हाल ही में सोशल मीडिया (social media)पर एक वीडियो (Video) देखा। वह किसी ऐसी जगह का है, जहां की भाषा समझ नहीं आती। फिर भी उसे देखना रोचक है। इसमें किसी पार्टी के दौरान एक आदमी, दूसरे को प्लेट हाथ में उठाकर उसे स्टेयरिंग (steering) की तरह घुमाते हुए गाड़ी चलवाने का अभिनय करवा रहा है। पहला प्लेट को घुमाने लगता है और दूसरा उसकी नक़ल करता है। इसी दौरान पहला आदमी अपनी प्लेट के पीछे हाथ फहराकर फिर उसी हाथ से अपना मुंह पोंछ लेता है। दूसरा भी तुरंत ही ऐसा करता है। यह जाने बगैर कि उसकी प्लेट के पीछे कालिख (kalikh) पोत दी गयी थी, जो अब उसके चेहरे पर लग चुकी है। यह देखकर सभी लोग हंस-हंस कर लोटपोट हो जाते हैं। दूसरा यह सोच कर खुश होता रहता है कि यह दरअसल उसकी इस कला की तारीफ़ हो रही है।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Congress MP Rahul Gandhi) के इन दिनों के हिंदुत्व वाले फोबिया (Hindutva Phobias) और इस वीडियो में बहुत समानता है। हिन्दू (Hindu) और हिन्दुवाद (hinduvad) के बीच तुलना की जो व्याख्या वे कर रहे हैं, उसने उन्हें किसी विदूषक की स्थिति में ला दिया है। इसे पूर्वाग्रह मत समझिये, लेकिन गांधी की जितनी समझ है, उस लिहाज से यह तय है कि वह किसी और के इशारे पर चलते हैं। हिन्दू और हिंदुत्व के बीच किसी दरार को खोदने की बचकानी कोशिश में राहुल के लिए ज्यादातर लोगों के लोटपोट होने का भाव सोशल मीडिया में साफ़ देखा जा सकता है। जो खुलकर हंस नहीं पा रहे, उनके दो वर्ग हैं। पहला वो जो मान चुका है कि राहुल को अब उनके ही हाल पर छोड़ दिया जाना चाहिए। दूसरे वे, जो कांग्रेस (Congress) में हैं और जानते हैं कि इस मसले पर हंसेंगे तो बुरी तरह फसेंगे।
गुलजार की फिल्म (gulajar kee film) ‘परिचय (parichay)’ में कड़क मालिक का नौकर हंसी आने पर जंगल की तरफ भागता था। क्योंकि यदि घर में हंसा तो मालिक के हाथ उसकी दुर्गति हो जाना तय है। यही आज कांग्रेस के उन वास्तविक समझदार नेताओं का सच है, जो मेरे विचार में राहुल की इन उलटबासियों को सुनकर हंसने के लिए किसी जंगल में ही जाते होंगे।
आखिर वे कौन है/कौन हैं, जिसने/जिन्होंने राहुल को प्रधानमंत्री (PM) पद की काल्पनिक स्टेयरिंग थमाकर उनके चेहरे पर कालिख उतारने जैसा काम किया है? इससे भी बड़ा सवाल यह कि ऐसा किया क्यों जा रहा है? मुझे लगता है कि यह उस तबके की सोची-समझी रणनीति है, जो कांग्रेस में गांधी-नेहरू परिवार (Gandhi-Nehru family) के वर्चस्व को इस तरह समाप्त करना चाह रहा है। जिसका प्रयास है कि इस तरह की सलाह से राहुल को इस हद तक एक्सपोज (Expose) कर दिया जाए कि अंततः वह पूरी तरह पार्टी के लिए नकारा साबित कर दिए जा सकें। वरना यह मुमकिन ही नहीं है कि कोई एक के बाद एक ऐसी हास्यास्पद छवि की परतों में लिपटता चला जाए और उसे रोकने वाला भी कोई न हो। यह कल्पना भी बेमानी है कि प्रियंका वाड्रा (Priyanka Vadra) अपने सहोदर को इस प्रलयंकारी और आत्मघाती भूल से रोक सकें, क्योंकि वाड्रा की सियासी समझ तथा क्षमता भी अपने भाई से एक इंच भी आगे नजर नहीं आती। सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को ईश्वर (God) स्वास्थ्य तथा दीर्घायु प्रदान करें, किन्तु कहा यही जा रहा है कि स्वास्थ्य के चलते अब वह पहले जैसी राजनीतिक सक्रियता से दूर हो गयी हैं। शायद इसलिए वह भी पुत्र के मोह में राहुल के पार्टी-द्रोह जैसे कदमों को रोक नहीं पा रही होंगी।
