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यह सोचकर ही सिहरन हो रही है

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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की राजनीतिक अपरिपक्वता अब किसी बहस-मुबाहिसे की मोहताज नहीं रह गयी है। यह ठीक उसी तरह का स्थापित तथ्य है, जिस तरह हम बगैर किसी संदेह के कह देते हैं कि इन दिनों देश के ज्यादातर हिस्सों का तापमान बहुत बढ़ा हुआ है। तर्क शास्त्र (लॉजिक) के पलड़े पर राहुल से जुड़ा केवल एक शोध कार्य अधूरा बचा है। वह यह कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) और भाजपा (BJP) के प्रति हताशा से उपजे राहुल के कुतर्क का क्रम अभी और कितना लंबा खिंचना शेष है। लंदन (London) में ‘सूट-बूट’ वाले राहुल ने अपने देश की छवि पर जो मिट्टी का तेल डाला, वह अपने वतन की मिट्टी को कलंकित करने वाला काम ही कहा जा सकता है।

हालांकि यहां डॉ. सुब्रह्मण्यम् स्वामी (Dr. Subramanian Swamy) ही राहुल के बचाव के लिहाज से सर्वाधिक मुफीद दिखते हैं। स्वामी दस्तावेजों के आधार पर यह दावा कर चुके हैं कि राहुल वस्तुतः ब्रिटिश नागरिक (British citizen) हैं। ख़ास बात यह कि डॉ. स्वामी के इस आरोप का कांग्रेस (Congress) कभी भी पुरजोर तरीके से खंडन तो दूर, विरोध तक नहीं कर सकी है। कांग्रेस चाहे तो यह कह सकती है कि भारत को दो सौ साल गुलाम बनाये रखने वाली बरतानिया हुकूमत के यूनियन जैक (union jack) के आंचल तले उसके नागरिक राहुल बाबा वह तो कर ही सकते हैं, जिससे ‘बड़ा साहब’ का आज भी ‘पितृ पूजन’ कर उन्हें उनके मोक्ष की कामना के साथ खुश किया जा सके।

आखिर राहुल गांधी को ये केरोसीन (kerosene) किसने दिखाया? इससे भी बड़ा सवाल यह कि तथाकथित रूप से इस केरोसीन के होने की बात को देखने की राहुल को फुर्सत कब मिल गयी? क्या वाकई हार्दिक (Hardik Patel) के इस्तीफे ने ऐशो-आराम के बीच ऊंघते ‘राहुल बाबा’ को इतना झटका दे दिया कि वह चिकन सैंडविच (chicken sandwich) का स्वाद और मोबाइल की स्क्रीन वाली लत को बिसराकर बात करने लगे? वो समय याद आता है, जब गांधी ने एक कार्यक्रम में भारत को मधुमक्खी का छत्ता बताया था। ऐसा कहते समय भी राहुल इस देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी की तरफ से वैश्विक तौर पर इसी देश की छवि को कलंकित तरीके से प्रस्तुत कर रहे थे। राहुल की कोशिशों से परे यह बात और है कि इसी मधुमक्खी के छत्ते से 2014 के बाद से अतीत के जख्मों को ठीक करने वाला वह शहद निकला, जिसने आज भारत को सही मायनों में विश्व में एक आदरपूर्ण स्थान दिलाया है। यदि अमेरिका (America), रूस (Russia), जापान (Japan), इजरायल (Israel) सहित तमाम मुल्क भारत (India) को अब अपना सहयोगी बताने में गर्व महसूस करते हैं तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की भारत के प्रति यह मिठास इसी छत्ते से निकले शहद की देन है। हां, अगरचे मधुमक्खी का डंक राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस को रिकॉर्ड-तोड़ विफलताओं के रूप में मिला है, तो इसके लिए क्या किया जा सकता है?

शायद पहले कभी इसी कालम में आचार्य रजनीश (Acharya Rajneesh) का स्मरण किया था। उन्होंने एक बात कही थी। नेताजी ने किसी से भारत के राष्ट्रीय पर्व के लिए स्पीच तैयार करवाई। उन्होंने नौकर से बोला कि सुबह ध्वज फहरा दे। बकौल रजनीश, ‘नौकर! वो भी नेताजी का!! रात को पीकर सो गया और सुबह हैंगओवर के असर में ध्वज की जगह अपनी पत्नी का पेटीकोट बांध आया। जब वह पेटीकोट लहराया तो लोग हंस-हंस कर दोहरे हो गए। लेकिन नेताजी को नौकर और अपने पटकथा लेखक पर इतना विश्वास था कि रटे-रटाये भाषण के आधार पर उस पेटीकोट के लिए बोले, ‘भाइयों! यही वह प्रतीक है, जिसने मुझे हमेशा अपनी तरफ खींचा है। इस अर्थ में कि मैं इसके लिए दिन-रात कुछ करूं। जब यह लहराता है तो मेरे भीतर भी तरंगें उठने लगती हैं। कभी इसके ऊपर और नीचे होने का अंदाज़ देखिए, उसे देखकर लगता है कि ये देखने से बड़ा सुख और क्या हो सकता है। मेरी तो यही ख्वाहिश है कि इसके साये तले जिंदगी बिता दूं। मैं जिऊंगा इसके भीतर समा जाने के लिए और जब मरूंगा, तब भी इसमें लिपटकर ही इस दुनिया से जाऊंगा।’

