पता नहीं ये कैसा बदलाव है। रायपुर में सोनिया गांधी ने राजनीति से संन्यास लेने के संकेत दिए और प्रतिक्रिया में कुछ हुआ ही नहीं। कहां गए वो रणबांकुरे समर्थक, जो एक बार ऐसी ही घोषणा के खिलाफ जान देने पर आमादा हो गए थे? याद है ना मई, 1999 का वह समय, जब सोनिया जी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। बाबा रे! भोपाल के रोशनपुरा चौराहे के समीप कांग्रेस के लोग एक बिल्डिंग पर चढ़ गए थे। धमकी देने लगे थे कि यदि इस्तीफ़ा वापस न लिया गया तो वे कूदकर जान दे देंगे। बात गंभीर थी। क्योंकि ये वह वक्त था, जब कांग्रेस के तीन दिग्गज नेताओं शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर उनका विरोध कर दिया था। जवाब में श्रीमती गांधी ने पूरे नाटकीय अंदाज में अध्यक्ष पद त्यागने की पेशकश की और उससे भी अधिक मेलोड्रामाटिक तरीके से आत्महत्या की धमकी वाले अंदाज में भाई लोग विचलित हो उठे थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने तो दिल्ली में अपना पद छोड़ने की घोषणा कर दी थी। वो तो भला हो उस समय के राज्यपाल डॉ. भाई महावीर का, जिन्होंने यह पूछ लिया था कि सिंह का इस्तीफ़ा उन्हें कब मिलेगा। पलक झपकते ही दिग्विजय दिल्ली को छोड़कर भोपाल आ गए थे। यहां मीडिया से बोले, ‘मैंने इस्तीफा नहीं दिया, देने की बात भर कही थी।’ खैर, पद त्यागने से लेकर प्राण त्यागने वाले ये प्रहसन जल्दी ही ख़त्म हो गए। डॉ. धर्मवीर भारती की कृति ‘गुनाहों का देवता’ की अंतिम पंक्ति ‘जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो’ की तरह।
तो रायपुर में ऐसा क्या हुआ कि सोनिया की बात को लेकर भूचाल वाले हालात नहीं बने? खैर, पार्टी के भीतर का मामला है। जरूरी नहीं कि हर बार निष्ठा का परिचय हंगामे के जरिए ही दिया जाए। लेकिन एक परिचय सोनिया जी ने बड़े स्पष्ट तरीके से दे दिया। कहा कि उनकी पारी भारत जोड़ो यात्रा के साथ समाप्त हो सकती है। बेचारे तथाकथित राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे। उनके कान यह सुनने के लिए तरस गए होंगे कि सोनिया जी लगे हाथ शायद यह भी कह दें कि खड़गे जी को पार्टी की कमान सौंपने के बाद अब मैं आश्वस्त भाव से अपनी पारी समाप्त कर सकती हूं।
लेकिन ऐसा न होना था और न ही हुआ। तो इस तरह साफ़ है कि सोनिया ने अपनी पारी की अगली कड़ी को लेकर राहुल पर ही विश्वास जताया है। फिर राहुल तो विलक्षण किस्म के विद्वान् हैं ही। रायपुर में कह रहे हैं कि भारत जोड़ो यात्रा से उन्होंने बहुत-कुछ सीखा। आगे वह यह भी कहते हैं कि ‘कई ऐसी बातें सुनीं, जो किसी को बता नहीं सकता। बता भी दूं, तो समझा नहीं सकता।’ हद है। अरे जो सुना, वो बताया क्यों नहीं जा सकता? कहीं गांधी उन कश्मीरियों की बात तो नहीं कर रहे, जिनके वीडियो सोशल मीडिया पर खूब देखे जा रहे हैं? जो कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी के कारण ही कश्मीर इतना सुरक्षित हो सका है कि राहुल वहां तक अपनी यात्रा लाने का साहस दिखा सके। अब यदि ये अनुमान सही है तो फिर निश्चित ही राहुल इस बात को किसी को बताने के बाद भी समझा नहीं पाएंगे। अब जिस यात्रा का निष्कर्ष उसके नेतृत्वकर्ता तक न समझा पाएं, उस यात्रा के भरोसे यदि सोनिया गांधी विश्राम की मानसिकता में दिख रहा हैं, तो फिर कांग्रेस का भगवान ही मालिक है।
रायपुर में राहुल सहित प्रियंका वाड्रा को सुनिए। वही पुराने आरोप। कोई नया कार्यक्रम नहीं। राहुल कह रहे हैं कि यात्रा से उन्होंने बहुत-कुछ सीखा। यदि सचमुच ऐसा है कि फिर यह सीख यात्रा पूरी होने के बाद से रायपुर तक एक भी बार प्रकट रूप में पार्टी जनों तक क्यों नहीं प्रेषित की गयी? फिलहाल राहुल को सुन और समझकर एक ही बात कही जा सकती है कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक चलने-फिरने के बीच उनके अंदर केवल एक बदलाव आया है। वह यह कि उनके सफ़ेद बाल और इसी रंग की दाढ़ी ऊग आयी है। ये बाल उन्होंने धूप में ही सफ़ेद किए हैं, यह उनकी यथावत सोच को देखकर साफ़ समझ आता है।