24.6 C
Bhopal

तगड़े होमवर्क के सहारे आगे बढ़ रहे हैं डॉ. मोहन यादव

प्रमुख खबरे

वाकई, बातों में बड़ा बदलाव तो आ रहा है। दो साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उस समय के बुरहानपुर कलेक्टर प्रवीण सिंह की आनलाइन तरीके से बुरी तरह खिंचाई कर दी थी। कलेक्टर उस बैठक में मुख्यमंत्री की बातों का सीधा जवाब देने की बजाय इधर-उधर देख रहे थे। आज मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने शाजापुर के कलेक्टर किशोर कन्याल को दूसरी वजह से हटा दिया है। वजह यह,कि कन्याल ने एक आम आदमी को उसकी औकात दिखाने की हिमाकत की। कन्याल ने एक ट्रक ड्राइवर को ‘औकात में रहने’ के लिए कहा। नतीजा यह कि मुख्यमंत्री ने कलेक्टर को उनकी औकात याद दिला दी। यह बहुत अनुकरणीय संदेश है। डॉ. यादव के इस एक निर्णय से साफ कर दिया है कि राज्य में अफसर जनता की मदद करने के लिए हैं, उन पर हुकूमत करने के लिए नहीं। जो नौकरशाही अक्सर खुद को खुदा मानने जैसी गलतफहमी से घिर जाती है, उसे आज साफ बता दिया गया है कि आला से आला अफसर भी अंतत: पब्लिक सर्वेंट ही है और उसे इससे ठीक उलट किसी भ्रम में नहीं जीना चाहिए।

कहने वाले मुख्यमंत्री डा. यादव के इस कदम को यह कह कर भी हल्के में ले सकते हैं कि ‘नया मुल्ला है, नमाज ज्यादा पढ़ता है’। जाहिर है मुख्यमंत्री ने अपनी शुरूआत अफसरशाही में कुछ कड़े संदेशों से दी है। यह सिलसिला आगे बढ़ता रहेगा, इसमें अब किसी को शंका नहीं करना चाहिए। जाहिर है ताजा मामले में मूलत: गलती पूरे सिस्टम की ही है। क्योंकि, देश में आईएएस की भर्ती से से लेकर उनकी ट्रेनिंग और बाद वाले रुसूख को आज भी कई ऐसे अहंकारों से अलंकृत रखा गया है, जिसके चलते इस पद के कई चेहरे स्वयं को अंग्रेजों के जमाने वाले ‘बड़ा साहब’ से कम नहीं मानते हैं। इस सोच के चलते शाजापुर जैसे शर्मनाक और आपत्तिजनक किस्से आए दिन सामने आते हैं।

ऐसे कुछ मामलों में ही डॉ. मोहन यादव जैसी सख्ती दिख पाती है और अधिकांश में यही दिखता है कि सिस्टम पर अफसरशाही हावी है। ऐसे में कन्याल पर की गयी कार्यवाही यह बताती है कि व्यवस्था में हर एक ऊंट के लिए एक पहाड़ वाली स्थिति हमेशा कायम है, बशर्ते इसके लिए डॉ. यादव जैसे सख्त तेवर वाली हिम्मत हो। सच तो यह है कि मुगालता पालने वालों को अंतत: उनके ऐसे तेवर के चलते ही करारा जवाब मिलना भी चाहिए। अंतत: कोई भी अफसर या कर्मचारी जनता और उसकी चुनी हुई सरकार के बीच संवाद और विश्वास की अहम कड़ी होते हैं। और यदि उनके भीतर कन्याल जैसे भाव के लिए प्रतिक्रिया पनपती रहे तो अंतत: उसका खामियाजा सरकार को ही भुगतना होता है। फिर डॉ. मोहन यादव मुख्यमंत्री के तौर पर भले ही नए हों लेकिन सार्वजनिक जीवन के अनुभवी नेता तो हैं। और खास बात यह कि इस अनुभव का ककहरा उन्होंने जमीन से जुड़े कार्यकर्ता से लेकर विधायक और मंत्री के रूप में सीखा है। वह निश्चित ही जानते हैं कि बेलगाम अफसरशाही किस तरह 2003 में दिग्विजय शासन के पतन का कारण बनी और इसी बिरादरी पर ठोस अंकुश न लगा पाने के चलते किन-किन मुख्यमंत्रियों को कैसी-कैसी तोहमत अपने ऊपर लेना पड़ गई थीं। फिर चाहे वह किसी भी पार्टी या गठबंधन की सरकार से जुड़ा मामला क्यों न हो। शाजापुर का निर्णय बताता है कि डॉ. यादव तगड़े होमवर्क के सहारे आगे बढ़ रहे हैं ।

- Advertisement -spot_img

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -spot_img

ताज़ा खबरे