यही गांधी के साथ होता दिखता है। नौकर! वो भी परिवारवाद और चाटुकारिता के नशे में डूबा हुआ! कुछ भी लिख गया। कुछ भी लटका गया। देश के वर्तमान अंतरंग (गौरवमयी) सच की जगह किसी अंतःवस्त्र को टांग गया। और भैया पिल पड़े अपनी बात कहने में। ठीक वैसे ही, जैसे कभी विदेशी लोगों के सामने उन्होंने दक्षिणपंथी विचारधारा (right wing ideology) के आगे खूंखार आतंकवादी अभियानों (terrorist missions) को ‘बच्चे हैं, बच्चों से गलती हो जाती है’ के अंदाज़ में मासूम बताया था और जिस तरह कभी 1962 के तांडव की पुनरावृत्ति में भारत की वर्तमान सरकार के चलते विफल हो रहे चीन (China) के राजनयिक से मिलकर उन्होंने उससे ‘कांग्रेस-चीनी भाई-भाई, किसी तरह तो मोदी (PM Modi) को हटा दो भाई’ के सदृश अपनी घनघोर वाली मानसिक अपरिपक्वता का परिचय दिया था।

यदि आप लद्दाख (Ladakh) की तुलना यूक्रेन (Ukraine) से करते हैं तो फिर यह तय है कि आप अपनी पार्टी के साथ-साथ ही इस देश के साथ भी अनाचार करने पर उतर आये हैं। यह सर्वविदित तथ्य है कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 (Article 370) के हटने के बाद आप अपने पूर्वजों की साजिश की विफलता से बिलबिला रहे हैं, लेकिन इसका प्रतिवाद तथ्यों के साथ धारा 376 के आरोपी होने के रूप में तो मत कीजिए। उस केरोसीन की मात्रा तो तब ही काफी कम हो गयी थी, जब उसे छिड़क कर देश की न्यायपालिका को धू-धू जलाते हुए सभी लोगों को आपातकाल की झुलसा देने वाली आग में झोंक दिया गया था। राहुल को कभी शाहबानो (Shahbano) की कब्र पर जाकर घासलेट से झुलसी नारी के अधिकार वाली उस अवधारणा के लिए दो आंसू बहाने चाहिएं, जो उनके पूज्य पिता जी के चलते ही यूं अभिशप्त हुई थी। वही पिताश्री, जिन्होंने इस देश के हजारों सिखों (Sikhs) के नृशंस नरसंहार के निशानों के सच को कैरोसिन डालकर यह कहते हुए ख़ाक कर देने की साजिश की थी कि जब एक बड़ा पेड़ गिरता है, तो जमीन कांपती है।

यकीनन विनाश की प्रवृत्ति से संग्रहित किया गया केरोसीन इस देश में था। मगर उसका स्टॉक तो तब ही कम होना शुरू हो गया था, जब मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) के वध के बाद वह केरोसीन हजारों चित्तपावन ब्राह्मणों के ऊपर डालकर उनके ज़िंदा रहने के अधिकार तक को राख कर गया था। ये मिट्टी के तेल की वह खर्च की गयी मात्रा ही तो थी, जिसने आपातकाल (emergency) के दौरान लाखों कुंवारों की बलात नसबंदी (Nasbandi) के नाम पर उनके पिता बनने के सपनों को मिट्टी में मिला दिया था।

उस चौपाये को लेकर बड़ी विचित्र स्थिति होती है, जिसका स्वामी घर आये व्यक्ति को ‘अरे! ये बंधा हुआ है, केवल डरा सकता है’ कहकर आश्वस्त करता है। यह तथ्य जानते हुए कि यदि वह बंधन खुल गया तो चौपाया उस अतिथि को काटकर उसकी दुर्गति कर देगा । यदि एक दल के देश के लिए प्रतिबद्धताओं वाले सड़े-गले और कमजोर हो चुके बंधन को तोड़कर कोई आगे बढ़ गया तो फिर क्या होगा, यह सोचकर ही सिहरन हो रही है।

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