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मत बदलिएगा उस चटके हुए लेंस को

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सच्ची-सच्ची बताना। उस रात कित्ते खींच लिए थे? जुबान की लड़खड़ाहट और आंखों की बौखलाहट तो साफ़ बता रही थी की माल कुछ तेज हो गया था। फिर बात जब बिपिन रावत जी (Mr Bipin Rawat) से शुरू होकर वीके सिंह (VK Singh) तक पहुंच जाए तो मामला सनक के पिनक में बदल जाने वाला हो जाता है। काफी चटके हुए अंदाज में भटके हुए आप जो लटके-झटके दिखा रहे थे, वह अत्यंत मनोहारी थे। उस पर आपका वो दुखी होना मुझे भीतर तक व्यथित कर गया। कहा जा रहा है कि स्टूडियो (studio) में आने से पहले आपने दिल्ली (Delhi) से बाहर एक विवाह समारोह (marriage ceremony) में कुछ ज्यादा ही माल ग्रहण कर लिया था। फिर आप उस अंदाज में नाचे, जो प्रेमचंद (Premchand) की ‘कफ़न’ के अंत में झूमने वाले माधव (madhav) और घीसू की मस्ती की याद ताजा कर गया। शायद इसके बाद किसी ने आपको याद दिलाया होगा कि नाचने का शौक बहुत हो गया, अब शोक की बारी है। चुनांचे आप सीधे कैमरे (cameras) के सामने आ गये और ज़रा ही देर में आपकी अवस्था का सच दुनिया के सामने आ गया।

ग़म ग़लत करना बुरी बात नहीं है। फिर जब मामला ‘शो मस्ट गो ऑन’ (‘Show Must Go On’) वाला हो तो इस प्रक्रिया का सहारा लेना शायद जरूरी हो जाता होगा। बड़े लोगों की बड़ी बातें। लेकिन यहां बात कुछ ऐसी हुई कि मामला ‘शो मस्त गो ऑन’ वाला हो गया। आप मस्त थे, लेकिन वो ..वाद पस्त हो गया, जिसकी दुहाई देते हुए आप प्राइम टाइम (prime time) में स्वयं से मतभेद रखने वाले की धज्जियां उड़ा देते आये हैं। जिन्हें कई मर्तबा आपने पाकिस्तान या अफ़ग़ानिस्तान चले जाने की सलाह दी थी, अब वे सभी समझ गए होंगे कि यदि इन देशों में नहीं जाना है तो फिर शाम को किस वैकल्पिक ठिकाने पर जाया जा सकता है।

कॉकटेल (Cocktails) खतरनाक होती है। फिर जब मामला पद, प्रतिष्ठा के साथ-साथ किसी तरल किस्म के नशे की कॉकटेल का भी हो तो बात बिगड़ते देर नहीं लगती। खैर, जो बिगड़ गया है, उसे तो आप संभाल लेंगे। आपकी महारत है इसमें। लेकिन बिगड़े मिज़ाज (bad mood) का कोई क्या करे, जो अंततः इंसान को भस्मासुर (Bhasmasura) की श्रेणी में ला खड़ा करता है। जी हां, बात गुरूर में सुरूर के घुस जाने की है। ये उस भूलभुलैया का मामला है, जिसमें आप बिपिन रावत जी को लेकर प्रवेश करते हैं और बाहर आते-आते आप वीके सिंह का हाथ थामे नजर आने लगते हैं। वो सिर थामकर आंखें मींच लेना इस भूलभुलैया के अंधेरे का खौफनाक साइड इफ़ेक्ट (side effect) जताता है।

निश्चित ही यह नितांत रूप से आपका व्यक्तिगत मामला है। शौक आपका। शोक आपका। जगह आपकी। वहां का निजाम आपका। वहां चलने वाला आपके नाम का सिक्का भी आपका। इस सबके बीच हवा के अतिक्रमण (atikraman) करने जितनी भी गुंजाइश नहीं है। लेकिन इस सबका सार्वजनिक हो जाना क्या उचित है? खासतौर से तब, जबकि बात किसी ऐसे माहौल को मखौल में बदल दी जाने वाली हो जाए, जो एक राष्ट्रीय शोक (rashtriy shok) की गंभीरता को अपमानजनक रूप से कम कर जाए। इसलिए दीपक तले का ये अंधेरा (deepak tale ka ye andhera) भीतर तक झकझोर दे रहा है। जमाना सोशल जर्नलिज्म (social journalism) का है। हर वो आदमी पत्रकार (Journalist) है, जिसके हाथ में एक अदद स्मार्टफोन (smart Fone) है। इसलिए मुखयधारा की मीडिया( Media) के लिए आपके झूमने से लेकर 2 हजार के नोट में चिप जैसे तमाम मामले शर्मनाक हैं।

मीर तक़ी मीर साहब (mir taqi mir sahab) की याद आ गयी। उन्होंने लिखा था, ‘या हाथों-हाथ लो मुझे मानिंदे-जाम मैं। या थोड़ी दूर साथ चलो मैं नशे में हूं।।’ आप ने जीवन में वह मुकाम पाया, जहां आपको भी लोग हाथों-हाथ लेते हैं। आप उनके लिए उस जाम की तरह हैं, जिसमें भरे ज्ञान और धारदार तर्क शैली के छलकते घूँट पीकर लोग स्वयं को धन्य समझते हैं। लोग थोड़ी दूर नहीं, बल्कि आपके साथ आपके प्राइम टाइम में पूरी दूरी तय करते हैं। लेकिन अब वे स्वयं को ठगा-सा महसूस कर रहे हैं। क्योंकि ‘जाम में यारों डूब गयी, मेरे प्राइम टाइम की शाम’ वाला एपिसोड (episode) जो हो गया है। मीर साहब ने यह भी लिखा था, ‘नाजुक मिज़ाज आप क़यामत हैं मीर जी। जूं शीशा मेरे मुंह न लगो, मैं नशे में हूं।। ‘ सचमुच आपके नाजुक हृदय दर्शकों पर वह एक शाम क़यामत की तरह ही भारी पड़ी है। रही बात शीशे की, तो निश्चित ही उस कैमरे का शीशा (camera mirror) अफ़सोस के साथ चटक गया होगा, जिसे उस रात लंबे समय तक आपके मुंह सिर्फ इसलिए लगना पड़ा कि उसके सामने आप थे। उसके आका। आप ज्ञानी हैं। वरिष्ठ हैं। फिर भी एक सलाह देकर सूरज को दीपक (Deepak) दिखाने जैसी धृष्टता कर रहा हूं। कैमरे के उस चटके हुए लेंस को मत बदलिएगा। क्योंकि उसकी दरारें आपको ये अहसास कराती रहेंगी कि किस तरह बहुत महीन सुराख भी यश के निर्गम तथा अपयश के प्रवेश का माध्यम बन सकता है।

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