दो घटनाक्रम याद आ गए। वह सज्जन तब कांग्रेस में तेजी से युवा नेता के तौर पर आगे बढ़ रहे थे। उन्होंने पत्रकारों को वार्ता के लिए आमंत्रित किया। ज्यादातर मीडियाकर्मी समय से पहुंच गए, लेकिन साहब का कोई अता-पता ही नहीं था। उनके पिता के समय से उस परिवार के लिए समर्पित एक पार्टीजन किसी तरह पत्रकारों से बात कर ‘भैया बस आ ही रहे हैं’ का जुमला दोहराए जा रहा था। तब सेल फोन भी नहीं होते थे। तंग आकर पत्रकार उठकर जाने लगे। तभी नेताजी का प्रवेश हुआ। ज्यों ही उन्हें स्थिति का भान हुआ, वह उस समर्पित पर भड़क उठे। बोले, ‘मुझ देर हो गयी तो तुम क्या कर रहे थे?’ अगला सहम कर चुप ही रहा। नेताजी ने पत्रकारों को यह बोधिसत्व कराया कि उनका देर से आना और मीडिया की नाराजगी दरअसल उस सेवक की ही गलती है।
उत्तर प्रदेश के बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बागडोर प्रियंका वाड्रा के हाथ में थी। लड़की बन कर वह खूब लड़ीं, लेकिन कांग्रेस की सीटें बढ़ने की बजाय कम हो गईं। पार्टी ने दनादन राज्य के अन्य पदाधिकारियों की मुश्कें कस दीं और प्रियंका निरापद तरीके से मुस्कुराते हुए अब भारत जोड़ो यात्रा में नजर आ रही हैं। राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की इस ठीकरा फोड़ो वाली फितरत के ताजा शिकार नरेंद्र सलूजा हुए हैं। वह कमलनाथ सरकार के समय से ही कांग्रेस के मीडिया समन्वयक थे। नाथ के बेहद विश्वसनीय लोगों में गिने जाते थे। सलूजा ने आज भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। भाजपा को फायदे और कांग्रेस को नुकसान के लिहाज से यह कोई बड़ा घटनाक्रम नहीं है। बड़ी बात यह कि सलूजा ने कांग्रेस में अपने साथ हुए गलत पर खामोशी अख्तियार नहीं की। उन्होंने बता दिया कि यदि वह समर्पित भाव से पार्टी के साथ हर हालत में जुड़े रहे तो अपने आत्मसम्मान के साथ खिलवाड़ का वह प्रतिरोध के साथ उत्तर देंगे।
सलूजा को कांग्रेस से तब निष्कासित किया गया, जब बीते दिनों कमलनाथ इंदौर में खालसा कॉलेज चले गए। इस गोपनीय निष्कासन को आज तब उजागर किया गया जब सलूजा ने भाजपा का दामन थामा। इंदौर में गुरुनानक देव जी की जयंती का कार्यक्रम था। नाथ का वहां सम्मान किया गया। एक कीर्तनकार को यह पसंद नहीं आया। उन्होंने 1984 के सिख-विरोधी दंगों की याद दिलाते हुए आयोजन में नाथ को लाए जाने का पुरजोर विरोध किया। इसके साथ ही राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के मध्यप्रदेश में आने के कुछ ही समय पहले कांग्रेस के लिए उसके अतीत से जुड़ा एक जख्म फिर से ताजा हो गया। कहा जाता है कि इस आयोजन में नाथ की एंट्री और उनके सम्मान के कर्ताधर्ता सलूजा ही थे। जब भद पिटी तो कांग्रेस ने इसका ठीकरा सलूजा के सिर पर फोड़ दिया। सलूजा ने तो नाथ को उस समुदाय में सम्मान दिलाया, जहां उनकी गिनती आज भी सिखों के विरोध में हुए दंगों के समर्थकों में ही होती है। तो फिर खालसा कॉलेज में नाथ के लिए हुए अप्रत्याशित घटनाक्रम का दोष आखिर सलूजा को कैसे दिया जा सकता था?
दरअसल कांग्रेस उस कॉर्पोरेट कल्चर में ढल चुकी है, जहां ऊपर बैठे लोग हर सफलता के लिए ‘यह मैंने किया’ कहते हैं और हरेक विफलता के लिए अपने मातहत स्टाफ को ‘ये इसका किया-धरा है’ वाले वाक्य से निपटा देते हैं। यही सलूजा के साथ हुआ। वह अपमान-भरी कसक लेकर भाजपा में आये हैं और न जाने कब मौका मिलते ही कांग्रेस के खिलाफ किसी बड़े नुकसान में कोई कसर न उठाए रखें। आखिर उन्होंने नाथ को और उनकी सरकार के कामकाज को ‘बहुत नजदीक’ से जो देखा है।