कभी-कभी ये बीमारी का फंडा भी काफी अजीब हो जाता है। वो भी खासे पेशेवराना अंदाज में। व्यापमं कांड में फंसे एक अफसर से इस घटना के पहले मेरी कई बार मुलाकात हुई थी। मैं हैरत करता था कि अपने एक पैर में जन्मजात विकार के बाद भी वह चलने-फिरने में स्फूर्ति से भरे रहते थे। लेकिन ज्यों ही वह गिरफ्तार हुए, अचानक यही तकलीफ जैसे उनकी मूल पहचान बन गयी। अदालत में वह दो लोगों के कंधों का सहारा लेकर ही जज के सामने जा पाते थे। लोग बताते हैं कि जमानत मिलने के बाद उनकी चुस्ती-फुर्ती फिर लौट आई और उनके दाएं-बाएं अब पराये कंधे नजर नहीं आते हैं।
दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का स्वास्थ्य काफी खराब है। इतना कि वह लगभग दिन-दिन भर बिस्तर पर लेटे रहने के लिए विवश हैं। उन्हें नियमित रूप से हाथ-पैर दबाने, सिर की मालिश करवाने और एक्यूप्रेशर की जरूरत पड़ती है। ये हेल्थ बुलेटिन मेरा नहीं है। इस आशय की बातें तो दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कही हैं। दरअसल सत्येंद्र जैन के कुछ वीडियो वायरल हो रहे हैं। इसमें वह तिहाड़ जेल में अपनी सेल के भीतर पलंग पर लेटकर कहीं अपने पैर तो कहीं हाथ दबवाते हुए दिख रहे हैं। इस वीडियो को सामने लाने के बाद भाजपा जब आम आदमी पार्टी पर हमलावर हुई तो सिसोदिया ने कहा कि जैन के दो एक्सीडेंट हुए हैं। इसलिए उन्हें मालिश सहित इन सभी तरह की जरूरत पड़ती हैं।
वैसे वीडियो में एकाध जगह जिस तरह जैन का छोटा-मोटा ‘दरबार’ लगा दिख रहा है, उससे लगता है कि जेल में वह करोड़ों रुपयों के हेर-फेर वाले आरोपी की जगह किसी राजनीतिक कैदी की तरह समय गुजार रहे हैं। याद दिला दें कि यह वही जेल है, जिसके एक अधीक्षक को हाल ही में सस्पेंड कर दिया गया। इस पर जैन को गलत तरीके से सुविधाएं मुहैया कराने का आरोप है। यह वही जेल है, जहां बंद ठग सुकेश ने दिल्ली के उप राज्यपाल को चिट्ठी लिखी है। इसमें आरोप लगाया है कि जैन ने उससे जेल में प्रोटेक्शन मनी के नाम पर करोड़ों रुपए वसूले हैं। यह वही जेल है, जिसमें जैन को इस तरह की सुविधाएं मिलने की शिकायत प्रवर्तन निदेशालय ने भी अदालत से की है। ये वही जैन हैं, दो दिन पहले जिनकी जमानत याचिका खारिज करते हुए अदालत ने उनके करोड़ो रुपए के वारे-न्यारे में शामिल होने की संभावनाओं को लेकर कई गंभीर संकेत दिए हैं।
सच तो यह है कि जैन से लेकर वाया मनीष सिसोदिया अरविंद केजरीवाल तक यह वह आप रही ही नहीं, जो अपने शुरूआती समय में हुआ करती थी। अन्ना हजारे ने केजरीवाल को सिर-आंखों पर बिठाया और केजरीवाल अन्ना की आंखों के सामने ही ऐसे रास्ते पर आगे बढ़े, जो अन्ना के सिर के ऊपर से गुजर गया। निर्लज्जता के साथ अपने ही कहे से मुकरना। केवल वह बोलना, जिसका सच से कोई नाता ही न दिखे। जनता के खून-पसीने की कमाई से हजार रुपए वाले काम की नुमाइश के लिए करोड़ों रुपए के विज्ञापन जारी करना। तमाम वित्तीय चेतावनियों के बाद भी मुफ्तखोरी को राष्ट्रीय आचरण बनाने की कोशिश। यह सब उनके ऐसे आचरण हैं, जिनका वायरस पूरी आम आदमी पार्टी में प्रसारित हो चुका है। दिल्ली में शराब घोटाले को लेकर जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उनकी रोशनी में भी फिलहाल यही दिखता है कि यह खालिस रूप से ‘आप तो ऐसे न थे’ वाला मामला है। जैन इन्हीं खुलती परतों की एक कड़ी हैं।
कभी ‘आप’ को देश की वर्तमान राजनीति में सबसे पुख्ता वैकल्पिक बदलाव के रूप में देखा गया था। यही वजह रही कि बेहद जागरूक शहरियों वाली दिल्ली ने इस दल को लगातार तीन बार स्पष्ट जनादेश दिया। वह भी जबरदस्त तरीके से। पंजाब में यह पार्टी शिरोमणि अकाली दल, भाजपा और कांग्रेस का विकल्प बन गयी, लेकिन अब जो हालात सामने आ रहे हैं, उनसे यही लगता है कि ‘आप’ को वोट देने वालों में से अधिकांश के पास अब हाथ मलते रह जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा होगा।