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कांग्रेस में ये भाजपा के हितैषी….?

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वामपंथी (leftist), संघ (RSS), भाजपा (BJP) या हिन्दूत्व (hindutva) के विरोध में किसी भी हद तक जा सकते हैं। जाएं, उनकी अपनी एक राजनीतिक सोच (political ideology) और विचारधारा है। लेकिन ये कांग्रेसियों की बुद्धि क्यों कुंद हो गई है? उनसे न उगलते बन रहा है और न निगलते। इसलिए ही यह सवाल खड़ा हुआ है कि कांग्रेस (Congress) में आखिर वे कौन हैं, जो भारतीय जनता पार्टी (BJP) की राजनीतिक संभावनाओं को और ताकत देने के लिए सिर के बल खड़े हैं? थोड़ा घटते क्रम में चल कर इस बात को सुभीते से समझा जा सकता है।

मणिशंकर अय्यर (manishankar iyer) ने कहा है कि मुगल शासक (Mughal Emperors) बहुत अच्छे थे। उन्होंने कभी भी हिंदुओं का अहित नहीं किया। और मुगलों ने यह अहसान भी इस देश पर किया कि इसे उन्होंनें अपना माना। इससे पहले राशिद अल्वी (Rashid Alvi) ने कहा कि जय श्री राम (Jai Shri Ram) का नारा लगाने वाले निशाचर हैं। अल्वी से पूर्व सलमान खुर्शीद (salman khurshid) यह लिख कर उसे सही साबित करने में जुट गए कि हिंदुत्व के अनुयायी (followers of hindutva) आतंकवादी संगठनों (terrorist organizations) की तरह काम कर रहे हैं। कई लोगों की विलक्षण किस्म की महारत होती है। कोई श्रद्धांजलि (Tribute) देने में एक्सपर्ट होता है तो कोई बधाई देने के हुनर में पारंगत। दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) की भी अपनी एक विशेष योग्यता है। वह हिंदुओं या हिंदुत्व पर होने वाले किसी भी हमले को जस्टिफाई (Justify) करने की प्रतिभा के धनी हैं।

इसलिए खुर्शीद से लेकर अय्यर तक के बचाव में सिंह भी कूद पड़े। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) तो खैर भोले-भाले हैं। इसलिए अपनी सीमित तर्क (Logic) शक्ति के साथ वह भी मैदान में उतरे और शिवजी (God Shiva) को संसार को निगल लेने वाला बताकर उन्होंने अपने अल्प ज्ञान को एक बार फिर सबके सामने उगल दिया। सुप्रिया श्रीनेत (Supriya Shrinet) किसी असुविधाजनक स्थिति से बचने के लिए अपने गुस्से का इस्तेमाल करने की मारक क्षमता से सुसज्जित हैं, लेकिन अय्यर के ‘मुगल महान’ वाले एपिसोड (episode) पर भोपाल (Bhopal) में मीडिया में सफाई देते हुए उनके चेहरे पर भी असहजता साफ पढ़ी जा सकती थी। उन्होंने तो किसी तरह यह कहकर पिंड छुड़ाया कि कुछ मुगल बादशाह वाकई अच्छे थे।

तो विवाद का ऐसा हुक्का गुड़गुड़ाने वाले और इस आग को ईंधन प्रदान करने की प्रक्रिया कांग्रेस में एक बार फिर तेज हो गयी है। मगर इस आग की लपटें खुद कांग्रेस की राजनीतिक संभावनाओं की तरफ तेजी से लपक रही हैं और इस आग से उपजी रोशनी में भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) का सियासी भविष्य और उज्ज्वल नजर आने लगा है। ये विवाद ऐसे समय उठाये जा रहे हैं, जब उत्तर प्रदेश का प्रतिष्ठापूर्ण विधानसभा चुनाव ( Assembly Elections of Uttar Pradesh) सिर पर आ चुका है। वह प्रदेश, जो कभी कांग्रेस की मजबूती का सबसे बड़ा आधार हुआ करता था और जहां आज यह पार्टी अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई में हांफ रही है।

