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बिल्ली के भाग्य से नहीं टूटेगा ये छींका

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निहितार्थ: सुभीते के हिसाब से पानी के स्थानीय स्रोतों के अलग-अलग नाम लेकर एक मायनेखेज बात कही जाती है। वह यह कि अब तक तो अमुक नदी में हजारों गैलन पानी बह चुका है। यह समय के बहुत बदल जाने की सूचना का सांकेतिक माध्यम है। तो आज कह सकते हैं कि नागपुर की कन्हान (Kanhan) और दिल्ली की यमुना नदी (Yamuna river) में असंख्य गैलन पानी बह चुका है। और वो लोग, जो इस तथ्य से आंखें मूंदे हुए हैं, उनके लिए अब आंख खोलने का समय आ गया है। बात भारतीय जनता पार्टी (BJP) में दबाव की राजनीति के अस्त हो चुके सितारे को फिर से जगमगाता देखना चाहने वालों की हो रही है। बड़ा हो हल्ला मच रहा है कि मध्यप्रदेश (Madhya pradesh) में कुछ होने जा रहा है। उत्तरप्रदेश के लिए भी यही बात हो रही है। मीडिया और सोशल मीडिया (social media) के कलाकार, एक सुर में दोनों राज्यों में CM बदले जाने की संभावना जता रहे हैं। भाजपा में पिछले एक सप्ताह से चल रहा मेल मुलाकातों का दौर अभी थमा नहीं है। भोपाल में आज भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा (VD Sharma) पहले गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा (Narottam Mishra) से मिले। इसके कुछ ही देर बाद वे सुहास भगत और हितानन्द शर्मा (Hitanand Sharma) के साथ मुख्यमंत्री निवास पर शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) के पास पाए गए।

खबर है कि मध्यप्रदेश भाजपा (MP BJP) में कई दबे अरमान अलमारी से निकालकर कलफ और इस्त्री के लिए तैयार किये जा रहे कुर्ते-पायजामों की शक्ल में अंगड़ाई ले रहे हैं। कोई पश्चिम बंगाल (West Bengal) में अपनी सेवाओं के बदले खंडवा लोकसभा सीट (Khandwa Lok Sabha seat) पर दावेदारी करने की फिराक में है तो बुंदेलखंड (Bundelkhand) में किसी को ओबीसी वर्ग (OBC Category) की बदौलत CM पद के लिए अपना रास्ता साफ दिख रहा है। उन्हें लग रहा है कि उनका असर उत्तरप्रदेश (UP) तक है। एक उम्मीद ब्राह्मण होने के चलते भी बलवती होती जा रही है। तो कोई ऐसा भी है, जो शाह की दम पर मध्यप्रदेश का उप-बादशाह होने का भ्रम पालकर बैठ गया है। लेकिन यदि ऐसा मार्च,20 में भी नहीं हुआ तो अभी क्यों होगा?





एक बात फिर से दोहरा दूं। भारतीय जनता पार्टी (BJP) शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही अगला विधानसभा चुनाव (next assembly election) लड़ेगी। यह कोई बहुत नयी बात नहीं बता रहा हूं। हालांकि राजनीति में पल का भी भरोसा नहीं है। लेकिन मेरी समझ में ये वो सच है, जिससे खुद को शिवराज का विकल्प समझने वाले भी खुद अच्छी तरह से वाकिफ हैं। इसके बावजूद प्रेशर पॉलिटिक्स (pressure politics) चल रही है। तो जब शिवराज का भविष्य निरापद है तो भोपाल की इन हलचलों का क्या मतलब निकाला जाए? अर्थ यह कि अब बात सीधे-सीधे नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और अमित शाह (Amit shah) को ब्लैकमेल (blackmail) करने की योजनाबद्ध कोशिश वाली दिख रही है। कई विपरीत परिस्थितियों में दबाव वाकई दवा का काम करता है। उस समय के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (Digvijay singh) पर प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव (PV Narasimha Rao) की तिरछी नजर थी। तो दिग्विजय ने मंत्रिमंडल का सामूहिक इस्तीफा लेकर राव के पर कतर दिए थे। क्योंकि यदि वह सरकार चली जाती तो इसकी तोहमत राव के सिर पर ही मढ़ी जानी थी। अब साफ है कि मध्यप्रदेश भाजपा में भी यही राजनीति खेली जा रही है। बंद कमरे की मुलाकातें जानबूझकर सार्वजनिक की जा रही हैं, ताकि केंद्र को संकेत दिया जा सके कि प्रदेश में सरकार से नाराजगी है और ऐसा ही चला तो कमल वाली पार्टी का कमलनाथ (Kamalnath) वाला एपिसोड (episode) दिख सकता है।

