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जादूगर कभी बताते नहीं हैं..

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इंद्रजाल कॉमिक्स का दौर कब का खत्म हो चुका है। उसका ही एक चरित्र था जादूगर मेंड्रेक। वह हर अध्याय में जादू के जरिये एक से बढ़कर एक अजूबे करता जाता था। और जब कोई उससे ऐसा करने की तरकीब पूछता तो ,मेंड्रेक का जवाब होता था, ‘जादूगर कभी नहीं बताते।’ बताते तो शिवराज सिंह चौहान भी कुछ नहीं हैं। लेकिन उनकी फितरत छिपाने वाली भी नहीं है। करिश्मा दर करिश्मा कर गुजरते हैं और देखने वाले राजनीति के इस जादूगर की जादुई शक्ति का राज ही पता नहीं लगा पा रहे हैं।

अब इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को ही लीजिए। शिवराज के मुख्यमंत्री रहते भी महिला दिवस तो कई गुजरे हैं। पर इस महिला दिवस को शिवराज ने खास बना दिया। एक खास प्रयोग करते हुए शिवराज ने आज अपनी सुरक्षा में केवल महिला पुलिसकर्मियों को ही लगाने की व्यवस्था कर दी। उनके कारकेड से लेकर टैÑफिक कंट्रोल तक की कमान महिला पुलिस कर्मियों के हाथ में थी। उनकी कार की ड्रायविंग भी एक महिला पुलिसकर्र्मी को सौंपी गर्इं। सुबह-सुबह शिवराज सफाईकर्मी महिलाओं के साथ झाड़ू थामे सफाई करते नजर आ गए। सपत्नीक वे दीदी कैफे पहुंच गए। रोज के पौधारोपण कार्यक्रम में केवल महिला पत्रकारों को आमंत्रित किया गया। उन्होंने महिलाओं के लिए घोषणाओं की झड़ी लगा दी। ये सब सियासत का हिस्सा तो है ही ही, लेकिन चौहान का इंद्रजाल ऐसा कि इस सबको भी आप राजनीतिक लाभ लेने की गरज वाला मामला नहीं कह सकते हैं।

शिवराज का महिलाओं के प्रति यह चिंतन उनकी कार्यशैली का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। शिवराज युवा राजनीति के दिनों में भी बिना नागा हर साल अपने गांव जेत में गरीब कन्याओं का विवाह करवाते थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद तो कन्यादान योजना उन्होंने शुरू की ही। मुझे उनका सांसद वाला दौर याद है। मंच से वह कहते थे, ‘भाइयों और मंच पर आसीन मेरी धर्मपत्नी को छोड़कर उपस्थित सभी बहनों को मेरा प्रणाम।’ हरेक सभा में शिवराज महिलाओं के लिए जरूर विचार रखते थे। फिर मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका इस दिशा में चिंतन और चिंता, दोनों और गाढ़े ही होते चले गए हैं। ये सब इतनी तेजी से और कुछ इस प्रक्रिया के तहत हुआ कि अब न तो शिवराज को प्रदेश का मामा कहा जाना कोई राजनीतिक जुमला लगता है और न ही आधी आबादी के लिए उनके सरोकारों को राजनीतिक प्रपंचों की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसकी वजह यह कि चौहान ने इस दिशा में सिर्फ बातें ही नहीं कीं, बल्कि ढेरों काम भी कर दिखाए। ‘लाडली लक्ष्मी’ से लेकर ‘बेटी है तो कल है’ जैसे कार्यक्रमों के जमीनी पर उतारने के माध्यम से चौहान ने महिलाओं का विश्वास सही मायनों में जीता है।

यूं नहीं कि चौहान से पहले किसी और मुख्यमंत्री ने इस दिशा में काम न किये हों, लेकिन शिवराज एक मायने में अपने पूर्ववर्तियों से बहुत अलग रहे। महिलाओं के प्रति उनकी फिक्र खुरदुरे कागजों पर बेजान शब्दों में उकेरी गयी घोषणाओं तक ही सीमित नहीं रही। उन्होंने इन सभी को अपनी भावनाओं से जीवंत बना दिया। एक हाथ से नारी की चिंता की और दूसरे हाथ से उसके लिए कार्यक्रमों को लागू करते चले गए। जज्बात को साकार रूप देने की यह फनकारी ही शिवराज को औरों से बहुत अलग बनाती है। इसे समझने के लिए कोई बहुत बड़ा राजफाश करना जरूरी नहीं है। लेकिन शिवराज जैसा बनने के लिए पहाड़ खोदने जैसी क्षमता की ही दरकार है। मैंने शुरू में ही कहा कि चौहान कुछ छिपाते भी नहीं हैं। लेकिन कुछ तो है जो उनकी इस खासियत और जादूगरी के इंद्रजाल को कायम रखे हुए हैं। इसका पता कौन लगाएगा, क्योंकि जादूगर तो कभी बताते नहीं हैं?

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