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वन नेशन वन इलेक्शन पर पूर्व सीजेआई का रूख सरकार से अलग

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देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने एक अहम मसले पर केंद्र सरकार के खिलाफ स्टैंड लिया है। इस कारण सबकी नजरें अब पूर्व सीजेआई की ओर मुड़ गई है।

राज्यसभा सांसद गोगोई की यह राय देश में वन नेशन वन इलेक्शन कराने के प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के रुख के खिलाफ है! दरअसल, वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर बनाए जाने वाले कानून से पहले जस्टिस गोगोई ने यह राय दी है।

इस प्रस्तावित कानून से संबंधित विधेयक संसद की संयुक्त संसदीय समिति के पास है। इसको लेकर हुई संसदीय समिति की बैठक में रंजन गोगोई ने अपनी राय रखी है, जो सरकार के रुख से अलग है।

जस्टिस गोगोई ने कहा कि चुनाव आयोग को किसी राज्य के विधानसभा के कार्यकाल का निर्णय करने के लिए अनियंत्रित शक्तियां नहीं दी जा सकतीं। गोगोई ने मंगलवार 11 मार्च को संसद की संयुक्त समिति के साथ तीन घंटे की चर्चा में एक साथ चुनावों पर बिल में खामियों की ओर इशारा किया! उन्होंने चेतावनी दी कि चुनाव आयोग (ईसी) को शेड्यूल तय करने के लिए अनियंत्रित शक्तियां देना उचित नहीं होगा।

अंग्रेजी अखबार द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली संसदीय संयुक्त समिति संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 की समीक्षा कर रही है, जिसे 17 दिसंबर, 2024 को लोकसभा में पेश किया गया था। यह विधेयक चुनाव आयोग को लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने का अधिकार देने का प्रयास करता है।

सूत्रों के अनुसार, डीएमके राज्यसभा सदस्य पी. विल्सन ने बताया कि नए बिल की धारा 82 ए(5) में कहा गया है कि यदि ईसी की राय है कि किसी विधानसभा के चुनाव लोकसभा के आम चुनाव के साथ नहीं कराए जा सकते, तो वह राष्ट्रपति को सिफारिश कर सकता है कि उस विधानसभा के चुनाव बाद में कराए जाएं! चुनाव आयोग के लिए समय सीमा निर्दिष्ट न करके, क्या यह कानून उसे मनमानी और अनियंत्रित शक्तियां नहीं दे रहा है।

जस्टिस गोगोई ने इस तर्क को स्वीकार किया और कहा कि यह उचित नहीं होगा और इस धारा को संशोधित करने की आवश्यकता है ताकि खामियों को दूर किया जा सके और यह कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है! उन्होंने कहा कि ईसी को राज्य विधानसभा के कार्यकाल को बढ़ाने या घटाने के लिए अनियंत्रित शक्तियां नहीं दी जा सकतीं।

चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने 1991 के आम चुनावों का उदाहरण भी दिया, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने पंजाब में कानून और व्यवस्था की स्थिति का हवाला देते हुए राज्य में आम चुनाव रोक दिए थे! पंजाब की लोकसभा सीटों के चुनाव 1992 में विधानसभा चुनाव के साथ हुए थे। चुनाव आयोग के पास केंद्र सरकार के विपरीत ऐसे निर्णय लेने के लिए मशीनरी नहीं है। पिछली बैठक में भारत के पूर्व मुख्य जस्टिस यूयू ललित ने भी बिल में कई खामियों की ओर इशारा किया था और कहा था कि यह कानूनी चुनौती का सामना नहीं कर सकता।

इस बीच पैनल ने बिल पर आम जनता की राय प्राप्त करने के लिए एक वेबसाइट लॉन्च करने का निर्णय लिया है।

यह कदम विपक्ष द्वारा पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति द्वारा प्रस्तुत किए गए इस दावे के बाद उठाया गया है कि बिल पर प्राप्त 80% प्रतिक्रियाएं एक साथ चुनावों के पक्ष में थीं। संसदीय पैनल ने कोविंद समिति से सभी प्रतिक्रियाएं प्रस्तुत करने के लिए कहा है।

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