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ये क्या हो जाता है दिग्विजय जी को…

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पता नहीं ये दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) को अक्सर क्या हो जाता है! इतने चतुर होकर भी वह गलतियां (mistakes) कर देते हैं। फिर इस बार तो उन्होंने ‘घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्ध’ वाली भूल कर दी है। दिग्विजय ने दो विवादित कॉमेडियन (two controversial comedians) , मुनव्वर फारूकी (Munawwar Farooqui) और कुणाल कामरा (Kunal Kamra) को भोपाल में आकर शो (show in Bhopal) करने का निमंत्रण (Invitation) दिया है। ऐसा भी कोई करता है भला? जब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) मौजूद हैं, तब बाहर वाले कॉमेडियन की सेवाएं लेने की भला क्या तुक है?

राहुल ने रविवार को एक बार फिर अपने कॉमेडियन स्वरूप (Comedian Swaroop) का सप्रमाण परिचय दिया। खुद को हिंदू (Hindu)बताया। हिंदुत्ववादियों (Hindutvawadis) को देश से हटाने की बात कही। छाती और पीठ का अंतर बिसरा कर उन्होंने अपनी सभा में हंसने आये सैंकड़ों लोगों को निराश नहीं किया।

इतने मनोरंजक एपिसोड (entertaining episode) के चौबीस घंटे भी नहीं बीते थे कि दिग्विजय को हंसने के लिए फारूकी और कामरा की आवश्यकता महसूस होने लगी। दिग्विजय चाहते हैं कि ये कॉमेडियन भोपाल आकर उनका मजाक बनाएं। ये भी राहुल गांधी की क्षमताओं को कम करके आंकने की महाभूल ही होगी। क्योंकि दिग्विजय संभवत: भूल गए हैं कि राहुल एक मौके पर उनका भी अप्रत्यक्ष रूप से मजाक बना चुके हैं। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव (Assembly elections) के समय राहुल मंदसौर (Mandsaur) आये थे। जहां की चुनावी सभा में उन्होंने दस दिन (Ten days) में किसानों का कर्ज माफ (farmers loan waiver) करने वाला लतीफा सुनाया था। तब राहुल ने दिग्विजय को मंच पर बुलाना तो दूर, उनसे बात करना तक उचित नहीं समझा था। तब दिग्गी राजा (diggi raja) के विरोधियों को बजरिये राहुल उनका मजाक बनाने का भरपूर मौका मिला था।

राहुल हैं बहुत रोचक। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि जो भी हो, गांधी खुद को हिंदू बता रहे हैं। हो सकता है कि गुपचुप उन्होंने धर्म परिवर्तन कर लिया हो। वैसे सुब्रमण्यम स्वामी (Subramanyam Swami) का तो दावा है कि राहुल ईसाई हैं। उन्होंने बाकायदा 10 जनपथ के भीतर एक चैपल (छोटा चर्च) बना रखा है। हिंदू राहुल को तो चाहिए था कि स्वामी को इस बात के लिए अदालत खींच कर ले जाते। गांधी ने आपराधिक मामले (criminal cases) में स्वयं तथा अपनी माताजी की जमानत कराने के लिए पापड़ बेले। आपको ‘चौकीदार चोर है’ (chaukidar chor hai) की टिप्पणी के लिए कोर्ट से माफी मांगने का अनुभव भी प्राप्त है। तो फिर कानून-व्यवस्था (Law and order) के ज्ञाता हो जाने के बाद भी क्यों नहीं वे स्वामी को उनके इस कथन के लिए अदालत तक खींच कर नहीं ले गए, यह रहस्य का विषय है। वैसे, महंगाई के विरोध में आयोजित कांग्रेस (Congress) की जयपुर रैली (Jaipur Rally) में राहुल का जोर महंगाई पर कम हिन्दू (Hindu) और हिंदुत्व (hindutva) पर ज्यादा था। जाहिर है, राजनीति में उनका मन नहीं रम रहा है। इसमें परिपक्व होने की शायद उनमें इच्छाशक्ति भी नहीं है। उन्हें ले दे कर मोदी (Modi) को कौसने के लिए एक मंच चाहिए। बस। कांग्रेसी बेचारे इंतजार कर रहे हैं कि राहुल उनकी सत्ता में वापसी कराएंगे।

