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अब और विस्तार न हो ऐसे हालात का

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राज ठाकरे (Raj Thakrey) अक्सर नाराज दिखते हैं और वह भी पूरी ठकरास वाली शैली में। फिलहाल वे महाराष्ट्र (Maharashtra) में अपने कजिन उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को एक तरह से अंग्रेज लार्ड कर्जन (English Lord Curzon) साबित करने के अघोषित अभियान में जुटे हुए हैं। कर्जन ने राष्ट्रवादी भावनाओं को कुचलने के लिए गुलाम भारत में बंगाल का विभाजन कराया। राज जिस तरह के आरोप उद्धव के नेतृत्व वाली महाअघाड़ी सरकार (mahaaghadi government) पर दाग रहे हैं, उनमें यह भाव निहित है कि यह सरकार महाराष्ट्र (Government of Maharashtra) में विभाजन वाली नीतियों को बढ़ावा दे रही है। हनुमान चालीसा का पाठ (recitation of hanuman chalisa) करने वालों को हिरासत में लिया जा रहा है और सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) के आदेश को धता बताकर लाउड स्पीकर पर अजान (azaan on loudspeaker) करने वालों पर कार्यवाही नहीं हो रही है। राज ने दावा किया है कि आज भी राज्य की 135 मस्जिदों में लाउड स्पीकर पर अजान जारी है। उन्होंने घोषणा की है कि अब उनके लोग मस्जिदों के सामने दोगुनी आवाज में हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे।

मनसे प्रमुख (MNS chief) राज इस अभियान में कितने मन से जुटे हैं, यह समझना बहुत कठिन नहीं है। उन्होंने बखूबी यह कोशिश कर दी है कि शिवसेना से बाला साहेब ठाकरे और हिंदुत्व (Balasaheb Thackeray and Hindutva) को अपनी तरफ खींच लिया जाए। मनसे की तरफ से राज्य में वह वीडियो दिखाया जा रहा है, जिसमें बाला साहेब राज्य में शिवसेना की सरकार (Shivsena government) बनने पर मस्जिदों से लाउड स्पीकर उतरवाने की बात कहते दिख रहे हैं। स्पष्ट है कि इस वीडियो के माध्यम से मनसे ने शिवसेना (Shiv Sena) को उसके संस्थापक एवं हिन्दुवाद के प्रबल समर्थक (strong supporter of Hinduism) बाला साहेब के प्रशंसकों की नजर में बुरा बनाने का अभियान छेड़ दिया है। इस बात को लेकर भी कोई दो-राय नहीं हो सकती कि ऐसा कर राज ने महाराष्ट्र में अपनी पार्टी की जड़ों को मुंबई के बाहर तक विस्तार देने की कोशिश की है। इसीलिए हनुमान चालीसा बनाम अजान के विवाद पर राज ने औरंगाबाद (Aurangabad) में ‘दोगुनी आवाज’ वाली गर्जना की है।

वह दिन अतीत का हिस्सा बन चुका है, जब उद्धव (Uddhav) ने अयोध्या (Ayodhya) में जाकर रामलला (Ramlala) के दर्शन किये थे। ऐसा कर उन्होंने यह जताने का प्रयास किया था कि शिवसेना हिंदुत्व को लेकर अपने रुख पर अब भी कायम है। अब समय बिलकुल अलग है। CM रहते हुए उद्धव के लिए यह संभव नहीं है कि वह हनुमान चालीसा के आयोजन को भड़काऊ स्वरूप में बदलते हुए चुपचाप देखते रहें। लेकिन वह यह भी तो देख ही रहे होंगे कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की मस्जिदों में किस तरह खुली अवहेलना की गयी है। ऐसे में मुख्यमंत्री के लिए राज का यह सवाल उलझन का प्रतीक बन गया है कि अदालत के ऐसे अपमान के मामले में सरकार कोई कदम क्यों नहीं उठा रही है? उद्धव और उनके संकटमोचक संजय राऊत (Sanjay Raut) जवाब में एक काम कर रहे हैं। उन्होंने हनुमान चालीसा के समर्थन में दी जा रही चुनौतियों को ‘गुंडागर्दी’ की संज्ञा देकर उन दिनों की याद ताजा कर दी है, जब शिवसेना से अलग होने के बाद राज की मनसे ने महाराष्ट्र में उत्तर भारतियों (North Indians) पर जमकर कहर बरपाया था।

क्या शिवसेना का यह प्रयास सफल रहेगा? क्योंकि अब मामला ठेठ हिंदुत्व पर जा टिका है और यह वही हिंदुत्व है, जिसने हाल ही में उत्तरप्रदेश में भाजपा को तमाम खिलाफ हालात के बावजूद फिर सत्ता में पहुंचा दिया। हिंदुत्व के इस फैक्टर का ही असर है कि देश में तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले तमाम राजनीतिक दल तिलक लगाने और मंदिरों की सीढी चढ़ने की होड़ में जुट गए हैं। ऐसे में यदि राज का यह अभियान वर्ष 2024 तक खिंच गया तो फिर उस साल संभावित महाराष्ट्र विधासभा के चुनाव (Maharashtra assembly elections) में कम से कम शिवसेना को हिन्दू वोटों के लिहाज से तगड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। वर्तमान ट्रेंड को देखते हुए यह भी हो सकता है कि भाजपा (BJP) के खिलाफ शिवसेना (Shivsena) को एनसीपी (NCP) और कांग्रेस (Congress) की संगत में मुस्लिम मतों (Muslim votes) का थोकबंद लाभ मिल जाए।

राज को लेकर फिलहाल BJP ने खामोशी अख्तियार कर रखी है। फिर भी इस बात में दम दिखता है कि मनसे की इस मुहिम को भाजपा का मौन समर्थन हासिल है। भाजपा पूरी तरह खुलकर राज के समर्थन में आएगी, इसके आसार कम हैं। ऐसा होने पर पार्टी को उन प्रदेशों में नुकसान उठाना पड़ सकता है, जहां आम चुनाव से पहले विधानसभा के चुनाव होने हैं और जहां हिंदुत्व का विषय मतदाताओं को बहुत अधिक आकर्षित नहीं करता है। भाजपा को निश्चित ही यह चिंता भी होगी कि राज के इस अभियान को हवा देने के चलते उसे कहीं महाराष्ट्र के अपने उन नेताओं के ही गुस्से का सामना न करना पड़ जाए, जो राज ठाकरे को दी गई तवज्जों को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे। यह तवज्जों वो है जो इस आंदोलन के जरिये राज भाजपा से हासिल करना चाह रहे हैं और भाजपा ऐसा करने या न करने के बीच उलझन में फंसी दिख रही है। गनीमत है कि यह उलझन धर्मों की बजाय फिलहाल उन्हें मानने वालों को ही राजनीति का मोहरा बना पाई है। इसलिए यही कामना की जाना चाहिए कि इन हालात का अब और अधिक विस्तार न होने पाए।

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