ये हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा का दौर है। वो भी कई मामलों में बहुत अजीब। अनेक लोग किसी शोक सभा में अपने उद्बोधन के बाद यह पता लगाने की कोशिश में जुट जाते हैं कि उन्होंने जो बोला, वह बाकी ‘शोकाकुलों’ के मुकाबले कितना अधिक प्रभावी था। भाजपा के लिए कल चिंता और चिंतन वाली स्थिति थी। नगरीय निकाय के चुनाव में धार में पार्टी की जो दुर्गति हुई, उस पर प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में मुख्य रूप से विचार हुआ। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस पराजय को सीधे बगावत करने वालों से जोड़ा। वह बोले कि ऐसे लोगों को साथ जोड़े रखने का कोई अर्थ नहीं, जो पार्टी के ही खिलाफ चुनाव लड़ लें। संगठन महामंत्री अजय जामवाल ने पार्टी के लोगों की टिकट की होड़ मचाने की बजाय काम करने की सलाह दी। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने युवा मतदाता को साधने और 51 प्रतिशत वोट हासिल करने की जरूरत बताई।
इस सबसे अलग इधर पार्टी के प्रदेश प्रभारी पी मुरलीधर राव ने वह विचित्र तान छेड़ी कि हर कोई निश्चित रूप से सन्न रह गया होगा और दिमागी रूप से सुन्न भी हो गया होगा। राव ने भाजपा कार्यकर्ताओं को ‘सबसे बड़ा झूठा’ बता दिया। कहा कि कार्यकर्ता जमीनी हकीकत नहीं बताते। उन्होंने बरसते हुए पार्टी के सांसदों, विधायकों और जिलाध्यक्षों को ‘सबसे बड़ा लाभार्थी’ करार भी दे दिया। साथ ही इस वाक्य का पुछल्ला भी जोड़ दिया, ‘मैं हमेशा फीडबैक लेता हूं।’ कहने का आशय ‘ताकि सनद रहे कि मैं हवा में बात नहीं करता’ की तरह लगता है।
मुरलीधर राव भाजपा के पुराने नेता हैं। संघ की पृष्ठभूमि वाले हैं। लेकिन कल जिस तरह की बात उन्होंने कहीं, उनसे यही लगा कि धार की हार पर वह शिवराज और जामवाल से अधिक धारदार तरीके से अपनी बात कहने के फेर में कुछ का कुछ कह गए। भाजपा जिस तरह कार्यकर्ता से लेकर पदाधिकारियों वाली संरचना की रीढ़ को सीधा और मजबूत रखने का बंदोबस्त निरंतर करती हैं, उसके चलते यह संभव नहीं लगता कि पूरे के पूरे कार्यकर्ता सबसे बड़े झूठे हैं और वे तब तक एक्सपोज नहीं हो सकें, जब तक कि उनके चलते पार्टी को धार जैसा कोई बड़ा झटका न सहना पड़े। और फिर यदि वाकई मध्यप्रदेश में यह स्थिति है तो ‘फीडबैक’ के धनी मुरलीधर राव अब तक इस पर चुप क्यों बैठे रहे? यदि वाकई जिला प्रभारी और जिलाध्यक्ष अपने घर और दफ्तरों से बाहर क्षेत्र में नहीं जा रहे तो फिर किसने राव को रोका था कि वह इस दिशा में कोई कठोर कदम न उठाएं?
जब लिखा जाता है कि राव के कथन से हर किसी का दिमाग सुन्न हो गया होगा, तब आशय यह कि ऐसा बे-सिर-पैर वाली स्थिति के चलते ही हुआ होगा। क्योंकि सांसद और विधायकों से लेकर प्रत्येक पदाधिकारी और कार्यकर्ता ही वह कड़ी हैं, जिन्होंने अपने-अपने स्तर पर सरकार की उन योजनाओं को आम जनता तक पहुंचाया, जिससे वह जनता लाभार्थी कही गयी। फिर यदि राव के मुताबिक़ जनता की बजाय केवल भाजपा से जुड़े जन-प्रतिनिधि और पदाधिकारी ही लाभार्थी हैं तो फिर केंद्र की नरेंद्र मोदी और राज्य की शिवराज सिंह चौहान सरकार की जनता के लाभ वाली योजनाओं पर क्या राव सवालिया निशान लगा रहे हैं? निश्चित ही राव का भावार्थ ऐसा नहीं होगा, लेकिन शब्दार्थ तो उन्हें इस तरह की विवेचना की परिधि में ही ला रहा है।
एक बात ध्यान देने लायक है। जामवाल से लेकर शिवराज और शर्मा ने जो कहा, उसमें सुझाव भी निहित थे। लेकिन राव की बात फटकार से शुरू होकर ‘ऐसे लोग पार्टी छोड़ सकते हैं’ वाली चेतावनी के विस्तार तक पहुंच गयी। क्या ऐसा इसलिए हुआ कि राव ने इस बैठक के लिए कोई तैयारी नहीं की थी? या फिर ऐसा इसलिए कि किसी आत्ममुग्धता के चलते वह पार्टी के अपने द्वारा बताए गए हालात के बावजूद धार जैसी हार के झटके के लिए तैयार नहीं थे? कारण राव ही बेहतर जानते हैं।