सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने मध्यप्रदेश के नगरीय निकाय तथा पंचायत चुनाव (Urban bodies and panchayat elections of Madhya Pradesh) में ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) लागू करने का रास्ता साफ कर दिया। एक तरह से शिवराज सरकार (shivraj government) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए यह बड़ी रणनीतिक जीत है। महाराष्ट्र (Maharashtra) में बिना ओबीसी आरक्षण के स्थानीय निकाय चुनाव के बाद मध्यप्रदेश के मामले में जब सुप्रीम अदालत का फैसला भी ऐसा ही आया तो मान लिया गया था कि अब देश के लगभग सभी राज्यों में ओबीसी आरक्षण के मामले में Supreme Court का रवैया सख्त रहेगा। इस निर्णय के बाद भले ही भाजपा ने स्थानीय निकाय चुनाव में OBC को तीस फीसदी तक टिकट देने का दावा कर दिया था, लेकिन यदि मोडिफिकेशन याचिका (modification petition) के बाद भी अदालत का रवैया सरकार के खिलाफ ही रहता तो यह भाजपा (BJP) और शिवराज (shivraj singh chauhan) के लिए एक राजनीतिक मुसीबत से कम नहीं था। लेकिन एक डेढ़ दशक के मुख्यमंत्री के लंबे अनुभव के बाद विपरीत परिस्थितियों में भी अविचलित रहना तथा अनुकूल वातावरण में भी सहजता कायम रखना शिवराज सिंह चौहान का खास गुण बन गया है। शायद इसलिए तकदीर उन पर मेहरबान है और तदबीर पर उनकी मास्टरी है।
इसी लिहाज से सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला शिवराज सिंह चौहान की कोशिशों की सफलता से बेशक जोड़ा जा सकता है। चुनाव में आरक्षण पर कुछ दिन पहले लगाई गयी रोक राज्य सरकार सहित केंद्र सरकार (central government) के लिए भी बहुत बड़ी शर्मनाक स्थिति का सबब बन गयी थी। इससे यह सन्देश चला गया था कि सुप्रीम कोर्ट में इस आरक्षण की वकालत करने वाली केंद्र और राज्य सरकार इसके पक्ष में आधी-अधूरी तैयारी ही कर सकी थीं। इसलिए यह सोचने में कोई संदेह नहीं है कि इस बड़े डैमेज (damage) को मैनेज (manage ) करने के लिए शिवराज ने अपने दाएं-बाएं किसी पर भरोसा करने की बजाय खुद आगे की तैयारियों को पुख्ता स्वरूप प्रदान किया और नतीजा सामने है।
इस घटनाक्रम से एक बार यह तथ्य स्थापित हुआ है कि शिवराज विपरीत परिस्थितियों में और अधिक शक्ति के साथ सफलता हासिल करने में माहिर हैं। इस मामले में उनकी तकदीर और तदबीर, दोनों का ही उल्लेखनीय योगदान रहता है। शिवराज पूरी तैयारी के साथ आगे बढ़े। निश्चित ही खुद उन्हें भी इस बात की पूरी आशंका थी कि सुप्रीम कोर्ट अपना पुराना निर्णय पलटने से इंकार कर देगी। इसलिए Reservation के बगैर चुनाव कराने का फैसला आते ही चौहान ने घोषणा कर दी थी कि BJP चुनावों में तीस फीसदी टिकट ओबीसी वर्ग (OBC Category) को ही देगी। यदि आज का निर्णय सरकार के पक्ष में नहीं आता, तब भी अपने इस फैसले से शिवराज ने भाजपा और ओबीसी वर्ग के बीच पनपे फासले को कम करने का अग्रिम तौर पर ही पुख्ता इंतजाम कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट में मिली इस जीत के बाद अब जहां भाजपा एक बार फिर इस विषय को लेकर कांग्रेस पर आक्रामक हो जाएगी, वहीं कल तक आरक्षण को लेकर भाजपा को लगातार घेर रही कांग्रेस (congress) को अब शायद डिफेंसिव मोड पर आना पड़ जाएगा। यूं तो कमलनाथ (Kamal Nath) पहले से ही जो दलीलें देते आ रहे हैं, उनमें यही दावा निहित था कि यदि चुनाव में ओबीसी को आरक्षण मिला तो वह कांग्रेस की कोशिशों का परिणाम है और यदि ऐसा नहीं हुआ तो यह भाजपा की विफलता का प्रतीक होगा। अब यह चुनाव के नतीजे आने के बाद आरक्षित सीटों के नतीजे से ही साफ होगा कि मतदाता ने किस के कहे को सही माना है। वैसे मतदाता इस मामले में भाजपा की प्रतिबद्धता को पिछले डेढ़ दशक से ज्यादा समय से देखता आ रहा है। आखिर 2003 के पहले प्रदेश में पहले कभी कोई पिछड़ी जाति का मुख्यमंत्री कहा हुआ था। और भाजपा ने तो शिवराज को चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाकर पिछड़े वर्ग के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को कायम रखा है।
हालांकि शिवराज के लिए चुनौतियों का दौर अभी खत्म नहीं हुआ है। राज्य में एक अघोषित अभियान यह भी चल रहा है कि इस सरकार ने पिछड़ा वर्ग को लुभाने के लिए खासतौर पर अगड़े वर्ग की उपेक्षा की है। यूं तो शिवराज ने राज्य में दस प्रतिशत सवर्ण आरक्षण तथा सवर्ण आयोग बनाने के माध्यम से इस संकट से निपटने का भी प्रयास किया है, लेकिन 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण (27% OBC reservation) को लेकर सरकार तथा भाजपा की तरफ से जो शोर-भरा जोश दिखाया गया, वह ‘माई का लाल’ जैसी प्रतिकूल प्रतिक्रिया का कारण बन सकता है। इस बारे में BJP को सावधान रहना होगा। फिर अब जब सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की कुल सीमा 50 फीसदी तक लागू करने की मंजूरी दे दी है, तब भाजपा यह दबाव भी आ सकता है कि वह पिछड़ा वर्ग को चुनाव में 27 प्रतिशत से भी अधिक सीटों पर कैसे मौका दिया दें।
जाहिर है, सरकार और BJP दोनों ने इसके तरीकों पर विचार किया है। वैसे भी इस आबादी के व्यापक चुनावी असर के बीच सामान्य सीटों पर पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों का चुनाव लड़ने पर कोई रोक तो होती नहीं है। आखिर विधानसभा चुनाव में भी बिना OBC आरक्षण के भी पिछड़ी जातियों को राजनीतिक दल पर्याप्त प्रतिनिधित्व देते हैं। और भाजपा ने तो पिछले लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा (Chhindwara) की सामान्य लोकसभा सीट पर भी आदिवासी उम्मीदवार को उतार कर congress को मुश्किल में ला ही दिया था। राजनीति की पिच पर शिवराज ने आरक्षण के पक्ष में तो कुशल तरीके से क्षेत्ररक्षण कर लिया, लेकिन अब आगे जब परिणामों की बारी आएगी तो क्षण-क्षण बढ़ती चुनौतियां उन्हें फिर अग्नि परीक्षा वाली स्थिति में ला सकती हैं। लेकिन ऐसी परीक्षाओं को पास करने का तो उन्होंने रिकार्ड बना ही लिया है।