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‘नो पाजिटिविटी फॉर हिंदूज’ वाला मामला !!!

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निहितार्थ: क्या आप जानते हैं कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के प्रमुख डॉ. जेए जयालाल (Dr. JA Jayalal) को कोर्ट ने जमकर लताड़ा है? यदि आप इस बारे में नहीं जानते तो खुद को इसका दोष मत दीजिये। हां, आप एक प्रवृत्ति के शिकार हो गए हैं। आपका केवल यही दोष है। वह प्रवृत्ति, जो जानबूझकर इस खबर को आपसे और आपको इससे जुड़े चौंका देने वाले तथ्यों से दूर रखती है। यह फितरत आपने नहीं अपनाई। बल्कि यह आपकी मानसिक गुलामी (mental slavery) के चलते हुआ है। वह गुलामी जो आपको उन समाचार माध्यमों का ग्राहक नहीं बल्कि दास बना देती है, जो इस तरह के समाचार के साथ सम आचार यानी एक सरीखे व्यवहार की प्रैक्टिस को न जाने कब का त्याग चुके हैं। वो भी षड्यंत्र पूर्वक।

बाबा रामदेव (Baba Ramdev) को जमकर गरियाने वाले इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के कर्ताधर्ता पर गंभीर आरोप लगा है। मामला दिल्ली की द्वारका कोर्ट में चल रहा है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि डॉ. जयालाल (Dr. Jayalal) ने अपने ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए हिन्दू धर्म को नीचा दिखाया है। वे ऐसा करने के लिए अपने IMA वाले पद और प्रभाव, दोनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने हिन्दू धर्म (Hindu religion) के खिलाफ टिप्पणी की है। अपनी इस कारगुजारी के लिए जयालाल ने इंटरव्यू और लेखों का सहारा लिया। इस पर हुई सुनवाई में कोर्ट ने जो कहा, वो गौरतलब है। एडिशनल सेशंस जज अजय गोयल (Additional Sessions Judge Ajay Goel) ने जयालाल को फटकारते हुए उन्हें ताकीद की कि वे आईएमए को ‘धर्म प्रचार का अड्डा’ न बनाएं। वह जिस भी मजहब को मानें, लेकिन ध्यान रखें कि मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।





स्पष्ट है कि प्रथम दृष्टि में अदालत भी इस बात से सहमत है कि जयालाल ने गलत काम किया है और इसके लिए आईएमए का इस्तेमाल किया गया। रामदेव ने तो इलाज की एक पद्धति के ही खिलाफ टिप्पणी की थी। जयालाल तो करोड़ों लोगों की आस्था वाले एक धर्म को निशाना बनाने के आरोपी हैं। तो ऐसा क्यों नहीं हुआ कि जिस तरीके से Ramdev के बयान को बवाल की शक्ल दी गयी, उसी तरह से जयालाल के इस कृत्य को भी एक्सपोज किया गया? एक अखबार के आखिरी पेज पर सबसे नीचे लगी यह खबर क्यों सुर्खी में नहीं लाई गई? क्या इसलिए कि मामला ‘नो नेगेटिव मंडे’ की बजाय ‘no negative sunday’ या फिर ‘नो पाजिटिविटी फॉर हिंदूज’ (Positivity for Hindus) वाला है!

सच की व्याख्या करने का साहस उन में नहीं है, ये तो कई समाचार पत्र पहले ही दिखा चुके हैं। लेकिन यदि मामला कोर्ट (court) की कार्रवाई वाले सत्य को भी सामने न रख पाने का हो तो फिर कई संदेह जन्म लेते हैं। अंग्रेजों के जमाने की और उन जैसी ही मानसिकता में रचे-बसे आईएमए के लिए प्रमुख समाचार पत्रों के इस आदर/भय की तह तक जाना जरूरी हो गया है। क्योंकि ये समाचार चयन के नाम पर साजिश वाले नजरिये की चुगली करता है। जयालाल पर लगे संगीन आरोपों का सच तो अदालत से देर-सबेर सामने आ ही जाएगा, मगर इस तरह के सार्वजनिक घटनाक्रमों को अपनी खबरों में अछूत समझने के पीछे छिपे सच को तो हमें खुद ही तलाशना होगा। आप हिन्दू धर्म और उसके मानने वालों को ‘असहिष्णु’ बताने वाली जमात को प्रमुखता से खबरों में स्थान देते हैं। उनके ऐसे विचारों को विस्तार की शक्ल में प्रचारित करने के लिए एकपक्षीय स्वरूप के अघोषित अभियान चलाते हैं।





ऐसी बहस के लिए आपके अधिकार वाले कागज और टीवी स्क्रीन (TV screen) पर आप सर्वस्व लुटाने को तैयार दिखते हैं। तो फिर ये क्यों हो रहा है कि इसी हिन्दू धर्म और हिन्दुओं की क्रमश: आत्मा तथा आस्था को चोट पहुंचाने वाले ऐसे लोगों को आप सामने लाने तक से भी परहेज करते दिख रहे हैं? ये वो ही आत्मरति वाली लेकिन खोखली धर्मनिरपेक्षता है, जो डासन के मंदिर में पानी पीने से रोके गए अल्पसंख्यक को गले लगाती है और दिल्ली के एक मस्जिद में दस साल की मासूम से रेप की कोशिश वाले घटनाक्रम से आंख मूंद लेती है। ये वही गिरोहबंदी है, जो कश्मीर में ज्यादती की एक वारदात की आड़ में सभी हिन्दू मंदिरों को कलंकित करने पर पिल जाती है और जिसके लिए हिन्दू देवियों का नग्न चित्रण करने वाला एमएफ हुसैन एक तरीके से पूजनीय बन जाता है।

देश और दुनिया में करोड़ों मिशनरी ईसाइयत का प्रचार करते हैं। Hindu religion के लिए भी ऐसे भावों से भरे लोगों की कमी नहीं है। जयालाल का भी ऐसा करना गलत नहीं है, बशर्ते कि खुद की लकीर बड़ी करने के लिए वे दूसरे की लकीर को छोटा करने की हिमाकत नहीं करें। इसके लिए आइएमए जैसी किसी संस्था के नेटवर्क और असर का इस्तेमाल न करें। फिर भी डॉ. जयालाल पूरी तरह सुरक्षित हैं, क्योंकि वो उस देश में रह रहे हैं, जहां कम से कम हिन्दू धर्म को गरियाना तो धर्मनिरपेक्षता को खंडित करने वाला आचरण नहीं ही माना जाता है।

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