मुंबई (Mumbai) में अराजकता फैला रहे शिव सैनिकों (Shiv Sainiks) की ऐसी हरकतों को पार्टी के सांसद संजय राऊत (Sanjay Raut) ने ‘वार्म अप’ (warm up) कहा है। ये बात उन लोगों के लिए कही गयी है, जो शिवसेना (Shiv Sena) के बागी विधायकों के यहां तोड़फोड़ कर रहे हैं। एक न्यूज चैनल से चर्चा में राऊत मुस्कुराहट और निर्लज्जता को छिपाने की कोई कोशिश तक नहीं कर रहे। अपनी खिलती बांछों की नुमाइश के बीच वह कहते हैं, ‘ये शिवसेना के लोगों का केमिकल लोचा है।’ गनीमत रही कि राऊत ने इस के साथ ही ‘वीरों का ऐसा ही हो वसंत’ नहीं जोड़ दिया। इस उपद्रव से वह काफी उत्साहित दिख रहे हैं। तब ही तो पूरी निर्लज्जता के साथ यह भी कह रहे हैं कि ‘अब ये शिवसैनिक हमारे नियंत्रण से बाहर हो चुके हैं। सोचिए, जिस पार्टी पर महाराष्ट्र (Maharashtra) में कानून-व्यवस्था लागू करने का जिम्मा है, उसी शिवसेना का सांसद इस तरह की बात कह रहा है। क्या यह गुंडागर्दी को सरकार के संरक्षण का मामला नहीं है?
मुंबई जल रही है। उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के लिए यह तो नहीं कहा जा सकता कि वो नीरो की तरह आराम से बांसुरी बजाने में मशगूल हैं। ठाकरे तो उस बीन की धुन से ही पस्त हो रहे हैं, जिसे एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ने बजाया और उद्धव के सामने एक के बाद एक आशंकाओं के नाग उत्पन्न होते चले गए। बांसुरी नहीं बज रही, हां, मुंबई में लट्ठ बज रहे हैं। अपने समर्थकों के इस ‘शौर्य’ की लठ्ठ चलाने वाली हदबंदी से राऊत असहमत हैं। उन्होंने कहा, ‘शिवसैनिक लट्ठ नहीं, पत्थर चला रहे हैं।’ यानी यह संकेत भी सांसद ने दे दिया कि वे केमिकल लोचा वाले अपने अनुयायियों के इस बाहुबल प्रदर्शन को कमतर आंकने नहीं देंगे।
राऊत को उद्धव ठाकरे की आंख, नाक और कान माना जाता है। राऊत के इस हिंसा को खुले समर्थन की रोशनी में केंद्र सरकार (Central government) द्वारा बागी विधायकों को वाय प्लस की सुरक्षा देने का निर्णय बिलकुल सही प्रतीत होता है। कम से कम ठाकरे समर्थक धड़े ने तो इस राजनीतिक युद्ध को अपने स्तर पर गैंगवार का रूप दे ही दिया है। राऊत जब कहते हैं कि बागी विधायक मुंबई आएं, तो उनके वाक्य में यह धमकी साफ रहती है कि ‘एक बार आओ, फिर करते हैं तुम्हें सही।’
दरअसल यह महाराष्ट्र में शिवसेना के बिखराव का एक और प्रतीक है। जिन विधायकों ने बगावत की है, उनमें से अधिकतर मुंबई के बाहर के हैं। लेकिन ऐसे विधायकों के विरुद्ध यह उन्माद केवल मुंबई में दिख रहा है। मुंबई से बाहर स्थित उनके गृह नगर या जिले में ऐसी स्थिति नहीं दिखती। स्पष्ट है कि महाराष्ट्र के बाकी हिस्सों में इस बगावत को लेकर शिवसेना के ही लोगों के बीच कोई गुस्सा नहीं है। उद्धव ठाकरे के लिए यह चिंता का विषय होना चाहिए कि शिवसेना अब एक नहीं रह गयी है। वह मुंबई और शेष महाराष्ट्र के बीच खींची विभाजक रेखा के इस पार और उस पार खड़ी है। खैर, उद्धव तो फिलहाल चल रही आरपार की स्थिति के ही अपरंपार हो रहे चक्रव्यूह में उलझे हुए हैं। उस पर पार्टी की चिंता वाली अपेक्षा रखकर क्यों उन्हें ‘दुबले पर दो आषाढ़’ वाले झमेले में धकेला जाए? फिर समझौते के दरवाजे एक बार खोल दिए जाएं तो यह क्रम आदत में लाना पड़ता है। ठाकरे इसके अभ्यस्त हो गए हैं। सत्ता के लिए उन्हें अपने पिता बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) के सिद्धांतों से समझौता किया। शिवसेना के मूल तत्व हिंदुत्व (Hindutva) को हाशिये पर धकेल दिया। जब इतने विशाल समझौते कर लिए गए तो पार्टी के अस्तित्व को जोखिम में डालने में भला ठाकरे को क्या हिचक होगी?
शिवसेना जानती है कि इस नाजुक समय पर वह जो चाहे उपद्रव कर ले, उसकी सरकार को राज्य में राष्ट्रपति शासन (President’s Rule) जैसे खतरे की फिलहाल कोई आशंका नहीं है। यदि केंद्र ने ऐसा किया तो प्रदेश में फिर नए चुनाव का ही रास्ता बचेगा। आज की स्थिति में भले ही बागी विधायकों का भाजपा (BJP) के पक्ष में आना तय हो, लेकिन यह बिलकुल भी तय नहीं है कि चुनाव में मतदाता भी BJP के लिए ऐसा ही रुख रखे। इसलिए भाजपा भी यही चाहेगी कि राज्य में खिचड़ी (महाअगाढ़ी) सरकार के वर्तमान हालात की गरम खिचड़ी को ठंडा करके ही खाया जाए। इस सबके बीच मुंबई, हिंसा की मौन प्रत्यक्षदर्शी बनी रहने के लिए अभिशप्त है। यह तय है कि ShivSena के लिए संकट और ऐसे हालात को बिगाड़ने में संजय राऊत की बेलगाम जुबान का बहुत बड़ा हाथ रहा है। हालात को लेकर राऊत के ताजा बयानों से मामला शिवसेना के लिए ही भविष्य की मुसीबतों को भी जन्म देगा। यह उम्मीद तो की नहीं जा सकती कि अब उद्धव चाहकर भी राऊत पर नकेल कस सकेंगे। लेकिन उन वर्म यानी कीड़ों को तो पनपने से रोकना होगा, जिनके हिंसक संक्रमण को राऊत ‘वार्म अप’ कहकर प्रोत्साहन दे रहे हैं।