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रीजनल इन्वेस्टर्स कॉन्क्लेव: मोहन का ग्वालियर-चंबल के अछूते पर्यटन स्थलों के विकास पर रहेगा फोकस, निवेशकों के साथ करेंगे मंथन

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भोपाल। मुख्यमंत्री मोहन यादव की पहल पर प्रदेश के हर संभाग में रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव आयोजित किया जा रहा है। अब कल मंगलवार को मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक नगरी ग्वालियर के राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय में रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव आयोजित होगी। ग्वालियर-चंबल अंचल के औद्योगिक विकास को गति देने के लिये प्रतिष्ठित औद्योगिक प्रतिनिधि एवं निवेशकों को आमंत्रित किया गया है।

खास बात यह है कि इस कॉन्क्लेव में ग्वालियर एवं चंबल के अछूते परंतु अप्रतिम पर्यटन स्थलों के विकास के लिये निवेश की संभावनाओं पर विशेष सत्र में चर्चा होगी। संभावित निवेशकों से पर्यटन विकास की योजनाओं में निजी निवेश की भागीदारी के संबंध में कार्य योजनाएं बनाई जाएंगी। ग्वालियर और चंबल रीजन प्राकृतिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक सभी प्रकार के पर्यटन से समृद्ध है।

ग्वालियर के इटालियन गॉर्डन का है अपना महत्व
गौरतलब है कि ग्वालियर के इटालियन गार्डन का अपना महत्व है। शहर के मध्य में स्थित, यह शांत और सुरम्य उद्यान एक सुखद अनुभूति देता है। इटालियन गार्डन इतालवी वास्तुशिल्प प्रभाव और भारतीय प्राकृतिक सौंदर्यशास्त्र का सामंजस्य है। सिंधिया राजवंश के शासकों की स्मृति और सम्मान में निर्मित छतरियाँ स्थापत्य कला के साथ सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। झांसी की वीरांगना, रानी लक्ष्मी बाई के सम्मान में निर्मित, उनकी समाधि एक प्रसिद्ध आकर्षण है। रानी के सम्मान में हर साल जून में यहां मेला लगता है। इतिहास प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थल है।

वालियर का ऐतिहासिक किला वीरता और जौहर का है साक्षी
मुरार में रेजीडेंसी के पास नवनिर्मित सूर्य मंदिर उड़ीसा के प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर से प्रेरित है। गौस मोहम्मद का मकबरा का सम्मोहन कर देने वाला सौंदर्य है। ग्वालियर का ऐतिहासिक किला वीरता और जौहर का साक्षी है। किले की शानदार बाहरी दीवारें भव्यता का अहसास कराती हैं। दो मील की लंबाई और 35 फीट ऊंची भारत के सबसे अजेय किलों में से एक है। किले के भीतर की मध्यकालीन वास्तुकला किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। 15 वीं शताब्दी का गुजरी महल, राजा मानसिंह तोमर का अपनी रानी मृगनयनी के प्रति अगाथ प्रेम का एक भव्य स्मारक है।

कूनो राष्ट्रीय उद्यान, श्योपुर
कूनो राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्रफल 344.686 वर्ग किलोमीटर है। चीतों के यहां बसने से अब इसका अंतर्राष्ट्रीय महत्व बढ़ गया है। चम्बल की सहायक नदी कूनो के नाम पर इसका नाम रखा गया है। श्योपुर का राष्ट्रीय उद्यान अब आकर्षण का प्रमुख केन्द है। यहां चंबल और बनास नदियों का संगम एक विहंगम दृश्य दिखता है। श्योपुर से 45 किलोमीटर दूर मौजूद राजा मानसिंह के किले में मानेश्वर महादेव मंदिर तथा राग-रागनियो के चित्र देखने लायक है।. श्योपुर किले में अत्यंत पिछड़ी सहरिया जनजाति की संस्कृति के संरक्षण के लिए सहरिया विकास प्राधिकरण एवं पुरातत्व एवं संस्कृति संरक्षण समिति ने मिलकर सहरिया संग्रहालय की स्थापना की है। सीप एवं कलवाल नदी के संगम पर बना यह किला प्रस्तर शिल्प का बेजोड़ नमूना है

श्री शनिचरा मंदिर मुरैना
श्री शनिचरा मंदिर परिक्षेत्र धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है। श्रृद्धालुओं की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए सुविधाओं का विस्तार किया गया है। प्रति शनिवार को मंदिर में हजारों की संख्या में श्रृद्धालु राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, बिहार, गुजरात तथा विदेशों में नेपाल, श्रीलंका, न्यूजीलैण्ड से आते हैं। शनीचरी अमावस्या पर यहाँ विशेष मेला लगता है।

चौसठ योगिनी मंदिर
चौसठ योगिनी मंदिर मुरैना के पडावली के पास, मितावली गांव में है। यह ऐतिहासिक स्मारक है। चौसठ योगिनी मंदिर सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर का नाम इसके हर कक्ष में शिवलिंग की उपस्थिति के कारण पड़ा है। भारत में गोलाकार मंदिरों की संख्या बहुत कम है, यह उन मंदिरों में से एक है। यह चौंसठ योगिनियों को समर्पित है। यह बाहरी रूप से 170 फीट की त्रिज्या के साथ आकार में गोलाकार है और इसके आंतरिक भाग के भीतर 64 छोटे कक्ष हैं। मुख्य केंद्रीय मंदिर में स्लैब के आवरण हैं जो एक बड़े भूमिगत भंडारण के लिए वर्षा जल को संचित करने के लिए उनमें छिद्र हैं। सिहोनिया मुरैना जिले का एक कस्बा है। इसका लंबा इतिहास और कई उल्लेखनीय स्मारक हैं जो आर्कियोलॉजिकल सर्वे आॅफ इंडिया द्वारा संरक्षित है। सिहोनिया में सबसे महत्वपूर्ण मंदिर शिव को समर्पित है और आज ककनमठ के रूप में जाना जाता है। ग्यारहवीं शताब्दी में यह कच्छप वंश के एकमात्र जीवित शाही मंदिरों में से एक है। सिहोनिया के दक्षिण में जैन मंदिर है जो कि दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र की तरह प्रसिद्ध है।

वनखंडेश्वर मंदिर
भिंड में अटेर का किला भदौरिया राजा बदन सिंह, महासिंह और बखत सिंह ने बनाया था। इसलिये इस क्षेत्र को भदावर के नाम से जाना जाता है’ यह चंबल की गहरी वादियों के अन्दर है’ भगवान शिव को समर्पित, वनखंडेश्वर मंदिर को भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। शिवपुरी की छत्रियां मुगल मंडप के साथ हिंदू और इस्लामी वास्तुकला शैलियों का शानदार मिश्रण है। माधव नेशनल पार्क के अंदर जॉर्ज कैसल है। यह महल 1911 में ग्वालियर के तत्कालीन सिंधिया शासक ने इंग्लैंड के किंग जॉर्ज पंचम के एक रात ठहरने के लिए बनाया गया था। यहाँ से झीलों के लुभावने दृश्य और करधई के जंगल के मनोरम दृश्य देखे जाते हैं। इसे 1958 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला। गुना जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर बीस भुजा देवी का दरबार है। गोपी कृष्ण सागर डैम गुना का बहुत ही लोकप्रिय पर्यटक स्थल है। अशोकनगर का चंदेरी शहर 11 वीं शताब्दी से 18 वीं शताब्दी तक के ऐतिहासिक स्थलों से भरा है। चंदेरी साड़ियों और ऐतिहासिक स्मारकों के लिए अविश्वसनीय रूप से प्रसिद्ध है। यहां हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।

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