बात बिहार (Bihar) की भी की जा सकती है। जिस प्रदेश में कांग्रेस ने डेढ़ दर्जन से अधिक मुख्यमंत्री दिए, वहां अब वह अपने वजूद के लिए क्षेत्रीय दलों के रहमो-करम पर ही जीवित बची है। दोनों ही राज्यों में वर्ष 1989 के बाद से अब तक इस दल का मुख्यमंत्री नहीं बन सका है। इसके पहले की तस्वीर बिलकुल अलग थी। कांग्रेस बहुत ताकतवर रही, क्योंकि देश के बाकी वोटरों के साथ मुस्लिम मत (Muslim vote) एकमुश्त उसके साथ था। अब हालात बदल चुके हैं। 1989 के बाद से कांग्रेस देश में मुसलमानों का विश्वास खो चुकी है। अब जहां मुस्लिमों के सामने कोई और राजनीतिक विकल्प नहीं हैं, बस वे वहीं कांग्रेस को वोट दे रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के प्रति पहले जैसा जूनून उनमें अब बाकी नहीं है। बिहार में मुस्लिम वोटर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) तथा जनता दल यूनाइटेड (JDU) के बीच बंट गया है। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में यह वोट Congress से सरक कर समाजवादी पार्टी (SP) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) के पास जा चुका है।

2014 में लोकसभा (Lok Sabha) में दो अंकों में सिमट कर शर्मनाक हार के बाद कारणों को खोजने के लिए बनी ए के एंटोनी (A.K. Antony Committee) की कमेटी ने हार का एक प्रमुख कारण पार्टी के प्रो मुस्लिम या अल्पसंख्यक प्रेम (Muslim or minority love) को भी ठहराया था। तो कथित साफ्ट हिन्दूत्व (soft Hindutva) के रास्ते पर चल कर देख चुकी कांग्रेस को लग रहा है कि बिना मुस्लिम वोटों को अपने पाले में शामिल किए बिना उसका उद्धार नहीं होना है। इसलिए मान लिया जाए कि खुर्शीद से लेकर अल्वी, अय्यर और दिग्विजय के चलते उत्तर प्रदेश का मुस्लिम वोटर, जितना भी कांग्रेस की तरफ आ गया, तब भी सवाल यह कि इसका फायदा किसे होगा और किसके खाते में इसका नुकसान आएगा।

मुस्लिम मत उत्तर प्रदेश में राजनीतिक उलटफेर करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यदि वह कांग्रेस से जुड़ गया तो इसका सीधा-सीधा घाटा सपा तथा बसपा को ही होगा। ये वो दो दल हैं, जो भाजपा को इस राज्य में ताकत से टक्कर दे रहे हैं। उनकी शक्ति का बहुत बड़ा आधार जातिगत वोटरों पर मजबूत पकड़ के अलावा मुस्लिम मतदाताओं का एकमुश्त समर्थन ही हैं। तो स्पष्ट है कि यदि मुस्लिम मत उनसे टूटकर बिखरा और उसका बंटवारा हुआ तो यह विघटन भाजपा के लिए ही लाभकारी साबित होगा। इसके अलावा यह राजनीतिक मैदान का एक ऐसा पिच है, जहां फ्रंटफुट पर खेलने में भाजपा मास्टर है।

अब राजनीतिक शुभ-लाभ के इस गणित से अनुभवी और पके राजनीतिज्ञ खुर्शीद से लेकर दिग्विजय सिंह तक बखूबी परिचित हैं। बावजूद इसके वे अपनी इस खास किस्म की बहस को नित-नए स्वरूप प्रदान कर रहे हैं। उसे विस्तार दे रहे हैं। कांग्रेस पर वामपंथी विचारधारा (leftist ideology) तो पूरी तरह हावी है ही, लेकिन उसी विचारधारा का इस भस्मासुरी तरीके से प्रयोग समझ से परे है। इसीलिए से ये सवाल अपनी जगह पर है कि आखिर इस पार्टी में ऐसा कौन हैं या ऐसे कौन-कौन से लोग हैं, जो भाजपा की सफलता की दिशा में लगातार प्रयासरत हैं। इस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को चाहिए कि इस सवाल का जवाब तलाशे, इससे पहले कि….बहुत देर हो जाए।

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