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और कितना नीचे जाएंगे दिग्विजय

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निहितार्थ : दिग्विजय सिंह (Digvijay singh) लंबे समय से केंद्रीय स्तर पर तो कांग्रेस (Congress) के पालिसी मेकर्स (policy makers) में शामिल नहीं हैं। वह किसी भी स्तर पर भविष्य बताने वालों जैसी क्षमता भी नहीं रखते हैं। लेकिन कुछ तो अलग है उनके भीतर। वरना ये भला कैसे मुमकिन था कि सिंह कांग्रेस की नीति और नियति, दोनों को एक झटके में उजागर कर देते? बात आर्टिकल 370 को लेकर सिंह के एक बार फिर सामने आय पाकिस्तान प्रेम (pakistan love) की ही हो रही है। दिग्विजय ने कहा कि ‘यदि’ देश में फिर कांग्रेस की सरकार बनी तो कश्मीर में दोबारा Article 370 लागू कर दिया जाएगा। उन्होंने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi government) द्वारा यह आर्टिकल खत्म करने पर सियापा किया। कहा कि केंद्र सरकार (central government) ने यह काम गलत तरीके से किया है। अपने इस रुदन को वजन देने की गरज से सिंह ने जिस ‘कश्मीरियत’ (Kashmiriyat) का जिक्र किया, वह कम से कम भारत की भावना तो नहीं थी। ऐसा कहते समय कांग्रेस के यह वरिष्ठ नेता अलगाववादियों, आतंकवादियों और उनके आका पकिस्तान की जुबान बोल रहे थे। क्योंकि कश्मीर तो इस गुलामी से आजाद होने का जश्न मना रहा है। केंद्र सरकार के इस कदम से मूल ‘कश्मीरियत’ में हर्ष का माहौल है।

अब दिग्विजय पूरी खिसियाहट के साथ खंभा नोच रहे हैं। कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव (Assembly elections) नजदीक आ रहे हैं। तो जाहिर है कि ऐसे समय में सिंह के इस बयान पर कांग्रेस के सच्चे शुभचिंतकों का समूह अपने बाल नोच रहा होगा। दिग्विजय कह रहे हैं कि उनकी बात को इंग्लिश न समझ पाने वालों ने गलत रूप में प्रचारित किया है। हैरत है कि ‘असत्य के साथ मेरे प्रयोग’ की कलयुगी शैली (Klyugi style) के सफल प्रवर्तक सिंह यह झूठ नहीं कह पा रहे कि जुबान चाहे कोई भी हो, लेकिन बात अकेले उनके मन की नहीं थी। क्योंकि बात तो न केवल दिग्विजय, बल्कि पूरी कांग्रेस के मन की ही है। सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से लेकर राहुल और उनके नीचे की ‘जी हुजूर गैंग’ (ji huzoor gang) ने कश्मीर से Article 370 हटाए जाने का पुरजोर विरोध किया था। वजह साफ है। इस दल के पितामह जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने ही तो इस आर्टिकल वाली विष बेल को न सिर्फ वहां रोपा था, बल्कि उसे उन्होंने भरपूर खाद-पानी भी दिलवाया। कश्मीर में तब यह काम शेख अब्दुल्लाह एंड कंपनी (Sheikh Abdullah & Company) ने किया। बाद में इस प्रक्रिया में आतंकवादी (Terrorist) भी शामिल हो गए। इधर, दिल्ली के स्तर पर कांग्रेस के नेतृत्व वाली तमाम हुकूमतें और पार्टी के कर्ता-धर्ता भी इस अनुच्छेद को कायम रखने के काम में ही लगे रहे।





