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समय आदिवासियों के बीच ‘अपनों से अपनी बात’ का

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जनजातीय गौरव दिवस (Janjatiy Gaurav divas) के विराट आयोजन के बाद शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) इस दिशा में और सक्रिय हो गए हैं। अब इंदौर (Indore) के पातालपानी रेलवे स्टेशन (Patalpani Railway Swation) का नाम टंट्या (मामा) भील (Tantya Bhil) रेलवे स्टेशन होगा। इंदौर के एक नए बस स्टैंड और भंवरकुआं चौराहा को भी इसी नाम से पहचाना जाएगा। चौहान ने मंडला के पॉलिटेक्निक कॉलेज को अब रानी फूलकुंवर पॉलिटेक्निक (Rani Phoolkunwar Polytechnic) बनाने की घोषणा की है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi)भोपाल (Bhopal) आकर घोषणा कर गए हैं कि अब हर साल 15 नवंबर को बिरसा मुंडा जयंती (Birsa Munda) राष्ट्रीय स्तर पर मनाई जाएगी। जाहिर है पिछले विधानसभा चुनाव में आदिवासी क्षेत्रों में झटका खा चुकी भाजपा इस बार कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती।

कुल मिलाकर माहौल आदिवासियों (Tribes) को सपनों के महल में बिठाने वाला हो गया है। लेकिन समस्या यह कि इस महल में आदिवासियों के अतीत को ही मुकुट पहनाकर सिंहासन पर आसीन किया जा रहा है। बाकी दरबारियों से लेकर कारिंदों और साजिंदों में भी जीते-जागते आदिवासी नजर नहीं आ रहे हैं। यही इन सब घोषणाओं और कर्मकांडों की विडंबना है। शिवराज सभी वर्ग को साथ लेकर चलने वाले राजनेता हैं। यही वजह है कि हर तबके में उनकी लोकप्रियता एवं स्वीकार्यता है। ऐसे में यह उनके लिए एक बहुत बड़ा अवसर है कि मुख्यमंत्री लगे हाथ अपनी पार्टी में आदिवासी वर्ग के मौजूदा चेहरों के विकास की प्रक्रिया भी आरंभ कर दें। इस तबके के नेतृत्व को भाजपा में आगे लाने का यह सुनहरा अवसर है। आदिवासियों के लिए ‘पैसा एक्ट’ Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act, 1996 को चरणबद्ध तरीके से लागू करने का शिवराज सरकार का फैसला भी एक बड़ा कदम है।

यह ठीक है कि फग्गन सिंह कुलस्ते(Faggan Singh Kulaste), कुंवर विजय शाह(Kunwar Vijay Shah), मीना सिंह(Mina Singh), बिसाहूलाल सिंह (Bisahulal Singh) जैसे कुछ आदिवासी चेहरे भाजपा में इस वर्ग को सत्ता में भागीदारी दिए जाने की पुख्ता गवाही देते हैं। इस बात की चुगली से भाजपा (BJP) भी नहीं बच सकी है कि एक सीमा के बाद जनजातीय नेतृत्व के लिए रास्ते बंद हो जाते हैं। ऐसे में यह बहुत बड़ी जरूरत हो गयी है कि कुलस्ते और शाह सहित इस वर्ग के नेताओं को आइकन (Icon) बनाये रखने की बजाय आदिवासी क्षेत्रों में उनके बीच काम करने के लिए इस्तेमाल किया जाए। उन्हें मुखौटे की परिधि से बाहर लाकर वास्तविक जनजातीय नेताओं के रूप में स्थापित करने का काम भाजपा करें। जरा सोचिए कि कांग्रेस (Congress) से खिन्न होकर भाजपा में आये इस तबके के कद्दावर नेता दिलीप सिंह भूरिया (Dilip Singh Bhuria) आखिर क्यों एक अलग कद हासिल नहीं कर सके? क्यों ऐसा हुआ कि कांग्रेस में शिवभानु सिंह सौलंकी (Shivbhanu Singh Solanki) से लेकर कांतिलाल भूरिया (Kantilal Bhuria) जैसा जनजातीय नेता धार (Dhar) या झाबुआ (Jhabua) से बाहर अपनी कोई पहचान ही प्राप्त नहीं कर सका? किस वजह से जमुना देवी (Jamuna Devi) या प्यारेलाल कंवर (Pyarelal Kanwar) कांग्रेस में ही उप मुख्यमंत्री के रूप में शो पीस से अधिक वाली अहमियत से वंचित रहे? यह तमाम नेता निश्चित तौर पर आदिवासी नेता थे लेकिन क्या इनमें से कोई भी एक ऐसा बन सका, जिसे प्रदेश के तमाम आदिवासी अपना नेता मान लें। यहां कांग्रेसी स्टाईल में ऐसा कुछ नहीं कहा जा रहा है कि किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री या प्रदेशाध्यक्ष बनाए बिना कुछ नहीं होने वाला है। कांग्रेस से तो आप उम्मीद नहीं कर सकते लेकिन भाजपा वाकई आदिवासियों में योग्य चेहरों को छांट कर उन्हें आदिवासी नेता बनाने में सक्षम है। लेकिन ऐसे प्रयास उसने भी आज तक तो किए नहीं हैं।