खैर, राहुल के कहे को गंभीरता से लेने का जोखिम उठाया जाए तो कई अप्रिय सवाल उठते हैं। कांग्रेस नेता की बात मान लें तो फिर यह भी मानना ही होगा कि देश का बहुमत हिंदुत्व को समर्थन तथा मान्यता प्रदान कर चुका है। वह भी इस हद तक कि देश के चुनावी इतिहास में 2014 में पहली बार किसी गैर-कांग्रेसी दल (non-congress party) को उसने स्पष्ट बहुमत प्रदान किया। फिर 2019 में भी मतदाता ने इसे बढ़चढ़ कर दौहराया। अब गांधी इस हिंदुत्व को मिटाना चाहते हैं। तो कौन-कौन हैं उनके निशाने पर? वह करोड़ों लोग, जो इस बात से खुश हैं कि अयोध्या में राम मंदिर (Ram temple in Ayodhya) बन रहा है? वह असंख्य आबादी, जिसने कश्मीर (Kashmir) से अनुच्छेद 370 (Article 370) के खात्मे तथा देश में समान नागरिक संहिता (uniform civil code) का समर्थन किया है? भाजपा (BJP) के हिन्दूत्व को सही या गलत ठहराने से पहले यह तो सोचना ही पड़ेगा कि देश की बहुसंख्यक जनता की भावना क्या है? क्या आप के जैसे हिन्दू की अगुवाई लोग स्वीकार कर रहे हैं।

देश का वह बहुत बड़ा जनमानस, जिसने स्वयंभू हिंदू राहुल के राजनीतिक अरमानों को उस अस्थायी जनेऊ पर लटका दिया, जिसे पहनकर गांधी ने बीते गुजरात विधानसभा चुनाव (gujarat assembly election) के दौरान हिंदुत्व के खिलाफ स्वयं को विकल्प के रूप में स्थापित करने की कोशिश की थी? यदि राहुल केंद्र में वर्ष 2014 से हिंदुत्व वाली सरकार (Government) होने से नाराज हैं तो फिर उनका गुस्सा उस हर व्यक्ति पर भी होगा, जो BJP की रीति-नीतियों से प्रभावित होकर कांग्रेस का जनाधार सिकुड़ने में अहम भूमिका निभा चुका है। और जिसने इसी अनुपात में देश के कई राज्यों में भाजपा की सरकार बनाने या उसका वोट प्रतिशत उल्लेखनीय रूप से बढ़ाने में योगदान दिया है। तो राहुल इन तमाम लोगों को भी ‘अपने तरीके से हटाने’ की बात कर रहे हैं?

राहुल ने एक बात निस्संदेह रूप से सही कही। महात्मा गांधी निश्चित ही हिंदू थे। वैसे हिंदू तो चितपावन ब्राह्मण नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) भी था। विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) भी इसी समुदाय से थे। राहुल ने महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को हिंदू माना, लेकिन गोडसे को ऐसा मानने से उन्होंने इंकार कर दिया। तो क्या हिंदू होने के सर्टिफिकेट (certificate) की इस बंदरबाट का आधार यह है कि महात्मा गांधी ने स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे अब्दुल राशिद (Abdul Rashid, the killer of Swami Shraddhanand) का ‘मेरा भाई’ कहते हुए बचाव किया था? या इसका पैमाना यह कि गांधी जी ने बंगाल (Bengal) के भीषण दंगों में हिंदुओं के नरसंहार (massacre of hindus) पर मौन साध लिया था? शायद राहुल का क्राइटेरिया यह हो कि बापू ने हजारों हिन्दुओं के शवों से भरी ट्रेन (train full of dead bodies) भारत (India) भेजने वाले हत्यारे पाकिस्तान (Pakistan) को आर्थिक मदद देने के लिए जिद पकड़ ली थी, जबकि गोडसे इस बात को लेकर बहुत नाराज बताया गया था। अब राहुल के हिन्दूत्व पर भी कांग्रेसियों के ट्विटर (Twiter) पर मीम देखें। हिन्दू तो मतलब प्रवचन देते ऋषि और हिन्दूत्व तो फरसा पकड़े क्रोधित परशुराम (angry parshuram)। अब राहुल के इन बेअक्लें अनुयायियों का भी क्या हो सकता है। अब जब राहुल को ही छाती और पीठ के साथ छुरे का मतलब नहीं पता तो फिर कहना यही चाहिए, हे राम, इन्हें माफ करना, उसे पता नहीं हैं वो क्या कह रहा है।

अब राहुल जो है सो है, लेकिन दिग्विजय की बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता पर मुझे रत्ती भर का भी संदेह नहीं है। संदेह तो केवल इस बात का है कि क्यों कर दिग्विजय ने अपने नेता राहुल गांधी के विकल्प के तौर पर अप्रत्यक्ष रूप से मुनव्वर फारूकी और कुणाल कामरा को चुना? किसी के पास मेरी इस शंका का समाधान है?

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