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तो सूर्य की रोशनी लेने को भी कह दीजिए ‘हराम’

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मूर्खता का चरम यूं ही आत्मघाती नहीं कहलाता। उस पर इस चरम वाले तत्व में यदि चरमपंथ का तड़का लग जाए, तो फिर बात खुद के साथ-साथ ही दूसरों के लिए भी घातक हो जाती है। वैसे मैं समूचे आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) को चरमपंथी (charamapanthi) नहीं मानता। लेकिन इसका हर वह शख्स इस पंथ के प्रभाव से पथभ्रष्ट जरूर दिखता है, जो आये दिन एक से बढ़कर एक विचित्र बातें पेश करता है। बोर्ड ने पूर्णत: घोषित तरीके से एक अघोषित फतवा (Aghoshit phatava) जारी किया है। उसने मुस्लिम बच्चों (Muslim children) को सलाह दी है कि वे स्कूलों में सूर्य नमस्कार न करें, क्योंकि सूर्य को नमस्कार (sury ko namaskar) करना सूर्य की पूजा है और इस्लाम (Islam) इसकी अनुमति नहीं देता है। बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी (General Secretary Maulana Khalid Saifullah Rahmani) ने कहा कि यह बहुत अफसोस नाक है कि मौजूदा सरकार देश के सभी वर्गों पर बहुसंख्यक संप्रदाय की सोच और परंपरा को थोपने की कोशिश कर रही है।

रहमानी इस सोच वाले अकेले व्यक्ति नहीं हैं। योग की भारतीय अवधारणा (Indian concept) को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने की सफल कोशिश का भी इसी तरह अपने ही देश में जमकर विरोध किया गया था। आजम खान (Azam Khan) फिलहाल जेल (Jail) की हवा खा रहे हैं। जब वह खुली हवा में सांस ले रहे थे, तब उन्होंने भारत माता के लिए डायन शब्द का इस्तेमाल किया था। भोपाल के विधायक (Bhopal MLA) आरिफ मसूद (arif masood) ने कांग्रेस की सरकार (Congress government) के समय साफ कहा था कि वह वन्देमातरम (Vandemataram) नहीं कहेंगे, क्योंकि इस्लाम उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता है। देवबंद से भी इस तरह की बातें कई बार मुस्लिम धर्मगुरु (muslim dharmaguru) कह चुके हैं। कुल मिलाकर मामला यही दिखता है कि राष्ट्रीय गौरव के प्रतीकों को धर्म या पंथ विशेष से जोड़कर उनके विरुद्ध वातावरण निर्मित किया जाए।

सूर्य नमस्कार को लेकर भी ऐसा ही हो रहा है। दुनिया के कई मुस्लिम देशों (Muslim countries) में योग को अपनाया गया है और वे बाकायदा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाते हैं। सूर्य नमस्कार भी तो योग का एक हिस्सा ही है। इसके दस आसनों के नाम भले ही विशुद्ध रूप से संस्कृत वाले हों, किन्तु वे सभी उस संस्कृति का परिचायक हैं, जो सभी के स्वास्थ्य की चिंता करती है। पश्चिम में प्रचलित पावर योगा (power yoga) में सूर्य नमस्कार एक महत्वपूर्ण व्यायम (exercise) है । जब ‘सर्वे सन्तु निरामया:’ कहा जाता है तो उसमें यह कहीं भी उल्लेखित नहीं है कि यह सदिच्छा केवल हिन्दुओं (Hindus) के लिए की जा रही है। सबके स्वस्थ रहने की यह कामना विश्व के एक-एक मानव के लिए की गयी है। जिन्होंने यह कल्पना की, उन्होंने ही मानव-जाति के स्वास्थ्य की रक्षा हेतु योग की प्रणाली का आविष्कार (Avishkar) किया। उसमें स्वस्थ जीवन शैली की गरज से सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar) वाली अनुपम भेंट प्रदान की। फिर भला उसे धर्म से कैसे जोड़ा जा सकता है? आप बेशक कोई मंत्रोच्चार न करें, लेकिन मौन होकर ही वह सूर्य नमस्कार तो कर लें और करने दें, जो अंतत: अच्छी सेहत का रामबाण प्रबंध दुनिया के बहुत बड़े हिस्से में माना जा चुका है।

समझ नहीं आता कि अब आमिर खान (Aamir Khan), नसीरुद्दीन शाह (Naseeruddin Shah), जावेद अख्तर (Javed Akhtar), शबाना आजमी (Shabana Azmi) और मुनव्वर राणा (Munawar Rana) जैसे वह मुस्लिम चेहरे क्यों चुप हैं, जो इस विषय पर पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा फैलाये जा रहे भ्रम का सच सामने लाने की क्षमता रखते हैं। इन सभी ने समय-समय पर अपने-अपने तरीके से मुस्लिम समुदाय (Muslim community) की चिंता की है। तो इन सभी को इस बात की भी फिक्र होनी ही चाहिए कि उनका समुदाय किसी धर्मांध सोच के चलते अपने स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत आजमाए हुए नुस्खे से वंचित न कर दिया जाए। सूर्य नमस्कार तो सर्वांगासन के रूप में वह अमूल्य धरोहर है, जिसे यदि व्यवहार में लाया जाए, तो फिर शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए और किसी व्यायम की जरूरत ही नहीं रह जाती है।

इसका विरोध आखिर क्यों किया जाना चाहिए? और अगर इतना ही धार्मिक आग्रह (दुराग्रह कहना ठीक होगा) आप पाल रहे हैं तो फिर ये तथ्य भी आपको समझना होगा कि हिंदुओं में सूर्य (Sun) और चन्द्रमा (moon) को देवता (God) माना गया है। सूर्य नमस्कार से इतर उनकी पूजा की भी पद्धति है। तो क्या आप अब अपने समुदाय के लोगों को यह सलाह देंगे कि क्योंकि सूरज हिन्दुओं के भगवान हैं, इसलिए उनकी रोशनी लेना भी हराम है। सोलर एनर्जी से जुड़े तमाम लाभों में हिस्सेदारी भी इस्लाम में वर्जित घोषित की जाना चाहिए। अपने लोगों को क्या अब यह सलाह दी जाएगी कि सूर्य ग्रहण के दौरान वह पूरी कोशिश करके सूरज को निहारें? ग्रहण के बीच हिन्दू पूजन करते हैं और यह मान्यता न सिर्फ वैज्ञानिक बल्कि धार्मिक भी है कि ग्रहण के समय सूरज को नहीं देखना चाहिए।

दरअसल मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी Maulana Khalid Saifullah Rahmani() उस मानसिकता का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो मुस्लिम समुदाय को संकीर्ण मानसिकता वाली बंद गली से बाहर आने ही नहीं देना चाहती है। जिसका हर कदम पर यही प्रयास रहता है कि मुस्लिम समाज के लोग दकियानूसी सोच की जंजीरों को तोड़कर समाज की मुख्य धारा में शामिल न हो सकें। यदि ऐसा हो गया तो फिर रहमानी जैसों की धार्मिक दुकान बंद होने की स्थिति बन जाएगी। इसलिए धर्म को नाहक ढाल बनाकर उस महत्वपूर्ण कर्म से मुस्लिम समाज को दूर करने की साजिश की जा रही है, जो कर्म एक स्वस्थ जीवन की शर्तिया कुंजी है।

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