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राहुल को सुकून भरे क्रिसमस की अग्रिम शुभकामनाएं

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वक़्त है एक ब्रेक का। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 24 दिसंबर से नौ दिन के लिए बंद रहेगी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्विटर पर कहा है कि उत्तर भारत में कड़ाके की ठंडक के चलते यात्रा के साथ चल रहे कंटेनरों की इस दौरान मरम्मत की जाएगी। उनके अनुसार ऐसा इसलिए भी किया जा रहा है कि यात्रा के साथ बीते चार महीने से चल रहे कई लोग परिवार के साथ समय बिता सकें।

यूं तो केंद्र सरकार ने भी गांधी से आग्रह किया है कि कोरोना के मामले बढ़ने की आशंका को देखते हुए वह यात्रा रोक दें, लेकिन कांग्रेस इस से इत्तेफाक नहीं रखती। वह यात्रा अपने हिसाब से रोकेगी। क्रिसमस के एक दिन पहले। वास्तव में यह कोई विशेष किस्म का जूनून है, वरना तो यात्रा शुरू होने के दो महीने बाद पड़े देश के सबसे बड़े त्योहार दीपावली पर भी इसे रोका नहीं गया था। खैर, यह सोचकर ही संतोष किया जा सकता है कि यात्रा के साथ चल रहे जो लोग परिवार के साथ दीपावली नहीं मना सके थे, वो अब कम से कम क्रिसमस के मौके पर तो ऐसा कर सकेंगे।

इधर, करोड़ों रुपए लगाकर खास सुविधाओं के साथ तैयार किए गए कंटेनर के कर्ताधर्ता शायद यह भूल गए थे कि दिसंबर में ठंडक तेज पड़ती है। तभी तो अब उन्हें मौसम के इस मिजाज के हिसाब से ठीक करने की नौबत आ गयी है। रमेश ने यह नहीं बताया कि इन नौ दिन में राहुल गांधी क्या करेंगे? वह देश में ही रहेंगे या फिर थकान उतारने के लिए एक बार फिर अज्ञातवास की शरण में चले जाएंगे। ऐसे में उन चर्चाओं को स्वाभाविक रूप से बल मिलता है, जिनमें कहा जा रहा है कि यह हॉल्ट दरअसल राहुल की सुविधा और पसंद, दोनों के हिसाब से तय किया गया है। मजे की बात यह कि आप इस यात्रा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने और हटाने की गरज से निकाल रहे हैं। वो मोदी, जिसने वर्ष 2014 से लेकर आज तक एक दिन का भी अवकाश नहीं लिया है।

पीवी सुभाष दिवंगत प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के पोते हैं। उन्होंने बताया था कि किसी समय सोनिया गांधी ने पीवी नरसिंह राव से कहा था कि वे राहुल और प्रियंका को राजनीति सिखाएं। राव ने जल्दी ही पाया कि भाई-बहन की पार्टी को समय देने में लगभग कोई रुचि नहीं थी। वे अपने निजी मनोरंजन पर अधिक ध्यान देते थे। तब राव ने सोनिया को सलाह दी थी कि बच्चे सियासत के लिए अनफिट हैं और उन्हें किसी व्यापार में लगाना बेहतर रहेगा।

ये अपने आप में अकेली ऐसी घटना नहीं है। हिमंता बिस्वा सरमा तब कांग्रेस में हुआ करते थे। वह असम में पार्टी के हालात पर बात करने के लिए राहुल से मिलने गए। लेकिन उनकी बात पर ध्यान देने की बजाय राहुल पूरा समय अपने पालतू कुत्ते के साथ खेलने में मसरूफ रहे थे। जिस समय पार्टी अध्यक्ष के रूप में राहुल कांग्रेस को एक के बाद एक चुनावी असफलताओं का स्वाद चखा रहे थे, तब पार्टी की उस समय की वरिष्ठ और तजुर्बेकार नेता शीला दीक्षित ने भी सलाह दी थी कि गांधी को अब पार्टी को अधिक समय देना चाहिए। इन गलतियों को ठीक न करने का नतीजा आज कांग्रेस और भी गंभीर रूप से भुगत रही है, लेकिन यात्रा के नौ दिवसीय ब्रेक से साफ़ है कि वह ऐसे हालात से भी सबक लेने को कतई तैयार नहीं है।

सिकंदर के विश्व विजय अभियान के बीच का मामला है। उसके सैनिकों ने बगावती तेवर अपना लिए। वह लंबे समय से परिवार से दूर थे। थक चुके थे। उन्हें घर वापस जाना था। आराम करना था। तब सिकंदर ने बीच रास्ते पर अपने देश का ध्वज रख दिया। कहा कि जो सैनिक वापस जाना चाहता हो, वह उस ध्वज पर चलते हुए निकल जाए। सैनिकों की नाराजगी जाती रही। उन्होंने ध्वज को सम्मान के साथ उठाकर हृदय से लगाया और फिर अभियान के लिए आगे बढ़ गए।

राहुल भले ही इस यात्रा के माध्यम से खुद को सिकंदर मानने जैसी मुद्रा अपनाते हुए दिख रहे हों, लेकिन यह साफ़ है कि असली सिकंदर जैसी लगन और क्षमता, दोनों का उनके भीतर भयानक तरीके से अभाव है। जो शख्स हिमाचल प्रदेश की ठंडक के बीच टी शर्ट पहनकर वहां अपनी पार्टी की विजय का समारोह मनाने जा सकता है, उसे अचानक अब ठंडक क्यों सताने लगी, यह समझ से परे नहीं है। कल्पना से परे यह सच है कि कांग्रेस देश को इतना नादान समझ रही है कि रमेश की दलीलों की दाल गल जाएगी। यूं तो छुट्टी मनाना आपका निजी विषय है, इसलिए राहुल गांधी को विश्रामपूर्ण क्रिसमस की अग्रिम शुभकामनाएं।

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