भाजपा ने निश्चित ही कई नए आदिवासी चेहरों को भी प्रमोट किया है। गुमान सिंह डामोर (Guman Singh Damor) सिविल सेवा से आये हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। लेकिन भाजपा में उनकी अहमियत का ग्राफ रतलाम के सांसद वाली सीमा में ही कैद है। दूसरी तरह युवा आदिवासियों में लोकप्रिय संगठन जयस में डामोर जैसी शैक्षणिक एवं सरकारी नौकरी वाले चेहरों की भरमार है। यही वजह है कि अपनी क्षमता के चलते जयस (JYS) ने बीते कुछ समय में ही प्रदेश के एक आदिवासी हिस्से में बड़ी पकड़ बना ली है। इस संगठन की काट के तौर पर भाजपा यदि चाहे तो डामोर सहित उनके समकक्ष बाकी आदिवासी नेताओं को इन इलाकों में उभारकर भाजपा खुद का असर बढ़ा सकती है। आखिर यदि शिवराज सरकार आदिवासियों को उनके अधिकार देने जा रही है तो निश्चित तौर पर उसे अपनी विचारधारा के आदिवासी चेहरों को ऊपर लाना चाहिए। भाजपा ने खरगौन के सुमेर सिंह सौलंकी (Sumer Singh Solanki) को राज्यसभा (Rajy Sabha) में भेजा है। वे प्रोफेसर हैं। लेकिन क्या उनका जयस की काट के तौर पर उसके प्रभाव क्षेत्र में सौलंकी के लिए कोई काम पार्टी या सरकार में अब तक सोचा गया। जाहिर है भाजपा यदि ऐसे चेहरों को वास्तव में नेता बनाने की कोशिश करती है तो आदिवासियों की वह और अधिक हितैषी और नजदीक भी होगी।

फिर यह भी सर्वविदित है कि जयस से आम आदिवासी नहीं जुड़ा हुआ है। इस आम चेहरे को अपनी तरफ बनाये रखने के लिए भाजपा इसी वर्ग से आने वाले अपने प्रभावी नेताओं को उनके बीच भेजकर वहां अपने काम, नाम, नीति और नीयत के प्रति आकर्षित कर सकती है। भाजपा को ऐसे लोगों को आगे लाने की बहुत जरूरत है, जो आदिवासी के रूप में आदिवासियों के बीच में खास पहचान हासिल कर सकें। महज नाम बदलने या गौरव दिवस के आयोजन से ही बात नहीं बन जाती है। आप इससे कुछ क्षण के लिए किसी को रोमांचित करने की हद तक उसका ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट कर सकते हैं, किन्तु इन भावों को स्थायी बनाये रखने के लिए आपको आदिवासी लीडरशिप के माध्यम से जनजातीय इलाकों में ‘अपनों से अपनी बात’ जैसा रिश्ता कायम करना ही होगा। इस दिशा में शिवराज की नीयत पर शक करने का कोई कारण नहीं दिखता है। जरूरत उस नीति पर भी अमल करने की है, जो अंतत: भाजपा के लिए बड़े राजनीतिक लाभ की वजह साबित हो सकती है।

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