पहले राहुल मोदी (Modi) से शुरू होकर मोदी पर ख़त्म हो जाते थे। अब वह हिन्दुओं से शुरू होकर हिन्दुवाद पर रुक रहे हैं। नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के लिए उन्होंने जितना जहर उगला, उतना ही अधिक जनता का ध्रुवीकरण मोदी के पक्ष में हो गया। मोदी के खिलाफ राजनीतिक जंग में राहुल जिसके साथ खड़े हुए, उसका बेड़ा गर्क हो गया। इसी जंग में जिसने राहुल को परे धकेला, उसका बेड़ा पार हो गया। उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के बीते चुनाव में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की समाजवादी पार्टी (SP) की दुर्गति और पश्चिम बंगाल (West Bengal) के चुनाव में ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की जीत राहुल के साथ होने और न होने के परिणामों के बीच जमीन-आसमान के अंतर को साफ़ रेखांकित करती हैं।
राहुल की समझ की कमी को हालिया कुछ उदाहरणों से भी समझा जा सकता है। हिंदुत्व का यह वह दौर है, जिसने कुछ समय पहले के तुष्टिकरण मास्टर अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को भी ‘नानी याद दिला दी’ है। कभी अल्पसंख्यक वोटों (minority votes) का रट्टा मारने वाले केजरीवाल और उनकी पार्टी के तमाम नेता मंदिर-मंदिर जाने लगे हैं। उन्हें शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) से सिख लेकर बुजुर्गों को तीर्थ यात्रा करवानी पड़ रही है। अयोध्या (Ayodhya) में कारसेवकों पर गोली (shot at kar sevaks) चलवाने वाले मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के बेटे अखिलेश यादव भी तिलकधारी दिखने लगे हैं। किसी समय जय श्रीराम के नारे पर आपा खो देने वाली ममता बनर्जी को इसी हिंदुत्व ने बीते चुनाव में मंच पर चंडी पाठ करने की याद दिला दी थी। इस देश को ‘तिलक, तराजू और तलवार’ की विभाजक राजनीति के दलदल में धकेलने वाली बसपा (BSP) भी अब इस दलदल से निजात पाने के लिए तिलक, तराजू और तलवार वालों की चिरौरी करने पर मजबूर हो गयी हैं। यहां तक कि घोर वामपंथी सीताराम येचुरी (Sitaram Yechury) भी कुछ वक्त पहले की एक तस्वीर में सिर पर कलश रखकर हिन्दुओं के एक धार्मिक आयोजन में हिस्सा लेते नजर आ गए थे। जब तमाम भाजपा-विरोधी दल (anti-BJP party) हिन्दू वोट की काट के लिए अपना रास्ता बदल रहे हैं, तब राहुल किस वजह से अपनी पार्टी की गाड़ी को रिवर्स गेयर (रिवर्स गेयर ) में दौड़ाने पर आमादा हैं? यह प्रश्न गांधी की राजनीतिक सोच और क्षमता को दर्शाता है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा शुरू में बताये गए वायरल वीडियो के कालिख से पुते चेहरे वाले आदमी की याद दिलाता है।