कैसे देंंगे आज के कांग्रेसी?

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प्रकाश भटनागर

देश के प्रमुख अर्थशास्त्री, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इतिहास में दर्ज हो गए। ये एक ऐसा इतिहास है जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के नेतृत्व में वित्तमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह ने देश की आर्थिक तरक्की की नींव रखी। नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के उस एक कार्यकाल के बाद देश में कई सरकारें आर्इं-गर्इं। खुद मनमोहन सिंह दस साल लगातार देश के प्रधानमंत्री रहे। गठबंधन की सरकारें बनी। भाजपा की सरकार को एक पूरा दशक मिला। अब भी उसके नेतृत्व में गठबंधन सरकार है। लेकिन मजाल है कि किसी ने मनमोहन सिंह की रखी नींव से छेड़छाड़ की हो। ये जरूर हुआ कि कुछ सही, कुछ गलत तरीके से उनकी बनाई नीतियां आगे बढ़ती रहीं। इसलिए देश इस अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री का हमेशा रिणी रहेगा।

मगर फिर वो एक दिन याद आ रहा है। जब राहुल गांधी किसी के निधन के बाद शोक पुस्तिका में अपना शोक दर्ज कराने के लिए अपने मोबाइल फोन में दर्ज किसी संदेश का सहारा लेते दिखे थे। इस स्मृति का वर्तमान से यह साम्य कि आज तो पूरी कांग्रेस ही उस दिन वाले गांधी जैसी नजर आ रही है। ‘पूरी कांग्रेस’ या ‘पूरे कांग्रेसी’ इसलिए कहा जा सकता है कि क्योंकि ये दल तो अब वही है, जो राहुल हैं और इस दल के होने की पूर्णता के लिहाज से भी गांधी की हां में हां मिलाना जरूरी ही है।

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन का समाचार सुनने के बाद यह सुनना बहुत जरूरी हो जाता है कि कांग्रेस अपने इस नेता को किस रूप में याद करेगी? ‘याद रखना’ कहना तो शायद ही संभव हो। डॉ. सिंह का नाम भले ही बहुत बड़ा हो, लेकिन उनके उपनाम में ‘नेहरू’ या ‘गांधी’ नहीं था। बहरहाल, श्रद्धांजलि देना बहुत आसान है। मगर मनमोहन को याद करना तो कांग्रेस के लिए हाजमा बिगाड़ने जैसा मामला हो सकता है। यह पार्टी आज उन सभी आर्थिक सुधारों का विरोध करने पर पिल पड़ी है, जिनके पिलर यानी खंभे के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह की भूमिका को कोई भी नकार नहीं सकता।

राहुल गांधी से बहुत अधिक समझदारी की अपेक्षा करना बेमानी है। कांग्रेस में आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो इस बात को जानते और मानते होंगे कि मोदी सरकार की आर्थिक और औद्योगिक नीतियों का विरोध करने का एक मतलब मनमोहन सिंह के देश के लिए अवदान पर मौन साध लेने जैसे अत्याचार से कम वाला विषय नहीं है। मोदी सरकार की इन नीतियों को लागू करने में कई चूक हो सकती है, मगर ये सब तो डा. मनमोहन सिंह भी करना चाहते ही थे। प्रधानमंत्री रहते हुए भी उन्हें नहीं करने दिया गया, ये अलग मसला है। इसलिए ऐसे लोग  भला कैसे कुछ बोलेंगे? ये कांग्रेस (इंदिरा) नहीं बल्कि कांग्रेस (राहुल) वाला राहू काल झेल रही पार्टी का मामला है। इसलिए समझदारों की जमात भी इस पर चुप रहने में ही अपनी खैर मानेगी कि अडाणी,अम्बानी को लेकर मौजूदा केंद्र सरकार पर उनके नेता के हमले मूलत: मनमोहन सिंह की आत्मा पर प्रहार वाली बात ही है।

पूंजीवादी देशों की बुरी दशा और अनिश्चय से भरी दिशा किसी से छिपी नहीं है। विकसित देश भी अर्थ वाली नीतियों के नाम पर अनर्थ के चलते तंगी और बेरोजगारी से बुरी तरह जूझ रहे हैं। मगर भारत का हिसाब अलग है। यह अलग तब शुरू हुआ, जब मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण की बात शुरू की। डॉ. सिंह की उदारीकरण की नीतियों ने देश को नई राह दिखाई। मगर अफसोस इस बात का कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने सिंह के सपनों को साकार होने का अवसर नहीं दिया।

अब जबकि मोदी सरकार आर्थिक और औद्योगिक सुधार के कार्यक्रमों को लेकर तेजी से आगे बढ़ चुकी है, तब उस गति की प्रगति को ध्यान से देखिए। उसमें कहीं न कहीं सिंह के कार्यक्रमों को उल्लेखनीय सुधार या कमियों के साथ अकल्पनीय स्वरूप प्रदान करने वाला तत्व शामिल है। जीएसटी मनमोहन सिंह का ही सपना था। वो लागू नहीं कर पाए। मगर मोदी ने कर दी। इसे लागू करने में कई कमियां हो सकती हंै। जीएसटी काउंसिंल में देश के तमाम राज्यों के वित्तमंत्री भी शामिल हंै, इसलिए वहां हो रही गड़बड़ियों में सभी की हिस्सेदारी है।  मगर  भाजपा का विरोध करना है और क्योंकि नरेंद्र मोदी के हर काम को गलत ठहराना है, इसलिए कांग्रेस (राहुल) भेड़चाल पर चलते हुए अपने ही पूर्व प्रधानमंत्री की सोच का शोचनीय तरीके से विरोध करने पर पिल पड़ी है। वह यह देखकर भी देखना नहीं चाहती है कि उदारीकरण के चलते देश में विदेश निवेश बढ़ने और स्थानीय उद्योगों को वैश्विक परिदृश्य पर हुनर दिखाने के सपने की नींव मनमोहन ने ही रखी थी।जिससे आज रोजगार में वृद्धि सहित देश की अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार का मार्ग प्रशस्त हो सका है।

अब भला जिनका सपना किसी भी तरह प्रधानमंत्री का पद पाना हो,  उनके लिए अपने अर्थशास्त्री विद्वान नेता के सपनों की भला क्या हैसियत रह जाती है? इसीलिए देखिए कि सिंह को श्रद्धांजलि देते समय कांग्रेस उनके सुधार कार्यक्रमों का उल्लेख करने से भी बचने की मुद्रा में ही बात रख पा रही है। राहुल गांधी अपनी श्रद्धांजलि में जब सिंह की आर्थिक समझ की तारीफ करते हैं, तब वह इसका खुलासा करने से पीछे होते भी नजर आते हैं। जाहिर है कि उन्हें इस विषय की गहराई में जाने पर अतीत के तार आज से जुड़ने का खौफ सता रहा है। इसलिए निश्चित ही एक बार फिर कोई ऐसा संदेश किसी जगह से चला होगा, जिस पर यह गाइडलाइन होगी कि आज की कांग्रेस को कल वाले मनमोहन सिंह के लिए क्या लिखना है। इसमें भी खास जोर इस बात पर होगा कि उनके बारे में क्या नहीं लिखा जाना है। आखिर ये आज की कांग्रेस है। ये राहुल गांधी की कांग्रेस है। मल्लिकार्जुन खड़गे तो वैसे ही हैं, जैसे प्रधानमंत्री रहते हुए डॉ. मनमोहन सिंह कर दिए गए थे।

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