भाजपा ने मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए घोषित अपनी दूसरी सूची में एक तीर से कई निशाने साधे हैं। सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे वाला अंदाज है यह। भाजपा की इस दूसरी सूची ने मुझे अपने एक दोस्त की राजस्थान यात्रा के संस्मरण को ताजा करा दिया। उस दोस्त ने सुनाया था, गाइड उन्हें स्थानीय बुनकरों द्वारा बनाए गए कपड़ों की दुकान पर ले गया। दोस्त की इसमें कतई रूचि नहीं थी। गाइड ने उसे भरोसा दिलाया कि उस दुकान पर सामान खरीदना बिलकुल भी जरूरी नहीं है। इसलिए निश्चिंत होकर वहां जाया जा सकता है। बहरहाल दोस्त जब दुकान से बाहर आया तो उसके दोनों हाथ खरीदे गए सामान से भरे हुए थे। वह बोला, ‘दुकान वाले ने एक भी वस्तु की कीमत की बात नहीं की, लेकिन उसने मेरे बुजुर्ग माता-पिता से लेकर पत्नी और बच्चों से जुड़े उत्पाद ‘ये देखिए आपके फलाने के लिए’ वाले अंदाज में कुछ इस तरह दिखाए कि मैं भावनाओं में बहकर खरीदारी करता चला गया। बाद में समझ आया कि गाइड बातचीत में पहले ही मुझसे मेरे परिवार का विवरण ले चुका था। और उसी के आधार पर दुकानदार ने दोस्त को एक मोटे आसामी में तब्दील कर दिया गया।
विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा की दूसरी सूची इसी किस्से से मिलती जुलती है। चुनाव में आप किसी को ‘हमें ही वोट दो’ कहकर बाध्य नहीं कर सकते, लेकिन यह माहौल तो बना ही सकते हैं कि मतदाता के पास आप से हटकर और कोई विकल्प की संभावना कम रह जाए। यूं नहीं कि प्रदेश का मतदाता शिवराज सिंह चौहान से नाखुश है। हां, ऐसे नाखुश लोगों की भाजपा में अच्छी-खासी संख्या पनप चुकी है। और जहां तक मतदाता की बात है तो यह भी स्थापित तथ्य है कि चौथे कार्यकाल के बाद शिवराज अब 2018 के मुकाबले और भी अधिक एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर से जूझ रहे हैं। एकरसता से उपजी ऊब दिखने भी लगी है।
इसलिए जब नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते जैसे केंद्रीय राजनीति के स्थापित चेहरों को एक बार फिर विधानसभा की देहरी पर लाकर बैठा दिया जाता है तो यह संदेश साफ है कि भाजपा राज्य का मूड भांपकर आगे बढ़ रही है। उसने पार्टी के नाखुश तबके को यह संदेश दे दिया है कि शिवराज के अलावा और भी विकल्प तैयार हैं। मतदाता को भी प्रकारांतर से यही जता दिया गया है। तो अब ऐसे-ऐसे दिग्गज चेहरे भी सामने हैं कि पार्टीजनों के लिए गुस्सा बनाए रखने की खास गुंजाईश नहीं बची है। और मतदाता भी विकल्पों में से किसी के प्रभाव में आकर भाजपा को ही समर्थन देने वाली मानसिकता से घिर सकता है।
जो लोग इन नामों की घोषणा को चौंका देने वाली बता रहे हैं, वह भाजपा की रीति और नीति को नजदीक से नहीं समझते हैं। यह उस पार्टी का मामला है, जो जीत सुनिश्चित होने की स्थिति में भी हर कदम फूंक-फूंक कर उठाती है। तीन केंद्रीय मंत्रियों सहित सात सांसदों को टिकट देना ऐसी ही रणनीति का हिस्सा है। इन सभी को यदि अपना दमखम दिखाना है, तो फिर उनके लिए जरूरी होगा कि अपने-अपने क्षेत्र में कम से कम जिला स्तर तक खुद के साथ ही भाजपा के शेष प्रत्याशियों की विजय सुनिश्चित करें। अब इसका लाभ अंतत: पार्टी को ही मिलेगा।
अब चाहे तो यह संशय भी मन में ला सकते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस बार विधानसभा का यह चुनाव लड़ेंगे भी या नहीं। हो सकता कि भाजपा इस दिशा में भी कोई अलग तैयारी लेकर चल रही हो। राज्य में आज की तारीख में भी वह स्थिति नहीं है कि पार्टी शिवराज को माइनस करके आगे बढ़ने की बात सोच सके। फिर पार्टी यह भी जानती है कि शिवराज फैक्टर के चलते ही उसे प्रदेश में सबसे लंबे समय के शासन का अवसर मिला है। इसलिए संभव यही दिखता है कि पार्टी पांचवी बार सरकार बनने की सूरत में शिवराज को ही फिर से मुख्यमंत्री भी बनाए। फिर करीब छह महीने बाद उन्हें लोकसभा का टिकट देकर उनकी मध्यप्रदेश से सम्मानजनक विदाई और केंद्र में समुचित स्थान मिलना सुनिश्चित किया जा सके। फिर आज जो सांसद विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं, वह भी नतीजों के बाद एक बार फिर लोकसभा चुनाव के समर में उतारे जा सकते हैं। तो फिलहाल की यह उथल पुथल इस बात का जतन दिखती है कि कैसे चुनाव में फिर सफलता हासिल की जा सके। भविष्य में शायद फिर सब कुछ वैसा ही कर दिया जाए, जैसा सोमवार से पहले तक था। अभी तो भाजपाइयों के नाराज वर्ग सहित एंटी इंकम्बेंसी से प्रभावित मतदाता राजस्थान की उस दुकान से बाहर निकलते दोस्त जैसे ही प्रतीत हो रहे हैं। पार्टी के रणनीतिकार इन दोनों ही वर्ग के लिए ‘ये पसंद नहीं है, तो ये देखिए’ वाली शैली में तगड़ी बाड़ाबंदी कर चुके हैं।