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हंसने नहीं, सिस्टम को कसने का समय

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मध्यप्रदेश (Madhya padesh) में जंगल विभाग (forest department) के कर्मचारी फिलवक्त जंगल के कानून में ही पिसते हुए दिख रहे हैं। उनका कसूर यह कि उन्होंने आत्मरक्षा की कोशिश की। जंगल में लकड़ी की तस्करी रोकने के अपने कर्तव्य को अंजाम दिया। बदले में एक डीएफओ राजवीर सिंह (DFO Rajveer Singh) ‘चलते’ कर दिए गए। वन कर्मचारियों के खिलाफ हत्या का प्रकरण (murder case) कायम कर दिया गया। मजे की बात यह कि इन कर्मचारियों ने वही किया, जो नियम कहते हैं और उनके खिलाफ उस तरह की कार्यवाही की गयी, जिसकी नियम कतई इजाजत नहीं देते हैं।

वन विभाग का अमला लकड़ी चोरी की सूचना पर लटेरी के जंगल (Forest of Lateri) में जाता है। आगे बढ़ने से पहले बता दें यह वह जंगल है, जहां हर वर्ष औसतन दो दर्जन कर्मचारियों की लकड़ी तस्कर और उनके गुर्गों द्वारा बुरी तरह पिटाई की जाना आम बात हो चुकी है। यह भी याद दिला दें कि वारदात स्थल राजस्थान की सीमा (Rajasthan border) से सटा हुआ है। इसी सीमा से मध्यप्रदेश में घुसे राजस्थानी बदमाशों ने बीते मई में गुना (Guna) के जंगलों में तीन पुलिस वालों की जान ले ली थी। अब वर्तमान में आएं। लटेरी के जंगल में रात के अंधेरे में वन विभाग की टीम पर हमला हुआ। नियम कहते हैं कि आत्मरक्षा के लिए विभाग का गश्ती दल गोली चला सकता है। उसने ऐसा ही किया। अब इस महकमे के कर्मचारियों को गोली चलाने की कोई ट्रेनिंग तो दी नहीं जाती। उन्होंने हमले वाली दिशा में गोली दाग दी। अंधेरा था, तो साफ़ है कि किसी को टारगेट पर लिए बगैर यह काम किया गया। गोली लगने से एक लकड़ी तस्कर एक आदिवासी मारा गया। जरा देर में ही संबंधित थाने को कम से कम दो सौ आदिवासियों की उग्र भीड़ ने घेर लिया। जाहिर है कि इतनी बड़ी भीड़ पहले से ही आसपास एकत्र थी और यदि वन विभाग का अमला गोली नहीं चलाता तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आज हम एक और गुना काण्ड पर शोक मना रहे होते।





इस टीम से एक गलती हुई। गोली चलाने की सूरत में उसे तत्काल संबंधित SP और कलेक्टर (Collector) को इसकी सूचना देना थी। इसमें विलंब हुआ। तो क्या इसका मतलब यह कि उठाकर हत्या का प्रकरण कायम कर दिया जाए? जानकार बताते हैं कि सीआरपीसी में साफ़ प्रावधान है कि गोलीबारी के मामले में वनकर्मियों के विरुद्ध तब तक FIR दर्ज नहीं की जा सकती, जब तक कि गजेटेड ऑफिसर (gazetted officer) की जांच रिपोर्ट न आ जाए। मगर यहां तो जांच से पहले ही पुलिस ने भीड़ के दबाव में FIR भी दर्ज कर दी गयी। जाहिर है कि वन विभाग का मैदानी अमला अब भविष्य में अपने कर्तव्य पर अमल से पहले दस बार यह सोचकर डरेगा कि कहीं लटेरी जैसे पक्षपात का अम्ल उसके करियर को झुलसा न दे।

हालात को नजदीक से जानने वालों से बात कीजिए। पता लगेगा कि टिम्बर माफिया (timber mafia) किस कदर जंगलों से लेकर सिस्टम के कमजोर हिस्सों पर हावी हो चुका है। वह गरीब आदिवासियों (poor adivasis) को जरूरत के लिए कर्ज देकर उन्हें अपने चंगुल में लेता है। फिर इस रकम के एवज में लकड़ी की अवैध कटाई और चोरी कराई जाती है। फंसने या मरने वाला तो वह कर्ज में दबा आदिवासी ही होता है और टिम्बर माफिया सुरक्षित रहता है। लटेरी की इस वारदात के बाद तो यह डर भी सताने लगा है कि कहीं यह सिस्टम इन लकड़ी माफिया के लिए भी अभयारण्य का इंतज़ाम न कर दे।





टिम्बर माफिया की वजह से विदिशा जिले (Vidisha District) में 10. 55 प्रतिशत वन क्षेत्र ही बचा है। जबकि यहां हर साल वृक्षारोपण किया जाता है। लेकिन हालत यह कि इधर एक वृक्ष ठीक से बड़ा नहीं हो पाता और तब तक औसतन दस वृक्षों के साथ ‘तन से सिर जुदा’ वाली वारदात कर दी जाती है। सिरोंज (Sironj), लटेरी (Lateri) और शमशाबाद (shamshabad) में तो जंगल साफ़ कर उसकी ज़मीन पर खेती का धंधा भी फल-फूल रहा है। हजारों हेक्टेयर इलाके में वन विभाग की जमीन पर कब्जा कर लिया गया है। खुद विभाग की रिपोर्ट बताती है कि जिले में उसकी 21 हजार हेक्टेयर जमीन पर खेती की जा रही है। शासन ने इसमें से 988 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा धारियों को पट्टा दे दिया है। करीब तेरह हजार हेक्टेयर पर पट्टा देने की प्रक्रिया चल रही है। लेकिन समस्या दूर होने के आसार नहीं हैं। विदिशा जिले की दक्षिण रेंज में झूकरजोगी (jhukarjogi), काटरआड़ी (kataradi), तिलोनी (tiloni), दप्कन, बैरागढ़ (Bairagarh), कोटरा (kotra), कोलुआपठार (kolupathar), जमोनिया (jamonia), मुस्करा और मुरवास बीट (Murwas Beat) तो जैसे तस्करों के स्वर्ग में बदल गए हैं। इनमें से किसी भी गांव में चले जाइए। आदिवासियों के घरों के सामने सागौन के ताजा काटे गए लट्ठे दिख जाएंगे। पूछने पर पेशेवर तरीके से जवाब मिलता है कि घर बनाने के लिए लकड़ी रखी गयी है। जबकि रात ढलते ही टिम्बर माफिया के ट्रक आकर वह लकड़ी ले जाते हैं। इस गोरखधंधे से हुई कमाई इतनी अधिक है कि अब तस्कर अत्याधुनिक हथियारों से लैस हो चुके हैं और वन विभाग उन्हें पुराने हथियारों और संसाधनों से काम चला रहा है, जिन्हें आप ‘राग दरबारी’ के थाने में पाकर हंसी नहीं रोक पाते हैं। फिलहाल हंसने का समय नहीं है। समय है सिस्टम को उस तरह कसने का, जिसमें कोई शासकीय कर्मचारी अपने कर्तव्य के निर्वहन से यह सोचकर न डरे कि मामला उलटे उसके ही गले पड़ जाएगा।

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