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पहले पूरी तरह उगने तो दीजिये इस सूरज को

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ये निश्चित ही एक लंबी रात के ख़त्म होने का संकेत है। लेकिन इसे सुबह के आगमन की आशा से नहीं जोड़ा जा सकता है। हमारी कई दिनों की बेचैन साँसों में हम सप्रयास राहत का भाव उतारने लगे हैं। बंद=बंद-सी जिंदगी को हम फिर खुलेपन का आसमान दिखाने के लिए तैयार होने लगे हैं। उम्मीदों के तोरणद्वार सजाये जा रहे हैं कि स्वतंत्रता (Freedom) की बयार का स्वागत किया जा सके। आशा की शहनाइयों (Clarinet) को झाड़-पोंछकर फिर से बजाने की तैयारी में रियाज भी शुरू कर दिया गया है। कैलेण्डर को उम्मीद भरी नज़रों से देखते हम अँगुलियों पर जैसे मंत्रोच्चार कर रहे हों, ‘बस पांच दिन और।’ सैर-सपाटे वाले स्थान और बाजार सहित मनोरंजन (entertainment) के तमाम ठिये हमें एडवांस में ही बुलावा देते दिखने लगे हैं। और यह सब इसलिए कि मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में एक जून से कोरोना कर्फ्यू (Corona curfew) को हटाने का काम शुरू कर दिया जाएगा।

निश्चित ही बीती 13 अप्रैल से अब तक हम एक तरह की कैद में ही रहे। पूरे बगावती तेवर (Rebellious attitude) के साथ। यानी, जिसे और जैसा भी मौका मिला, उसने वैसे इस कर्फ्यू का उल्लंघन किया। लोग पकडे गए कि इस बंद के बीच भी वे तफरीह करने घर से बाहर निकल गए थे। तो जाहिर है कि इन तेवरों का साधिकार इस्तेमाल करने की तारीख नजदीक आने से हर्ष का माहौल (Happy atmosphere) ही होगा। लेकिन क्या ऐसा करना उचित होगा? जून की पहली तारीख Corona curfew से निजात भर की सूचक है, Corona से मुक्ति की नहीं। सारी दुनिया के विद्वान् चेता रहे हैं कि इस घातक वायरस (Deadly virus) की तीसरी लहर (Third Wave) भी दस्तक देने ही वाली है। वो लहर, जिस पर सवार होकर बच्चों की सेहत के लिए प्रलयंकारी चक्रवात (Catastrophic cyclone) आने को तैयार बैठा है। तो फिर क्या ये उचित नहीं होगा कि इस स्वतंत्रता को हम संभालकर इस्तेमाल करने का संकल्प लें?





कोरोना की पहली वेव कमजोर होते ही हम घातक भूल करने पर आमादा हो गए थे। मेले में और रेले में हम पीछे नहीं रहे. हमने मास्क को खूंटी पर टांग दिया। सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) की अवधारणा को सूली पर टांग दिया। फिर जो नतीजा हुआ, वह एक महीने से ज़रा ज्यादा की अवधि में रिकॉर्ड अकाल मौतों (Record famine deaths) के रूप में हमारे सामने आ गया। इस अवधि में जगह की कमी से बिलखते अस्पताल (Hospital) और श्मशान दरअसल यही बता रहे थे कि इंसान ही इंसान का सबसे बड़ा शत्रु बनकर सामने आया है। पहली लहर कमजोर होते ही हमने ही कोरोना को जैसे बिसरा दिया। हम जूनून से भरे हुए थे कि अब कोई भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मगर फिर जो हुआ, उसने हमें दुनिया में कोरोना से सर्वाधिक बुरी तरह से प्रभावित देशों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। हम वह देश बन गए, जिसमें हर दिन अपने परिचितों की थोकबंद अकाल मौत भी महज किसी सूचना तक लेंगे लगीं। इतने असामयिक निधन कि हम आंसुओं से रीत गए और संवेदनाओं से चुक गए। यहां तक कि ‘किस-किस को याद कीजिये, किस-किस पे रोइये’ जैसा मजाकिया वाक्य भी हमें घनघोर दुःख के पलों के लिए अपने जीवन में आत्मसात करना पड़ गया।

 

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तो क्या अब हम फिर से वही सब और भी भयावह तरीके से दोहराने के लिए तैयार हो रहे हैं? अब तो समय है यह संकल्प लेने का कि आने वाले अनिश्चितकाल तक अपने-अपने जीवन में स्व-निर्धारित अनुशासन के साथ Corona curfew का पालन करेंगे। मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग हमारी दिनचर्या का अनिवार्य अनुशासन (Compulsory discipline) होंगे। निश्चित ही रोजी-रोटी सहित दीगर और कई जरूरतों के लिए घर से बाहर निकलना जरूरी है। किन्तु इस जरूरत को कुछ नियंत्रित कर आने वाली बड़ी मुसीबत से तो बचा ही जा सकता है। जून शुरू होने के बाद भी घर से तब ही निकलें, जब ऐसा करना निहायत ही अनिवार्य हो। मास्क लगाए और दूसरों से दूरी भी बनाये रखें। हरेक को यह संकल्प लेना होगा कि वह ऐसी एक मछली (fish) बनने से बचेगा जो मानवता के इस विशाल तालाब को गंदा कर देती है। हमें तो बल्कि एक पराजय बोध और एक अहसास- ए-कमतरी के साथ जीना शुरू कर देना होगा कि आज की तारीख में कोरोना ने दुनिया भर में विज्ञान और चिकित्सा जगत (Medical world) की क्रांतियों को बौना साबित कर दिया है। ये अहसास उस ‘फियर इज द की’ (Fear is the Key) वाला काम करेंगे, जो हमें डर के मारे ही सही, मगर कोरोना से बचने के लिए तमाम उपाय लगातार अपनाने के लिए प्रेरित करेंगे। हमें यह ध्यान रखना होगा कि कोविशील्ड की खुराकें भी कोरोना से पूरी तरह बचाव की ग्यारंटी नहीं हैं. उस पर से ब्लैक फंगस जैसे दानव भी हमारे सामने अट्टहास कर रहे हैं. तो फिर इस सबके बीच किसी एक जून का किसी स्वतंत्रता का उत्सव मनाने की कोई नैतिक गुंजाईश कहाँ से रह जाती है? इस रात की अभी सुबह नहीं हुई है. हां, अँधेरा कुछ छंटता दिख रहा है, मगर कम से कम निरोगी और निरापद होने की आशा का सूरज पूरी तरह उगने तो दीजिये।

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