तो वायरल आडियो से दिग्विजय ने Congress की उस नीति की ही पुष्टि की है, जिसके तहत यह दल कश्मीर को कभी भी देश की मुख्यधारा का हिस्सा बनने देना नहीं चाहता था। और अब उसी दल के नेता दिग्विजय इस अनुच्छेद को हटाने के पीछे इंसानियत सहित लोकतान्त्रिक मूल्यों (democratic values) को नजरंदाज करने का आरोप लगा रहे हैं। किसलिए? सिर्फ इसीलिए ताकि उस भारत-विरोधी तबके को कांग्रेस के रूप में ‘मैं हूं ना’ वाला आश्वासन दिया जा सके, जो तबका हर हालात में कश्मीर को भारत से अलग करने के दुष्चक्र में जुटा हुआ है। धिक्कार है ऐसी राजनीति पर, जो अपने ही देश की जड़ों में मठा डालने का काम करती है।

और अब बात नियति की। जब दिग्विजय यह कहते हैं कि ‘यदि देश में फिर कांग्रेस की सरकार बनी…’ तो दरअसल यह ‘यदि’ निश्चयात्मक संकेत है। वह यह निर्णयात्मक वाक्य है, जो बताता है कि जब तक दिग्विजय जैसे नेता और उन सरीखी मानसिकता कायम है, तब तक देश में फिर से कांग्रेस की सरकार बनने का कोई स्कोप ही नहीं रह गया है। और दिग्विजय कायम रहेंगे। साथ ही कांग्रेस का अभिन्न अंग बने रहेंगे उनके इस तरह के विचार भी। ऐसा कहने की वजह यह कि सिंह द्वारा समय-समय पर कही गयी ऐसी अनगिनत बातों के बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व (Congress leadership) ने न तो इस पर सफाई दी है और न ही उनके कहे को गलत बताया है।





जाहिर है कि आलाकमान का यह मौन दिग्विजय जैसे नेताओं की कथनी और करनी के लिए मुखर सहमति का प्रतीक बन गया है। इस घटनाक्रम को आप दिग्विजय की सतत रूप से बढ़ती बौखलाहट का सबूत भी मान सकते हैं। कमलनाथ सरकार (Kamal Nath Government) आने के बाद वे अपने सुखद राजनीतिक वानप्रस्थ का बंदोबस्त कर चुके थे। उन्होंने बेटे जयवर्द्धन (son jayavardhan) को दमदार नगरीय प्रशासन विभाग दिलवा दिया। पूरे प्रदेश के विकास के लिहाज से महत्वपूर्ण इस महकमे के जरिये राज्य की कांग्रेस वाली सियासत में राघोगढ़ के नए सिक्के को उतार दिया गया था। खुद सिंह राज्यसभा में सांसद हैं ही। कोशिश रही होगी कि देर-सवेर भाई लक्ष्मण सिंह को भी मंत्री बनवा देंगे। पूरा कुनबा तर जाता। लेकिन पंद्रह महीने बाद सब किया-कराया बर्बाद हो गया। इसकी वजह भले ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ()Jyotiraditya Scindia बने, लेकिन इसका फायदा तो भाजपा को हुआ।

मजेदार तथ्य यह भी है कि उनकी इस बात के समर्थन में उनके भाई हैं और ना बेटा। लक्ष्मण सिंह (Lakshman Singh) की कश्मीरी धर्मपत्नी ने तो इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस से अपना रूख स्पष्ट करने की मांग कर डाली। इसलिए बौखलाहट में दिग्विजय के भाजपा और संघ के प्रति बैर ने अब देश के खिलाफ आग उगलने का भी रूप ले लिया है। दिग्विजय का कम्युनिस्ट समर्थक (Communist supporters)रूझान तो सभी को पता है, लेकिन अब वह घोषित रूप से पाकिस्तान समर्थित विचारधारा के भी हिमायती बनकर सामने आ गए हैं। अब जबकि देश और मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में कांग्रेस के अच्छे दिन उससे अनंत काल के लिए दूर हो गए हैं, तब इस बौखलाहट को लेकर दिग्विजय और कितना नीचे उतरेंगे, इसकी कल्पना मात्र से उकताहट होने लगी है।

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