लेकिन क्या सचमुच ये कोशिशें बचकाना नहीं हैं? माना कि इसी दल में पहले इस तरह के प्रयास कभी कभार सफल रहे। पर यह तब तक की बातें हैं जब तक आडवाणी जी इस पार्टी के मुखिया होते थे। पर अब समय बदल चुका है। पार्टी के उस समय के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) या लाल कृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) इन दबावों के आगे कई बार झुक जाते थे। लेकिन अब तो ये मोदी और शाह से दीक्षित नई भाजपा है। जिन्होंने एक झटके में आनंदीबेन पटेल (Anandiben Patel) को गुजरात से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। ऊना काण्ड (Una scandal) और अल्पेश ठाकोर, हार्दिक पटेल आदि से जुड़े सक्रिय घटनाक्रमों के चलते पटेल घनघोर रूप से असफल मुख्यमंत्री हो गयी थीं। लेकिन पद छोड़ने की बजाय वे मोदी और शाह पर दबाव बनाने में जुट गयीं। अंतत: वो नाकाम रहीं। अब इसे गुजराती बंधुओं की सदाशयत ही कहेंगे कि पटेल को तमाम तीखे तेवरों के बावजूद राज्यपाल का पद देकर उनके सियासी वानप्रस्थ (Political Vanaprastha) को सुखद स्वरुप दे दिया गया। वरना तो आनंदीबेन ने भाजपा के नए और कड़े स्वरुप से सिर टकराकर खुद को ही जख्मी कर लिया था। हरियाणा में एक गैर जाट लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री है। देवेन्द्र फडनवीस, झारखंड में एक गैर आदिवासी रघुवर दास (Raghuvar Das) और असम में सर्वानंद सोनोवाल (Sarbananda Sonowal) को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले पूरी भाजपा सहित राजनीति के तमाम जानकारों को चौंकाते रहे। अभी असम में ही पांच साल बाद दूसरी बार जीतने के बाद सर्वानंद सोनोवाल शांति से एक तरफ हो गए। 2014 से 21 तक में अपवाद केवल उत्तराखंड का ही सामने आया है। तो कहने का मतलब यह है कि शिवराज सिंह चौहान का बने रहना या हटना सब कुछ मोदी और शाह को ही तय करना है। और ऐसा कुछ भी करने से पहले वे किसी से पूछेंगे या नहीं, यह भी कहना मुश्किल है।





तो फिर इस बदली हुई भाजपा में भला मध्यप्रदेश के ये दबाव निर्माता समूह क्या हासिल कर लेंगे? भला किस बात के चलते मोदी या शाह उन शिवराज के लिए कोई बड़ा फैसला ले लेंगे, जिन शिवराज ने उमा भारती (Uma Bharti) और बाबूलाल गौर (Babulal Gaur) के ‘तू चल मैं आया’ वाले शासनकाल के बाद के जबरदस्त उथल-पुथल वाले दौर से गुजरकर भाजपा को लगातार दो बार चुनावों में जीत दिलाई। पार्टी के भीतर इन तेरह सालों में कोई विध्न बाधा उन्होंने पनपने नहीं दी। शिवराज ने सरकार को वो स्थायित्व प्रदान किया, जो इस प्रदेश में उनसे पहले कोई भी भाजपाई मुख्यमंत्री नहीं कर सका था। कमलनाथ सरकार (Kamal Nath Government) गिरने के बाद राज्य की 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में से 19 सीटों पर भाजपा की विजय का मुख्य फैक्टर शिवराज ही थे।

 

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उन्हीं की बदौलत लोगों ने एक स्थिर सरकार के लिए भाजपा को वोट दिया। ये चौहान का ही असर था कि लगातार तीन कार्यकाल के एंटी इंकम्बैंसी फैक्टर (anti incumbency factor) के बावजूद कांग्रेस अपनी दम पर बहुमत हासिल नहीं कर सकी थी। हालांकि चौहान तीसरे चुनाव में टिकट बांटने में थोड़ी सावधानी बरत जाते तो शायद कांग्रेस सत्ता से तब भी दूर ही रह जाती। तो दिल्ली में जिद्दी होने की हद तक मजबूत इरादों वाले मोदी-शाह बैठे हैं। मध्यप्रदेश में मजबूत जमीन वाले शिवराज हैं। तो दबाव भला किस पर और कैसे चल सकेगा? शीशे से पत्थर तोड़ने वाली बात फिल्मों में ही होती है, वास्तविक जीवन में संभव नहीं है। यह कहना तो ज्यादती होगी कि गिद्धों के श्राप से गाय नहीं मरती, लेकिन ये तो लिखा ही जा सकता है कि बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना भी वास्तविक जीवन में देखने को नहीं मिलता है। ये सब किताबी बातें हैं, जो राज्य के सियासी बहीखाते में फिलहाल तो जगह नहीं पा सकती हैं।

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